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तारीख: कहानी भारत के पहले तलाक की जिसने महिलाओं को उनका अधिकार दिलाया

दादाजी बनाम रुख्माबाई मामले का फैसला आगे चलकर ‘एज ऑफ़ कंसेंट एक्ट - 1891’ के लिए नींव की तरह काम आया. इस कानून से, पहली बार महिलाओं की ‘विवाह की न्यूनतम उम्र’ निर्धारित हुई. आगे चलकर ये मामला शादी और वैवाहिक संबंधों से जुड़े कानूनों के लिए हमेशा एक बेंचमार्क बना रहा.

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‘एज ऑफ़ कंसेंट एक्ट - 1891’. इस कानून से, पहली बार महिलाओं की ‘विवाह की न्यूनतम उम्र’ निर्धारित हुई. आगे चलकर ये मामला शादी और वैवाहिक संबंधों से जुड़े कानूनों के लिए हमेशा एक बेंचमार्क बना रहा. 2016 में निर्देशक अनंत महादेवन ने ‘डॉक्टर रख्माबाई’ नाम से मराठी फिल्म के जरिए इनके किरदार को फ़िर से जीवंत किया. ‘22 नवंबर 2017 में रुख्माबाई के 153वें जन्मदिन पर डूडल बना कर गूगल ने भी उनके योगदान को सराहा था. तो जानते हैं क्या बाल विवाह की जंजीरों को तोड़ महिलाओं के अधिकारों की नींव रखना फेमिनिज्म है? क्या अपने अधिकारों के लिए ज़माने को चुनौती देना सही है? इस कहानी के केंद्र में एक महिला है. उसने अदालतों से लेकर समाज तक की लड़ाई लड़ी, जेल की सजा चुनी, लेकिन अपनी आजादी नहीं छोड़ी. क्यों महारानी विक्टोरिया को उनके मामले में दख़ल देना पड़ा? उनकी लड़ाई से क्या हासिल हुआ? जानने के लिए देखें तारीख का ये एपिसोड.
 

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