साल 1971, दिसंबर महीने की बात है. भारत पाकिस्तान युद्ध की शुरुआत हुए महज 3 दिन हुए थे. जंग के मैदान में पाकिस्तान पिट रहा था लेकिन कुछ पाकिस्तानी फौजी जनरल पार्टी में मशगूल थे. इस्लामाबाद स्थित घर के जिस कमरे में ये पार्टी हो रही थी, उसे गुब्बारों से सजाया गया था. पार्टी पूरे शबाब पर थी लेकिन एक कमी थी. मुख्य अतिथि का आना बाकी था. रुतबे के हिसाब से पर्याप्त लेट लतीफी दिखाने के बाद वो मेहमान कमरे में दाखिल हुआ. उसके होंठों पर सिगार थी. कमरे में घुसते ही उसने सिगार हाथ में ली और कमरे में लगे गुब्बारों को सिगार से फोड़ने में जुट गया. पहला गुब्बारा फूटा और उसके मुंह से निकला, "ये गया जगजीवन राम". जगजीवन राम तब भारत के रक्षा मंत्री हुआ करते थे. अगले गुब्बारे पर वो बोला, "ये लो मानेकशॉ ख़त्म". तीसरे गुब्बारे तक भुट्टो का नामोनिशान मिट चुका था. और चौथे गुब्बारे में उसने अपने सबसे बड़े दुश्मन मुजीब को बर्बाद कर दिया था. गुब्बारों पर अपना गुबार निकालने वाला ये शख्स और कोई नहीं, पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान थे.