चीन को देखकर कभी कभी उस मीम की याद आती है. प्यारा सा एक बच्चा चारों ओर उंगली दिखाते हुए कह रहा है, तू भी मेरा, ये भी मेरा, अलाना भी मेरा, फलाना भी मेरा, ढिकाना भी मेरा और वो, वो तो मेरा था ही. साल 2017 की बात है. आर्मी चीफ़ बिपिन रावत ने चीन के साथ बॉर्डर तनाव के मसले पर कहा, भारत टू एंड हाल्फ मोर्चों पर लड़ाई के लिए तैयारी रखता है. चीन के विदेश मंत्री का जवाब आया, "भारत को इतिहास याद रखना चाहिए". इतिहास यानी 1962 का युद्ध. इतिहास की बात तो हम करेंगे ही. और एकदम शुरू से करेंगे लेकिन पहले एक दिलचस्प बात और सुनिए. इसी मुद्दे पर सवाल जवाब के दौरान जब चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से पूछा गया, "डोकलाम के मुद्दे पर भूटान के सवाल का चीन के पास क्या जवाब है". तो प्रवक्ता ने लगभग इसी लहजे में बोला, अरे डोकलाम, वो तो हमारा था ही. इसीलिए हमने कहा, चीन को देखकर मीम याद आता है, अरुणाचल मेरा, ताइवान मेरा, भूटान मेरा, साऊथ चाइना सी मेरा, और अक्साई चिन? वो तो मेरा था ही. मीम और असलियत में अन्तर ये है कि चीन प्यारा सा बच्चा नहीं है. महाशक्ति है. इस सच से हम कतई इंकार नहीं कर सकते. इसलिए साल 2023, ब्रिक्स सम्मेलन के तुरंत बाद जब चीन अपना नक्शा जारी करता है, हम कतई इस फेर में नहीं रह सकते कि ये तो चीन हमेशा करता रहता है. अपने हिस्से की बात हमें कहनी होगी. और उसके लिए पहले अच्छे से समझनी होगी.