साल 1958 की बात है. बीजिंग के उस इलाके में जहां विदेशी दूतावास बने थे, उसे लोगों ने घेर रखा था. ढोल ताशे, चम्मच थाली, जो मिला लोग ले आए थे. और उन्हें बजाकर जबरदस्त शोर मचा रहे था. चीन का नाम सुनकर ये लग सकता है कि ये लोग किसी देश का किसी नेता का विरोध कर रहे होंगे. लेकिन असलियत कुछ और थी. चीन के लोगों की दुश्मन थी एक नन्ही सी जान. जो जान बचाने के लिए दूतावासों की बिल्डिंग्स में घुस गयी थी. लोग खून के प्यासे थे. माओ का फरमान था, मार दो. लिहाजा लाखों हत्याएं हो चुकी थी. नन्हीं सी कुछ जानें दूतावास में जाकर छिप गई. लेकिन उन्हें भी नहीं छोड़ा गया. माओ की जीत हुई. तीन महीने तक जश्न चला. लेकिन फिर असलियत सामने आई. असलियत जिसे श्राप कहना बेहतर होगा. क्योंकि इन हत्याओं ने चीन का वो हश्र किया कि चीन में भुखमरी शुरू हो गई. भाई ने भाई को मार डाला. लोग नर भक्षी बन गए. और तीन साल में साढ़े चार करोड़ लोग मारे गए. जैसा बताया, ये सब हुआ था एक नन्ही सी जान के कारण. दो दाने चुगने वाली, दो पंखों पर उड़ने वाली छोटी सी गौरैया. इस पूरी कहानी को जानिए आज के एपिसोड में.