साल 1949. हिंदुस्तान में एक फिल्म बनी. नाम था, पतंगा. डायरेक्टर एच एस रावली. इस फिल्म में एक गाना था. स्टेज पर पांच बालाएं. सफेद शर्ट. काली बेल्ट. कुछ हल्के रंग की स्कर्ट. सब थिरक रही हैं. इन्हीं के बीच आती है एक नायिका. सलवार-कुर्ता पहने, चुन्नी ओढ़े एक युवती. और फिर शमशाद बेगम की आवाज में एक गाना गूंजता है: मेरे पिया गए रंगून, किया है वहां से टेलिफून... तुम्हारी याद सताती है... जिया में आग लगाती है… सोचिए. टेलिफोन न होता, तो देहरादून में बैठी बीवी रंगून में बैठे अपने पिया से कैसे बात करती? सोचिए, कबूतर से संदेशा भेजना पड़ता, उसमें भी डर कि किसी और के हाथ पड़ जाए. एक फोन के न होने से चीजें कितनी मुश्किल हो जाती हैं. आज कहानी इसी टेलीफोन की. और टेलीफोन बनाने वाले अलेक्जेंडर ग्राहम बेल की. जानने के लिए देखें तारीख का ये एपिसोड