साल 1998 से 2001 के बीच, अल-क़ायदा ने सिएरा लियोन के इन हीरों को सस्ते में खरीदा और फिर इन्हें यूरोप और अमेरिका के ब्लैक मार्केट में महंगे दामों पर बेचा. हपककर पैसा आया और इस पैसे का इस्तेमाल अल-क़ायदा ने किस काम में किया, ये बताने की ज़रूरत नहीं है. उस वक्त दुनिया के तमाम एयरपोर्ट्स पर डायमंड स्मगलिंग को पकड़ने की भी कोई ठोस व्यवस्था नहीं थी. इसलिए भी अल-क़ायदा का काम आसान हुआ. लेकिन बात फंडिंग तक ही सीमित नहीं रही. अल-क़ायदा ने इन हीरों का इस्तेमाल पैसे को सुरक्षित रखने के लिए भी किया. 9/11 के हमले से ठीक पहले, अल-क़ायदा ने अपने अमेरिकी बैंकों से पैसा निकालकर सिएरा लियोन से हीरे खरीदे. क्योंकि हीरे, स्टोर ऑफ़ वैल्यू के साथ-साथ करेंसी नोट्स जितनी जगह नहीं घेरते. अल-क़ायदा के इस तरीके को देखकर धीरे-धीरे बाकी आतंकी संगठन भी फंडिंग जुटाने के नए तरीके निकालने लगे. और इस तरह दुनिया में टेरर फंडिंग का ख़तरनाक खेल और भी व्यापक हो गया. क्या है आतंकी संगठनों की फंडिंग की कहानी? कैसे होता है पैसों का लेन-देन? जानने के लिए देखें पूरा वीडियो.
आसान भाषा में: अल-कायदा, ISIS के पास पैसे कहां से आते हैं?
उस वक्त दुनिया के तमाम एयरपोर्ट्स पर डायमंड स्मगलिंग को पकड़ने की भी कोई ठोस व्यवस्था नहीं थी. इसलिए भी अल-क़ायदा का काम आसान हुआ.
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