यूपी या बिहार के किसी कस्बे में अगर आप किसी बीमार शख्स से कहेंगे कि दिल्ली जाकर AIIMS में इलाज करा लो, तो वो कोहनी से हाथ जोड़ लेगा. क्योंकि देश के इस सबसे समृद्ध सरकारी अस्पताल के बारे में ऐसी धारणाएं बन चुकी हैं कि आम आदमी तो इलाज करा ही नहीं सकता. और AIIMS के डायरेक्टर ने एक और फरमान जारी किया है, जिसे AIIMS में VIP कल्चर बढ़ाने की तरह देखा जा रहा है और डॉक्टर भी इस आदेश के ख़िलाफ़ बोलने लगे हैं.
AIIMS में जल्दी इलाज पाने का अचूक तरीक़ा - सांसद से दोस्ती कर लो, वरना लाइन में लगना पड़ेगा!
डॉक्टर भड़के, कहा AIIMS का ये नया आदेश VIP कल्चर को बढ़ावा दे रहा है!

दरअसल इसी महीने की 17 तारीख को एम्स के डायरेक्टर डॉक्टर एम श्रीनिवास ने एक SOP (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) जारी किया. ये SOP 'माननीय सांसदों' के इलाज के लिए जारी की गई है. आजतक की खबर के मुताबिक इसमें कहा गया
- एम्स प्रशासन के कंट्रोल रूम में एक ड्यूटी ऑफिसर हर समय तैनात रहेगा. ड्यूटी ऑफिसर भी अस्पताल का एक डॉक्टर ही होगा.
- ड्यूटी ऑफिसर की जिम्मेदारी होगी कि सांसद को बिना देरी सबसे अच्छा इलाज मुहैया कराया जाए. इसके लिए तीन लैंडलाइन और एक मोबाइल की व्यवस्था की गई है.
- सचिवालय या सांसद के पर्सनल स्टाफ में से कोई भी उनके बीमार होने की जानकारी एम्स में तैनात ड्यूटी ऑफिसर को देगा. वो ये भी बता सकता है कि सांसद किस डॉक्टर को दिखाएंगे.
- ड्यूटी ऑफिसर उस डॉक्टर से संपर्क करेगा और अगर कोई गंभीर बीमारी है तो संबंधित विभाग के अध्यक्ष से भी बता कर सकता है.
- जिस दिन का अपॉइंटमेंट होगा, उस दिन सांसद, एम्स के कंट्रोल रूम में पहुंचेंगे और वहां से अस्पताल का प्रशासन उन्हें डॉक्टर तक पहुंचाएगा.
लेकिन इस चिट्ठी के अंत में एक और लाइन लिखी है जो देश के गांव कस्बे में इलाज के लिए मोहताज लोगों को घावों को और कुरेदेगी. इसमें लिखा है कि अगर कोई व्यक्ति किसी सांसद की सिफारिश से एम्स में इलाज कराने आता है तो अस्पताल का मीडिया और प्रोटोकॉल डिवीज़न उसे उचित सहायता देगा.
डॉक्टर कर रहे विरोधइंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (FAIMA) ने इस संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को लिखित शिकायत दी है.

FAIMA के नेशनल प्रेसिडेंट रोहन कृष्णन ने इस निर्णय की निंदा करते हुए कहा है
“AIIMS देशभर के डॉक्टरों और अस्पतालों के लिए एक प्रेरणा है. उस अस्पताल में ऐसे VVIP को लागू करना डॉक्टरों का मनोबल गिराता है. हम प्रधानमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से निवेदन करते हैं कि इसे सज्ञान लें और ऐसे आदेश को तुरंत वापस लिया जाए.”
इसके अलावा फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) ने इस SOP की निंदा की है. FORDA INDA नाम से ट्विटर हैंडल पर कहा गया है,
“हम इस वीआईपी संस्कृति की निंदा करते हैं. किसी भी मरीज को दूसरे के विशेषाधिकारों से नुकसान नहीं होना चाहिए. ऐसा कहा जा रहा है कि चीजों को सुव्यवस्थित करने के लिए बनाए इस ‘प्रोटोकॉल’ को अपमानजनक नहीं मानना चाहिए, लेकिन इससे किसी बाकी रोगियों की देखभाल में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए.”
इस मामले में अबतक सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. लेकिन एम्स की तरफ से एक ट्वीट किया गया है, जिसे इस पूरे मसले पर AIIMS की प्रतिक्रिया की तरह से देखा जा रहा है,
“एम्स नई दिल्ली में सभी रोगियों के इलाज के समन्वय के लिए हमेशा से ही 24×7 नियंत्रण कक्ष रहा है. अस्पताल प्रशासन विभाग के रेज़िडेंट और फैकल्टी इलाज की प्रक्रिया को आसान बनाने और गरीबों के इलाज में तेजी लाने के लिए यहां काम कर रहे हैं.”
खैर, हिंदी अखबार हिंदुस्तान में एक खबर छपी है. इसमें बताया गया है कि मरीज एम्स में दिखाने के लिए एक दिन पहले दोपहर में नंबर लगा रहे हैं. यानी अगर आपको कल डॉक्टर को दिखाना है तो आज दोपहर से ही लाइन में लगना पड़ेगा. लेकिन जो आज लाइन में लग रहे हैं शायद उन्हें इस बात का इल्म भी होगा कि अगर उनके इलाज में ऑपरेशन की जरूरत पड़ती है तो उसकी डेट मिलने में महीनों लग सकते हैं. साल भर भी लग सकता है. टिप्पणीकार कहते हैं कि हमारे और आपके टैक्स के पैसों से हमें इलाज मिलने में इंतज़ार का एक लंबा वक्फ़ा है. लेकिन सांसद चले जाएँ या किसी के इलाज वास्ते लिख दें तो इन्हीं टैक्स के पैसों पर इलाज के लिए सहूलियत बरत दी जाती है.
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