The Lallantop
Logo

एक कविता रोज़ में सुनिए चंद्रकांत देवताले की कविता - चीते को जुकाम होने से

'इस्पात के बीहड़ सपनों को देखते देखते कितनी थक गईं हैं आंखें/ईंट के भत्तों के पास बैठे बैठे तप गए हैं कितने दिन'

Advertisement

दी लल्लनटॉप का कविताओं से जुड़ा कार्यक्रम 'एक कविता रोज़'. आज के एपिसोड में हम आपके लिए लाए हैं चंद्रकांत देवताले की कविता. गजानन माधव मुक्तिबोध पर पीएचडी करने वाले देवताले इंदौर के एक कॉलेज में पढ़ाते थे. इनकी कविता में आपको समाज, साहित्य, संस्कृति से लेकर राजनीति तक मिलेगी. 2012 में चंद्रकांत देवताले को उनके कविता संग्रह ‘पत्थर फेंक रहा हूं’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया. आज एक कविता रोज़ में सुनते हैं चंद्रकांत देवताले की कविता - चीते को जुकाम होने से. देखिए वीडियो.

Advertisement

Advertisement
Advertisement