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तारीख: कहानी मुरीदके कैंप की जिसे भारत ने धुंआ-धुंआ कर दिया

अजमल कसाब के लिए पढ़ी गई नमाज़ को पाकिस्तान के उर्दू मीडिया ने खुलकर छापा. लेकिन जब खबर इंटरनेशनल लेवल पर पहुंची तो सरकार बगलें झांकने लगी.

नवम्बर 2012. भारत-पाकिस्तान बॉर्डर से 30 किमी दूर एक कस्बा, मुरीदके. कस्बे का मरकज़-ए-तैयबा कॉम्प्लेक्स. इस कॉम्पलेक्स की मस्जिद में हजारों लोग इकठ्ठा हो रहे थे. यहां ग़ायबाना नमाज़-ए-जनाज़ा होना था.  मसलन ऐसी नमाज़ जो किसी मुस्लिम शख्स की मौत पर पढ़ी जाती है, जब उसका शव वहां मौजूद न हो. इस बार ये नमाज़ पढ़ी जा रही थी 26/11  हमले के आरोपी अजमल कसाब के लिए. जिसे भारत में फांसी दे दी गई थी.  इस नमाज़ के दौरान हमले का मास्टरमाइंड हाफ़िज़ सईद कसाब को ‘हीरो’ बताते हुए कह रहा था, “कसाब की शहादत बाकी युवाओं को आगे प्रेरित करती रहेगी. तारीख़ में आज कहानी लश्कर-ए-तैयबा के हेडक्वार्टर मरकज़-ए-तैयबा की, जिस पर इंडियन आर्मी ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत गहरी चोट की है.

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