1990 में सरकार ने एक फैसला किया. प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार मंडल कमीशन और OBC आरक्षण लागू करने के लिए चर्चा में रही. लेकिन इन्हीं VP सिंह के कार्यकाल में गठन हुआ- एक फोर्स का. जो खास तौर पर आतंकियों का सफाया करने, उनके इनफॉर्मेशन से लेकर लॉजिस्टिक्स तक के नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए बनाई गई थी. इस फोर्स का नाम था- राष्ट्रीय राइफल्स का (Rashtriya Rifles). एक नाम जिसे सुनते ही- क्या बुरहान, क्या समीर टाइगर, सबके हाथ पांव फूलने लगते थे. क्योंकि राष्ट्रीय राइफल्स कभी रहम नहीं करती. इसके जवान चाहे खाना खा रहे हों या सो रहे हों, उनकी बंदूक और एक एक्स्ट्रा मैगजीन हमेशा लोडेड रहती है. वीडियो देखें.
तारीख: 'आतंकियों के लिए मौत का दूसरा नाम' राष्ट्रीय राइफल्स का इतिहास जान लीजिए
Rashtriya Rifles यानी RR. इसके गठन के पीछे एक लम्बी कहानी है. कहा जाता है कि अगर बैकग्राउंड की घटनाएं न होती तो RR की जरूरत ही नहीं पड़ती. क्योंकि घाटी में लॉ एंड आर्डर के लिए वहां की पुलिस, BSF और पैरामिलिट्री बल ही पर्याप्त थे. तो पहले समझते हैं इसके पीछे की कहानी.
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