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भगत सिंह का 14 फरवरी से एक कनेक्शन है

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 14 फरवरी को फांसी नहीं दी गई. लेकिन ये तारीख उनसे जुड़ी हुई है.

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पिछले कुछ सालों से 14 फरवरी के आस-पास सोशल मीडिया पर एक मेसेज खूब घूमता है. कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी 14 फरवरी को दी गई थी. आपने कई जगह पढ़ा होगा कि ये फर्जी बात है. हम कहते हैं कि इस तारीख का सच में ही भगत सिंह के साथ रिश्ता है.

पिछले कुछ सालों से 14 फरवरी पर एक रस्म बन गई है. वैलेंटाइंस डे का विरोध. कुछ लोगों के भीतर विदेशों का इतना डर पैठ गया है कि उनको विदेश से आने वाली हर चीज में विषाणु नजर आते हैं. इसी का नतीजा है एक मेसेज. जो हर साल 14 फरवरी के आसपास इंटरनेट और सोशल मीडिया पर टहलता रहता है. मेसेज, जिसमें लोगों से अपील की जा रही है कि वो 14 फरवरी को बतौर शहीद दिवस मनाएं. कि इसी दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी.

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14 फरवरी का भगत सिंह के साथ रिश्ता तो है अगर आप ये खबर पढ़ रहे हैं, तो शायद आपको पहले से पता होगा. कि ये फर्जी बात है. कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च को फांसी पर चढ़ाया गया था. और 23 मार्च, 23 मार्च को ही आता है. 14 फरवरी को नहीं आता. मगर इस तारीख का भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव, इन तीनों से एक रिश्ता जरूर है. ये तारीख इन तीनों के साथ जुड़ी हुई है.


इस मेसेज के मुताबिक, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च नहीं, बल्कि 14 फरवरी के दिन फांसी दी गई थी. इसीलिए हिंदुस्तान के लोगों को ये दिन वैलेन्टाइन्स डे के तौर पर नहीं, बल्कि शहीद दिवस के तौर पर मनाना चाहिए.
इस फर्जी मैसेज के मुताबिक, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च नहीं, बल्कि 14 फरवरी के दिन फांसी दी गई थी. इसीलिए हिंदुस्तान के लोगों को ये दिन वैलेन्टाइन्स डे के तौर पर नहीं, बल्कि शहीद दिवस के तौर पर मनाना चाहिए.

पंडित मालवीय ने वायसराय इरविन को इंसानियत का वास्ता दिया था 14 फरवरी, 1931. पंडित मदन मोहन मालवीय. वो ही मालवीय, जिन्होंने बनारस में यूनिवर्सिटी बनाई थी. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी. BHU. इन दिनों भारत का वायसराय था इरविन. मालवीय ने इरविन के सामने एक अपील दायर की. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की सजा माफ किए जाने की विनती की. कहा कि वायसराय अपनी ताकत का इस्तेमाल कर उनकी फांसी की सजा माफ कर दें. मालवीय ने इरविन को इंसानियत का वास्ता दिया.

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14 फरवरी, 1931 के ही दिन पंडित मालवीय ने उस समय भारत के वायसराय रहे इरविन को अपनी अपील भेजी थी. इसमें उन्हें इंसानियत दिखाते हुए भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की सजा माफ करने की अपील की गई थी.
14 फरवरी, 1931 के ही दिन पंडित मालवीय ने उस समय भारत के वायसराय रहे इरविन को अपनी अपील भेजी थी. उनसे इंसानियत दिखाते हुए भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की सजा माफ करने की अपील की थी.

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की भूख हड़ताल पर बोले... पंडित मालवीय ने एक ही बार कोशिश नहीं की. एक बार विधानसभा में हो रही बहस के दौरान उन्होंने भगत और बटुकेश्वर की जेल में की गई भूख हड़ताल पर बोलते हुए कहा था:


मैं आप लोगों को और वरिष्ठ अधिकारियों को बताना चाहता हूं कि वो लोग (भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त) साधारण अपराधी नहीं हैं. उन्होंने अपने भले के लिए, खुद के लिए कुछ हासिल करने को कुछ नहीं किया. सरकार की ओर से ये पहली गलती थी. सरकार इस बात को नहीं समझ पाई कि ये लोग जिन्हें केस चलाने के लिए लाहौर लाया गया है, वो बहुत ऊंचे आदर्शों वाले लोग हैं. उन्हें इस बात से शिकायत थी कि उनके साथ विचाराधीन कैदी के तौर पर बर्ताव किया जा रहा है. उन्होंने सरकारी अधिकारियों को चिट्ठी लिखकर अपना विरोध भी दर्ज कराया. इन चिट्ठियों में से एक वो चिट्ठी है जो खुद भगत सिंह ने लिखी थी. 17 जून, 1930 को.
राजगुरु और भगत सिंह लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना चाहते थे. दिसंबर 1928 को राजगुरु के ही हाथों चली एक गोली ने ब्रिटिश ऑफिसर जॉन सैंडर्स की जान ले ली. मगर ये वो ऑफिसर नहीं था, जिसकी उन्हें तलाश थी. उन्हें जेम्स स्कॉट की तलाश थी.
दिसंबर 1928 को राजगुरु के ही हाथों चली एक गोली ने ब्रिटिश ऑफिसर जॉन सैंडर्स की जान ले ली. मगर ये वो ऑफिसर नहीं था, जिसकी उन्हें तलाश थी. उन्हें जेम्स स्कॉट की तलाश थी. लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए.

भगत सिंह लाहौर सेंट्रल जेल में बंद थे जिस वक्त मालवीय ये बोल रहे थे, उस वक्त भगत सिंह लाहौर सेंट्रल जेल में बंद थे. उनके साथ बटुकेश्वर दत्त भी थे. दोनों को असेंबली बम केस में सजा सुनाई गई थी. 12 जून, 1929 वो तारीख थी जब दोनों को इस मामले में सजा सुनाई गई थी. अदालत के फैसले के बाद उन्हें दिल्ली से लाहौर लाया गया. ट्रेन से. दोनों एक ही ट्रेन से लाए गए, मगर अलग-अलग डब्बों में बैठाकर. फिर बटुकेश्वर दत्त को लाहौर सेंट्रल जेल भेज दिया गया. और भगत सिंह को मीनावाली जेल. जो पुलिस सर्जेंट उनके साथ था, उसकी इन दोनों से जरा हमदर्दी थी.


वैलेन्टाइन डे को विदेशी संस्कृति की चीज मानकर इसके विरोध में पागल हो जाना. फिर इसके विरोध में इतने बड़े झूठ गढ़ना. कितनी बीमार सी सोच है ये.
वैलेंटाइंस डे को विदेशी संस्कृति की चीज मानकर इसके विरोध में पागल हो जाना. फिर इसके विरोध में इतने बड़े झूठ गढ़ना. ताकि लोगों की भावनाओं को कैश किया जा सके. कितनी बीमार सी सोच है ये.

लाहौर पहुंचने से कुछ देर पहले बटुकेश्वर से मिले भगत ट्रेन के लाहौर पहुंचने से कुछ स्टेशन पहले वो भगत को बटुकेश्वर से मिलाने लाया. वहां भगत और बटुकेश्वर के बीच आगे की प्लानिंग हुई. भगत सिंह ने बटुकेश्वर से कहा कि जेल पहुंचते ही भूख हड़ताल शुरू कर दें. असल में वो चाहते थे कि सरकार उनके साथ राजनैतिक बंदियों की तरह बर्ताव करे. जेल की स्थितियां बेहतर करे. कैदियों को अच्छा खाना मुहैया कराए. कैदियों की सेहत का भी ख्याल रखा जाए. जिसको जो किताब चाहिए हो, उसे वो किताब उपलब्ध कराई जाए. मगर सरकार ने इनमें से किसी भी मांग को मानने से इनकार कर दिया था. उसी के विरोध में भूख हड़ताल की प्लानिंग की गई थी. दोनों ने 14 जून, 1929 को ये अनशन शुरू किया था. और ये चला कब तक? ये अक्टूबर के पहले हफ्ते तक चला. सरकार को उनकी कई मांगें माननी पड़ी.

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इसकी चर्चा पूरे देश में हुई. और पंडित मालवीय ने विधानसभा में जो कहा, वो इसी सिलसिले में कहा.

बाकी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का क्या इतिहास है, इस पर नया क्या लिखें. वो वैसा ही है, जैसा था. फर्जी खबरें बनाने और फैलाने से इतिहास नहीं बदलता है.



वीडियो:

भगत सिंह वाली टी-शर्ट पहनने वाले उनके विचारों को कितना समझते हैं

इस क्रांतिकारी को भगत सिंह के साथ फांसी नहीं हुई तो हमने भुला दिया

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