बिहार के सुपोल जिले का सरायगढ़ गांव. NH-57 पर है ये गांव. पूरी तरह से बंदरों के कब्जे में है. मैं बंदरों के इस आतंक को महसूस इसलिए कर सकता हूं, क्योंकि मेरे गांव में भी बंदरों की यही कहानी है. बस लोग गांव नहीं छोड़ रहे हैं. कुछ ही बंदर थे जो कोई मेरे गांव में छोड़ गया था. अब मैं देखता हूं तो कोई बंदर मुझे ऐसा नजर नहीं आता जिसकी बॉडी से कोई बच्चा चिपटा नजर न आए. नजर बचे तो घर से सामान निकाल कर ऐसे ले जाते हैं जैसे वो घर के एक-एक कोने से वाकिफ हैं.तो हां, हम बात कर रहे थे. गांव सरायगढ़ की. गांव के लोग बताते हैं कि तीन साल पहले एक दर्जन बंदर गांव में आए थे. जो अब 400 हो गए. बंदरों ने जीना मुहाल कर दिया है. घर से सामान उठा ले जाते हैं. इसको तो झेल लिया जाता है. लेकिन रास्तों में अकेले नहीं निकल सकते. झपट पड़ते हैं. काटने को दौड़ते है. लोगों को जख्मी कर देते हैं. सबसे ज्यादा मुश्किल ये है कि बच्चों के लिए ये खतरनाक साबित हो रहे हैं. लोगों की लाठी साथ लेकर चलना पड़ता है. कोई सड़क ऐसी नजर नहीं आती जहां बंदरों का कब्जा न हो. गांव में रहने वाली इंद्रा देवी बताती हैं, जिंदगी नर्क बन गई है. खौफ बना रहता है. कई लोगों को जख्मी कर दिया, जिन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा. गांव के प्रधान विजय यादव का कहना है कि लोग गांव छोड़ रहे हैं. कई लोग तो गांव छोड़कर भी जा चुके हैं. जिला प्रशासन से शिकायत की है. ब्लॉक डेवलपमेंट अफसर दावा कर रहे हैं कि हम लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. जल्दी ही प्रॉब्लम सॉल्व कर ली जाएगी. लेकिन कब सॉल्व होगी. लोगों के गांव से जाने के बाद? ये कुछ पता नहीं अफसर को.
एक ऐसा गांव जहां बंदर रहने लगे और लोग घर छोड़ कर जा रहे हैं
बंदरों का इतना आतंक. लाठी साथ न हो लोगों को जख्मी कर दें. बिहार में है ये गांव. पढ़ लो.
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फोटो - thelallantop
बंदर. जब खोखिया के झपटते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मेरे साथ तो ऐसा ही होता है, तुम्हारे साथ क्या होता है, ये तुम ही जानो. ये बंदरों का खौफ ही तो है, जो बिहार के एक गांव में लोग गांव छोड़ने को मजबूर हो गए. जीना मुश्किल कर दिया है. काटने को दौड़ते हैं. लोग लाठीमैन बन गए हैं. गांव में एक दर्जन बंदर आए थे तीन साल पहले. परिवार नियोजन का ख्याल नहीं रखा तो अब 400 बंदर हो गए.
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