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इन 9 दलबदलुओं को लेकर BJP ने नहला मारा है या पांव पर कुल्हाड़ी?

उत्तर प्रदेश में चुनावी भभ्भड़ मचा हुआ है. बीजेपी ने पोटेंशियल दलबदलुओं के लिए अपने दरवाजे पूरे खोल दिए हैं.

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फोटो - thelallantop
उत्तर प्रदेश में चुनावी भभ्भड़ मचा हुआ है. सबके तरकश में तीर हैं, लेकिन बीजेपी के लिए असल मुश्किल ये है कि उनके पास मुख्यमंत्री के लिए कोई चेहरा नहीं है. इसलिए जो आ रहा है, उसे धड़ाधड़ पार्टी में शामिल किया जा रहा है. 'हिंदुस्तान टाइम्स' ने लखनऊ के तेजतर्रार पक्षियों के हवाले से लिखा है कि बीजेपी ने पोटेंशियल दलबदलुओं के लिए अपने दरवाजे पूरे खोल दिए हैं. दूसरी पार्टियों के 81 नेताओं की एक लिस्ट बनाई गई है जो या तो बीजेपी में आने वाले हैं या उनसे बातचीत चल रही है. इन 81 नेताओं में सबसे ज्यादा मायावती की पार्टी बीएसपी से हैं. इसका तकनीकी पेच ये है कि बीएसपी इस बार ज्यादा मुसलमानों को टिकट देने वाली है. इसकी वजह से ब्राह्मणों के टिकट काटे जाने की पूरी संभावना है. इसलिए 'वल्नरेबल' ब्राह्मण नेताओं को बीजेपी लपकने की तैयारी में है.

इस चुनाव से पहले कौन-कौन आया बीजेपी में:

1. ब्रजेश पाठक: BSP से आए उन्नाव से पूर्व विधायक. उन्होंने कहा कि सतीश चंद्र मिश्र और मायावती ने उन्हें ब्राह्मणों को बसपा से जोड़ने की जिम्मेदारी दी थी. लेकिन अब नसीमुद्दीन सिद्दीकी हावी हो गए हैं और बसपा सिर्फ एक जाति की पार्टी बनकर रह गई है. 2. स्वामी प्रसाद मौर्य: BSP से आए कभी मायावती के बाएं हाथ रहे मौर्य अब बीजेपी में हैं. वो जिस जाति से ताल्लुक रखते हैं वो यादव और कुर्मियों के बाद यूपी का तीसरा सबसे बड़ा जाति समूह है. ये गैरयादव ओबीसी पूरे प्रदेश में पसरे हुए हैं और काछी, मौर्य, कुशवाहा, सैनी और शाक्य के उपनामों से जाने जाते हैं. बसपा स्वामी प्रसाद के जरिये इन्हीं लोगों को आकर्षित करती थी, यही काम अब बीजेपी करना चाहती है. कुछ लोग तो उन्हें संभावित मुख्यमंत्री कैंडिडेट की तरह भी देख रहे हैं. 3. जुगल किशोर: BSP से आए पूर्व राज्यसभा सांसद. दलित चेहरा. BS4 के समय से कांशीराम से जुड़े थे. बीजेपी ज्यादा से ज्यादा संख्या में दलित नेताओं को जोड़ना चाहती है. भले ही वो एक ही सीट पर असर डालें. जुगल किशोर जनवरी में बीजेपी में आए थे, जब लक्ष्मीकांत बाजपेई बीजेपी के प्रदेश मुखिया थे. बाजपेई ने साफ-साफ कहा था कि सपा संगठन को मजबूत करने में अहम रोल निभा चुके जुगल किशोर दलितों को बीजेपी से जोड़ने में कारगर होंगे. उसी दिन मायावती का जन्मदिन था. बाजपेई ने कहा था, 'ये मायावती को हमारा गिफ्ट है.' 4. राजेश त्रिपाठी: BSP से आए गोरखपुर के चिल्लूपार से विधायक. इस बार इनका टिकट भी कटने वाला था, इसलिए बीजेपी में आ गए. प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे हैं. दबंग टाइप के नेता हैं. महादबंग हरिशंकर तिवारी को चुनाव हराने वाले यही थे. पहले पत्रकार थे. फिर मुक्तिपथ ट्रस्ट बनाकर चर्चा में आए. खुद Whatsapp और फेसबुक पर लिखकर बसपा कार्यकर्ताओं को बताया था कि पार्टी छोड़ रहा हूं. विधान परिषद चुनाव से पहले ही उन्हें पार्टी ने सस्पेंड कर दिया था. 5. बाला प्रसाद अवस्थी: BSP से आए लखीमपुर जिले की मोहम्मदी सीट से विधायक हैं. पहली बार 1991 में बीजेपी के टिकट पर ही विधायक बने थे. 6. शेर बहादुर: सपा से आए अंबेडकरनगर के जलालपुर से विधायक हैं. पहले बसपा में थे. 7. संजय प्रताप जायसवाल: कांग्रेस से आए बस्ती के रुधौली से सिटिंग विधायक हैं. 8. विजय कुमार दुबे: कांग्रेस से आए कुशीनगर के खड्डा से विधायक हैं. राज्यसभा में क्रॉस वोटिंग की वजह से सस्पेंड किए गए थे. 9. माधुरी वर्मा: कांग्रेस से आईं बहराइच के नानपारा से विधायक हैं.
बीजेपी ने जो 81 लोगों की लिस्ट बनाई है, उनमें से कुछ बीजेपी में आ चुके हैं और बचे हुए नेताओं को लाने में बड़ी 'आतुर' बताई जा रही है, यह मानते हुए कि ये नेता बहुत जरूरी वोट दिलवाकर कुछ सीटों पर पार्टी को फायदा पहुंचा सकते हैं. पिछली बार बीजेपी को 403 में से सिर्फ 48 सीटें मिली थीं. 'हिंदुस्तान टाइम्स' से एक बीजेपी के अधिकारी के हवाले से छापा था, 'विरोधी पार्टियों के नेता आएंगे तो ये माहौल बनेगा कि बीजेपी जीत रही है.' ये स्ट्रैटजी 2014 लोकसभा चुनाव में काम कर गई थी, लेकिन दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनावों में फुस्स हो गई थी. लेकिन कांग्रेस ने बहुत ही 'पिन पॉइंटेड' नीति अपनाई है. शीला दीक्षित को कैंडिडेट बनाकर ब्राह्मणों को साधा है. कांग्रेस के कार्यकर्ता पोस्टर लगा रहे हैं कि दशकों बाद यूपी में कोई ब्राह्मण मुख्यमंत्री होना चाहिए. ऐसा लगता है कि उसकी मुख्य कोशिश बीजेपी को नुकसान पहुंचाने की ही है. इसलिए बीजेपी सचेत तो है ही.

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