12 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने देश के सबसे लंबे समुद्री पुल Atal Setu का उद्घाटन किया. आधिकारिक तौर पर इसे अटल बिहारी वाजपेयी सेवरी-न्हावा शेवा अटल सेतु कहा जा रहा है. पुल का उद्घाटन तो हो गया, गाड़ियां भी दौड़ने लगीं. लेकिन जिन किसानों ने इस प्रॉजेक्ट के लिये अपनी बेशकीमती ज़मीन दी, उनमें से कई को वाजिब मुआवज़ा अभी तक नहीं मिला था. अब Bombay High Court ने मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक (MTHL) के मामले में राज्य सरकार को झटका देते हुए शीघ्र मुआवजा देने का निर्देश दिया है.
प्रधानमंत्री ने अटल सेतु का उद्घाटन कर दिया, किसानों को मुआवज़े की राह अब जाकर खुली
बंबई उच्च न्यायालय ने सरकार को हुक्म दिया कि 2013 की नीति के मुताबिक मुआवज़ा अविलंब दिया जाए. सरकार पुराने कानून के मुताबिक चल रही थी, जो 1894 में बना था.

बॉम्बे हाई कोर्ट ने MTHL के जमीन अधिग्रहण के संबंध में जारी सरकारी आदेश को रद्द कर दिया है. क्योंकि अब अटल सेतु का काम पूरा चुका है, वो आम लोगों के लिए खोल दिया गया है, तो किसान जमीन के बजाय अब मुआवजा लेने के इच्छुक हैं. लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने सरकार को आदेश देते हुए 2013 के नए जमीन अधिग्रहण कानून के तहत शीघ्र मुआवजा देने की बात कही है.
जस्टिस बीपी कुलाबावाला और जस्टिस एमएम सथाए की बेंच मामले की सुनवाई की. बेंच ने 16 जनवरी को किसानों के पक्ष में फैसला सुनाया. जजों ने माना कि इस मामले में तय समय में जमीन के मुआवजे को लेकर आदेश जारी नहीं किया गया था. किसानों को नए कानून के हिसाब से मुआवजा मिलना चाहिए. क्योंकि काफी समय से वो अपनी जमीन से वंचित हैं.
सरकार ने साल 2009 में अटल सेतु के लिए नवी मुंबई में जसई के किसानों की 7 हेक्टेयर से अधिक जमीन का अधिग्रहण किया था. ये जमीन भूमि अधिग्रहण के 1894 के कानून के तहत किसानों से ली गई थी. इसके बाद इसे सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (CIDCO) और मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीज़न डेवलपमेंट ऑथॉरिटी (MMRDA) को सौंप दिया गया था. साल 2015 में पुराने कानून के तहत मुआवजा अवॉर्ड किया गया था. जबकि जमीन अधिग्रहण का पुराना कानून 2013 में ही रद्द किया जा चुका था. मुआवजे के आदेश को कानून के खिलाफ बताते हुए 25 किसानों ने एडवोकेट राहुल ठाकुर के जरिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013 के सेक्शन 24(1) और सेक्शन 25 का जिक्र किया. कोर्ट ने कहा कि पुराने जमीन अधिग्रहण कानून के तहत ली गई जमीन का मुआवजा 1 जनवरी 2014 से एक वर्ष के भीतर पारित किया जाना चाहिए था. मामले में औरंगाबाद बेंच के स्टे पीरियड को हटा दिया जाए, तब भी मुआवजा 20 मार्च 2015 तक पारित हो जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मुआवजा 22 अप्रैल 2015 को पारित किया गया. जो कि एक साल की अवधि से अधिक है.
सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार के उस तर्क को भी खारिज कर दिया जिसमें दावा किया गया था कि जमीन की नपाई के दौरान किसानों की तरफ से विरोध किया गया था. जिसके कारण मुआवजे का आदेश पारित करने में देरी हुई थी. कोर्ट ने ये भी माना कि याचिका दायर करने में किसी भी तरह की देरी नहीं की गई थी.
वीडियो: देश का सबसे लंबा पुल है समुद्र पर बना 'अटल सेतु', 17 हजार करोड़ वाला ये ब्रिज दिखता कैसा है?