20 जनवरी 2025 को डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति का पद संभाला. शपथ ग्रहण के बाद ही ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को डिपोर्ट करने के लिए कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए. ट्रंप प्रशासन ने अवैध प्रवासियों को वापस भेजने के लिए मिलिट्री एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल किया. इनमें से एक बड़ा उदाहरण तब सामने आया जब भारत में अमेरिकी मिलिट्री का C-17 प्लेन अवैध भारतीय प्रवासियों को लेकर लैंड हुआ. हालांकि अब अमेरिकी सरकार ने यह फैसला किया है कि वो डिपोर्टेशन के लिए मिलिट्री एयरक्राफ्ट का सहारा नहीं लेगी.
अमेरिका ने की तौबा, अवैध प्रवासियों को मिलिट्री एयरक्रॉफ्ट से वापस नहीं भेजेगा
डोनल्ड ट्रंप शासन ने अवैध प्रवासियों (Illegal Immigrants) को वापस भेजने के लिए मिलिट्री एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल किया था. अब अमेरिकी सरकार ने इन प्रवासियों को मिलिट्री एयरक्राफ्ट से वापस भेजने का फैसला बदल लिया है. जानिए, अमेरिका ने यह कदम क्यों उठाया.

वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप प्रशासन के दौरान अवैध प्रवासियों को डिपोर्ट करने के लिए मिलिट्री एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन अब यह प्रक्रिया महंगी पड़ने की वजह से अमेरिका ने इसे बंद करने का फैसला किया है. अमेरिकी सरकार इन एयरक्राफ्ट्स का इस्तेमाल ग्वांतानामो बे और अन्य जगह पर अवैध प्रवासियों को भेजने के लिए कर रही थी.
असल में मिलिट्री एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल डिपोर्टेशन के लिए बहुत महंगा साबित हुआ. अमेरिका ने प्रवासियों से जुड़ी जानकारी का खुलासा नहीं किया है. इस बारे में कोई डेटा सामने नहीं आया है कि इमीग्रेशन और कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) ने अमेरिका के भीतर और बॉर्डर पर कितने अवैध प्रवासियों को पकड़कर डिपोर्ट किया है.
फ्लाइट-ट्रैकिंग डेटा के अनुसार, अमेरिकी सरकार ने मिलिट्री एयरक्राफ्ट C-17 के ज़रिए 30 फ्लाइट्स भेजीं, जबकि C-130 एयरक्राफ्ट के साथ लगभग आधा दर्जन फ्लाइट्स रवाना की गईं. इन फ्लाइट्स के जरिए अवैध प्रवासियों को भारत, ग्वाटेमाला, इक्वाडोर, पेरू, होंडुरास, पनामा और ग्वांतानामो बे भेजा गया.
मिलिट्री एयरक्राफ्ट की उड़ान लंबी होती थी, और सवारियों की संख्या कम होने के कारण यह सामान्य हवाई जहाज के मुकाबले कहीं ज्यादा महंगा पड़ा. रिपोर्ट के अनुसार, भारत भेजी गई हरेक डिपोर्टेशन फ्लाइट का खर्च लगभग 3 मिलियन डॉलर (करीब 27 करोड़ रुपये) था. वहीं, ग्वांतानामो बे भेजे गए प्रवासियों पर प्रति व्यक्ति 20,000 डॉलर (करीब 17.40 लाख रुपये) का खर्च आया.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, एक सामान्य यूएस इमीग्रेशन और कस्टम्स एनफोर्समेंट फ्लाइट की प्रति घंटे लागत 8,500 डॉलर (लगभग 7.39 लाख रुपये) होती है. इंटरनेशनल ट्रैवल के लिए यह खर्च प्रति घंटे 17,000 डॉलर (करीब 14.79 लाख रुपये) के करीब है. वहीं, अमेरिकी ट्रांसपोर्टेशन कमांड के अनुसार, भारी माल और सैनिकों को ले जाने के लिए डिज़ाइन किए गए C-17 को उड़ाने की लागत प्रति घंटे 28,500 डॉलर (लगभग 24.80 लाख रुपये) है.
C-17 मिलिट्री एयरक्राफ्ट से प्रवासियों को डिपोर्ट करना न केवल महंगा था, बल्कि इन फ्लाइट्स को लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी. इससे लागत और भी बढ़ जाती थी. यही वजह है कि अमेरिका को यह महंगा तरीका बंद करना पड़ा.
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