साल 2005 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ भारत आए. भारत दौरे के एक हिस्से में उनकी और तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की मुलाक़ात होनी थी.
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मुशर्रफ़ और उनका क़ाफ़िला राष्ट्रपति भवन पहुंचा. कलाम ने उनका स्वागत किया और मेज़ पर उनके ठीक बग़ल में बैठ गए.

पीके नायर कलाम के सचिव थे. मुलाक़ात से एक दिन पहले नायर कलाम से मिले और उन्हें चेताया,
'सर मुशर्रफ़ ज़रूर कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे."
कलाम ने नायर से कहा, "चिंता मत करो, मैं सम्भाल लूंगा".
अगले रोज़ मुशर्रफ़ और उनका क़ाफ़िला राष्ट्रपति भवन पहुंचा. कलाम ने उनका स्वागत किया और मेज़ पर उनके ठीक बग़ल में बैठ गए. नायर ये सब देख रहे थे. उन्हें डर लग रहा था कि मुशर्रफ़ किसी भी वक्त कश्मीर के बारे में कुछ कहेंगे. और तब न जाने कलाम उनको क्या जवाब देंगे.
लेकिन ऐसा होता, उससे पहले ही कलाम ने बोलना शुरू कर दिया. और ग्रामीण विकास के एक कार्यक्रम पर मुशर्रफ़ को पूरे 26 मिनट तक लेक्चर देते रहे. लेक्चर ख़त्म हुआ इतने में मीटिंग का 30 मिनट का समय ख़त्म हो गया. मुशर्रफ़ धन्यवाद कहकर वापस लौटे गए. कश्मीर क्या, कलाम ने उन्हें कुछ भी कहने का मौक़ा नहीं दिया. नायर बताते हैं, उस रोज मैंने अपनी डायरी में लिखा,
"वैज्ञानिक कूटनीतिक भी हो सकते हैं.''