जिस मंदिर को निशाना बनाया गया है, उसके परिसर में संत परमहंस दयाल जी महाराज की समाधि थी. सिंध से हिंदू यहां दर्शन करने आते थे. इस मंदिर के नवीनीकरण और विस्तार का काम हो रहा था. जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम नाम की पार्टी इसका विरोध कर रही थी. पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार डॉन के अनुसार, चश्मदीदों ने बताया कि मंदिर पर हमले से पहले मौलवियों की बैठक हुई थी. जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के नेतृत्व में भीड़ मंदिर के सामने जुटी. उग्र भीड़ नारे लगा रही थी कि मंदिर में किसी तरह का निर्माण नहीं होने दिया जाएगा. डॉन ने चश्मदीदों के हवाले से बताया कि स्थानीय मौलवी के उग्र समर्थक मंदिर पर टूट पड़े. देखते ही देखते आग लगा दी गई. कट्टरपंथियों की भीड़ ने मंदिर के नए बन रहे परिसर के साथ-साथ पुराने परिसर को भी गिरा दिया. वीडियो में देखा जा सकता है कि भीड़ में शामिल लोग इस्लामी नारे लगा रहे थे.
पाकिस्तान में मानवाधिकार मामलों के संसदीय सचिव लालचंद मल्ही ने इस घटना को लेकर कहा–
“पाकिस्तान में कुछ ऐसे समूह सक्रिय हैं, जो इस तरह की असामाजिक घटनाओं को अंजाम देकर देश का नाम ख़राब करना चाह रहे हैं. सरकार ऐसी किसी भी घटना को बर्दाश्त नहीं करेगी.”पेशावर के हिंदू नेता हारुन सरब दयाल ने कहा–
“इस मंदिर परिसर में हिंदू धर्म गुरु की समाधि थी. हर गुरुवार को देशभर से तमाम हिंदू यहां पूजा करने आते थे. लेकिन इस घटना से उन सभी हिंदुओं की भावनाएं आहत हुई हैं. इमरान खान पाकिस्तान में धार्मिक सद्भाव को प्रचारित करते हैं, जबकि सच ये है कि इस देश में अल्पसंख्यकों के धर्मस्थल ही सुरक्षित नहीं हैं.”

मंदिर पर हमले के विरोध में कराची में गुरुवार को प्रदर्शन किया गया.
पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के चीफ डॉ. रमेश कुमार ने पाकिस्तान के चीफ जस्टिस से मिलकर घटना का जानकारी दी और चिंता जताई. पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर संज्ञान लेते हुए एक सदस्यीय अल्पसंख्यक आयोग गठित किया है. कहा है कि आयोग ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के मुख्य सचिव और IG के साथ घटनास्थल पर जाएं, और 4 जनवरी तक घटना पर रिपोर्ट पेश करें. अगली सुनवाई 5 जनवरी को सुनवाई होगी.
बता दें, पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों में हिंदुओं की संख्या सबसे ज्यादा है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, करीब 75 लाख हिंदू वहां रहते हैं. जबकि पाकिस्तान की हिंदू कम्युनिटी ये आंकड़ा 90 लाख के आस-पास का बताती है.