2012 में किसने ये सोचा था कि कांग्रेस के प्रथम परिवार पर लगे किसी आरोप के सिलसिले में सोनिया और राहुल गांधी को किसी केंद्रीय एजेंसी के सामने पेश होना पड़ेगा? लेकिन समय का पहिया घूमा और नेशनल हेराल्ड मामले में आज राहुल गांधी ED के सामने पेश हुए. ये कैसे हुआ कि जिस अखबार को जवाहरलाल नेहरू ने शुरू किया, उसी से जुड़े मसले में उनके परिवार की तीसरी पीढ़ी को बयान दर्ज कराने पड़े? जिस भी मामले में ED माने प्रवर्तन निदेशालय का नाम आ जाता है, लोग समझ जाते हैं कि माजरा क्या होगा -
> प्रभावशाली लोग होंगे
> बात पैसों के लेनदेन या हेरफेर से जुड़ी होगी
> और मामले में कहीं न कहीं एक राजनैतिक पेच होगा
क्या राहुल और सोनिया गांधी जेल जाएंगे?
ईडी के सामने पेश हुए राहुल गांधी, स्मृति ईरानी ने गांधी परिवार को घेरा


जिस नेशनल हेराल्ड मामले में वायनाड सांसद राहुल गांधी आज ED के सामने पेश हुए, उस मामले पर भी ये सारे बिंदू लागू होते हैं. लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं है. नेशनल हेराल्ड की कहानी स्वतंत्रता आंदोलन में राष्ट्रवादी प्रेस की भूमिका से शुरू होकर एक ऐसे सौदे तक जाती है, जिसके नतीजे में हज़ारों शेयरधारकों की एक धरोहर एक परिवार के स्वामित्व वाली कंपनी के तहत आ जाती है. और ये परिवार है - गांधी परिवार. राहुल की पेशी पर चलने से पहले ज़रूरी है कि हम इस मामले को शुरू से समझें -
नेशनल हेराल्ड को जवाहर लाल नेहरू ने निकालना शुरू किया था. साल था 1938 का. इसकी प्रकाशक थी असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड AJL नाम की कंपनी. AJL की स्थापना एक साल पहले, माने 1937 में हुई थी. इस कंपनी को खड़ा करने के लिए तब तकरीबन 5 हज़ार स्वतंत्रता सेनानी साथ आए थे. और इन सभी को AJL का शेयरधारक बनाया गया था. कंपनी का पूरा फोकस ऐसी रिपोर्टिंग पर था, जिसमें स्वाधीनता आंदोलन की ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी हो और अंग्रेज़ी दमन की आलोचना हो. इस मकसद के साथ AJL तीन अखबार निकालती थी, सब के सब राष्ट्रवादी विचारधारा वाले -
>नेशनल हेराल्ड - अंग्रेज़ी
>नवजीवन - हिंदी
>कौमी आवाज़ - उर्दू
इनमें से नेशनल हेराल्ड सबसे मशहूर हुआ. स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े तमाम भारतीय विचारकों और नेताओं के लेख इस अखबार में छपते और संपादकीय में रोज़ ही अंग्रेज़ सरकार की खटिया खड़ी की जाती, वो भी उनकी ही ज़बान - अंग्रेज़ी में. तंग आकर अंग्रेज़ सरकार ने 1942 में नेशनल हेराल्ड पर बैन लगा दिया. तीन साल तक अखबार दोबारा शुरू नहीं किया जा सका.
1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो जवाहर लाल नेहरू ने नेशनल हेराल्ड के बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया. क्योंकि वो प्रधानमंत्री बनने वाले थे. लेकिन कांग्रेस से नेशनल हेराल्ड का नाता जुड़ा रहा. अखबार के आर्थिक हित कांग्रेस से जुड़े रहे. लेकिन समय के साथ नेशनल हेराल्ड की पाठक संख्या घटने लगी तो अखबार घाटे में जाने लगा. 2008 में अखबार निकलना बंद हो गया. बंद होते समय कांग्रेस पार्टी और शेयरधारकों का अखबार पर 90 करोड़ रुपया बकाया था. इसके बाद आता है 2010 का साल. इस साल कांग्रेस 90 करोड़ रुपए के कर्ज़ को यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी के नाम ट्रांसफर कर देती है. इसका मतलब जो 90 करोड़ AJL कांग्रेस को चुकाने वाली थी, वो अब यंग इंडियन चुकाती.
यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड दरअसल कुछ ही महीने पहले शुरू हुई थी. और इसे शुरू करने वालों में कांग्रेस के सबसे नामचीन नेता थे. इनमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों की हिस्सेदारी 38 % थी. यानी दोनों के शेयर मिला दें तो हो गए 76 %. बाकी बचे 24 फीसदी में हिस्सेदारी थी -
>कांग्रेस नेता मोतिलाल वोरा
>कांग्रेस नेता ऑस्कर फर्नांडिस
>पत्रकार सुमन दुबे
>सैम पित्रोदा - PM राजीव गांधी और PM मनमोहन सिंह के सलाहकार
यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड को एक नॉट फॉर प्रॉफिट चैरिटेबल कंपनी के तौर पंजीकृत किया गया है. भारत में लागू कंपनीज़ एक्ट के तहत ऐसी कंपनियां कला, संस्कृति, खेल या समाजसेवा जैसे क्षेत्रों में काम कर सकती हैं. ये कंपनियां अगर मुनाफा कमा लें, तो वो पैसा इनके मालिकों या शेयरधारकों को नहीं मिलता. वो पैसा इन कंपनियों को अपने मकसद के लिए पुनः निवेश करना होता है. माने फायदा हुआ, तो कंपनी का ही होगा, न कि मालिकों का.
अब लौटते हैं 2010 के सौदे पर. कांग्रेस का बकाया 90 करोड़ अब AJL की जगह यंग इंडियन देने वाली थी. सवाल उठना लाज़मी था कि यंग इंडियन को इसके बदले में क्या मिलेगा. AJL के पास देने को कुछ था नहीं सो उसे अपनी शेयरहोल्डिंग का बड़ा हिस्सा यंग इंडियन के नाम कर दिया. और इसी तरह एक दिन AJL का पूरा स्वामित्व यंग इंडियन के पास आ गया. इसके बदले में यंग इंडियन ने AJL को 50 लाख चुकाए. बिकते वक्त भी AJL के पास नई दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, इंदौर, मुंबई, पटना, पंचकुला और दूसरे शहरों के पॉश इलाकों में बेशकीमती ज़मीनें और इमारतें थीं. शेयरहोल्डिंग के साथ-साथ ये सब भी यंग इंडियन का हो गया. इन संपत्तियों की कुल कीमत के अलग-अलग अनुमान हैं. सबसे प्रचलित आंकड़ा है कम से कम 2 हज़ार करोड़ का.
इस सौदे के बाद 2 साल चैन से बीते. लेकिन नवंबर 2012 में भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने दिल्ली की एक अदालत में याचिका लगा दी. अपनी याचिका में स्वामी ने गांधी परिवार और यंग इंडियन के बाकी शेयरधारकों पर इल्ज़ाम लगाया कि उन्होंने मिलकर AJL के शेयरधारकों के साथ धोखाधड़ी की है. स्वामी ने ये आरोप भी लगाया कि गांधी परिवार और उनके करीबियों ने कांग्रेस पार्टी से धोखाधड़ी की. स्वामी ने कहा कि 50 लाख के बदले 2 हज़ार करोड़ की संपत्ति यंग इंडियन को ट्रांसफर हो जाना अपने आप में एक घोटाला है. स्वामी ने ये आरोप तक लगाया कि गांधी परिवार और उनके करीबियों ने पार्टी के चंदे से AJL को बिना ब्याज कर्ज दिलवाया. और फिर सिर्फ 50 लाख में पूरा कर्ज माफ भी करवा लिया.
इधर स्वामी यंग इंडियन पर आरोप लगाए जा रहे थे, उधर भूमि और विकास कार्यालय L&DO ने जनवरी 2013 में AJL को इस बात की अनुमति दे दी, कि वो अपनी इमारतों को व्यावसायिक उद्देश्य के लिए किराए पर दे. 2014 की जुलाई में स्वामी द्वारा दायर मामले पर न्यायालय ने संज्ञान ले लिया समन जारी किए. अगस्त 2014 में प्रवर्तन निदेशालय, माने ED ने इस मामले में केस रजिस्टर कर लिया. अब ED प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट PMLA के तहत आरोपियों के बयान दर्ज करना चाहती है. और इन्हीं आरोपियों में राहुल और सोनिया गांधी के नाम भी हैं. ऑस्कर फर्नांडिस और मोतिलाल वोरा अब इस दुनिया में नहीं हैं. तो मामला अब बचे हुए आरोपियों पर ही चल रहा है.
सुब्रह्मण्यम स्वामी की छवि एक ऐसे नेता की है, जो ऐसी बातें कह देते हैं, जो आम तौर पर सार्वजनिक जीवन में बाकी नेता नहीं कहते. 2012 में उन्होंने सीधे कांग्रेस के प्रथम परिवार पर आरोप लगाया, तो किसी को लगा नहीं था कि इस मामले में ज़्यादा कुछ हो पाएगा. लेकिन जबसे नेशनल हेराल्ड मामला प्रकाश में आया, तबसे गांधी परिवार की मुसीबतें क्रमशः बढ़ी ही हैं. और उसकी वजह सिर्फ स्वामी की शिकायत भर नहीं है.
मामले की क्रोनोलॉजी समझिएगांधी परिवार 2014 में जारी समन पर तो स्टे ले आया था, लेकिन वो ट्रायल कोर्ट में मामले को खारिज नहीं करा पाए. गांधी परिवार की तरफ से दलील दी गई कि जब यंग इंडियन को चैरिटेबल कंपनी के रूप में पंजीकृत कराया गया है, तो मुनाफे का तो सवाल ही नहीं उठता. मुनाफा मकसद नहीं है, और वो हो भी गया तो वो कंपनी के मालिकों को नहीं मिलेगा, क्योंकि कानून इसकी इजाज़त नहीं देता. साथ ही गांधी परिवार ने स्वामी की याचिका को राजनीति से प्रेरित बताया.
लेकिन दिसंबर 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए कह दिया कि ट्रायल कोर्ट में चल रहे मामले में राजनैतिक शत्रुता जैसी कोई बात नज़र नहीं आती. इसी के साथ गांधी परिवार की याचिका खारिज हो गई. 2016 में गांधी परिवार इस मामले में राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट गए. न्यायालय ने सारी दलीलों को सुनकर कहा कि सभी आरोपियों को अदालती कार्यवाही का सामना करना चाहिए ताकि ''फ्री ट्रायल'' सुनिश्चित हो और न्याय हो. हालांकि कोर्ट ने आरोपियों को पेशी से छूट दे दी. 2016 में ही नेशनल हेराल्ड के डिजिटल संस्करण का प्रकाशन शुरू हुआ. लेकिन हेराल्ड के चलते गांधी परिवार की दिक्कतें कम नहीं हुईं.
2016 में AJL पर एक गाज और गिरी. L&DO ने कहा कि AJL की संपत्ति का इस्तेमाल प्रेस के काम के लिए नहीं हो रहा है. दरअसल दिल्ली के बहादुर शाह ज़फर मार्ग पर 1960 के दशक में AJL को जो ज़मीन दी गई थी, तब लीज़ की डीड में प्रिंटिग प्रेस चलाने की बात थी. किसी दूसरे मकसद का उल्लेख नहीं किया गया था. इसी को ध्यान में रखते हुए L&DO ने नोटिस जारी किया था. अक्टूबर 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट ने AJL को बहादुर शाह ज़फर मार्ग स्थित हेराल्ड हाउस खाली करने का आदेश दे दिया. लेकिन गांधी परिवार को इस मामले में अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई.
कोरोना काल में बाकी मामलों की तरह ही ये मामला भी रेंगता रहा. लेकिन 2022 के अप्रैल में जब खडगे और पवन बंसल से ED ने पूछताछ की, तब ये मामला एक बार फिर प्रकाश में आ गया. 1 जून को एजेंसी ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी को मामले में पूछताछ का समन जारी कर दिया. लेकिन चूंकि सोनिया गांधी खराब तबीयत के चलते अस्पताल में भर्ती हैं, सिर्फ राहुल एजेंसी के सामने पेश हुए. आज के दिन कांग्रेस दिल्ली स्थित मुख्यालय से ED के दफ्तर तक मार्च निकालना चाहती थी. लेकिन दिल्ली पुलिस ने इसकी अग्रिम अनुमति देने से इनकार कर दिया था. बावजूद इसके, पूरे देश से कांग्रेस सांसद, विधायक और मुख्यमंत्री इस मार्च के लिए दिल्ली पहुंचे. इसे देखते हुए दिल्ली पुलिस और अर्धनैसिक बलों को बड़ी संख्या में तैनात कर दिया गया था.
नई दिल्ली की अकबर रोड स्थित पार्टी मुख्यालय से शुरू हुआ ये मार्च मोतीलाल नेहरू मार्ग पर लगाए एक पुलिस बैरिकेड तक पहुंचा, जहां से राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा एक कार में प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर के लिए निकल गए. जब मार्च जनपथ मार्ग स्थित ED कार्यालय के पास पहुंचा, तो वो पुलिस के अनेक बैरेकेड्स से टकराया, जहां दंगा रोधी बल भी तैनात था. जब मार्च आगे नहीं बढ़ पाया, तो प्रदर्शनकारी सड़क पर बैठ गए. इसके बाद पुलिस ने उन्हें बसों में बैठाकर वहां से दूर भेजा. इनमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला, केसी वेणुगोपाल, कांग्रेस नेता हरीष रावत, जयराम रमेश और अन्य नेता शामिल थे. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम को भी बैरिकेड्स के पास देखा गया.
राहुल गांधी से जो पूछताछ दोपहर में शुरू हुई, वो देर शाम तक चलती रही. इंडिया टुडे के संवाददाता मुनीष पांडेय के मुताबिक राहुल के सामने एजेंसी ने आठ बड़े सवाल रखे -
GFX IN
- आपकी AJL में क्या पोजिशन थी?
- आपकी यंग इंडिया में क्या भूमिका है?
- आपके नाम पर शेयर क्यों हैं?
- क्या आपने शेयर होल्डर्स के साथ पहले कभी मीटिंग की, अगर नहीं , तो क्यों?
- कांग्रेस ने यंग इंडिया को लोन क्यों दिया?
- कांग्रेस नेशनल हेराल्ड को पुनर्जीवित क्यों करना चाहती थी?
- क्या आप कांग्रेस द्वारा दिए गए लोन के बारे में जानकारी दे सकते हैं?
- क्या आप AJL और नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों के बारे में जानकारी दे सकते हैं?
भाजपा आज के दिन के लिए पहले ही तैयार थी. आज जब कांग्रेस नेताओं ने मार्च निकाला, तब केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति इरानी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और गांधी परिवार पर जमकर हमला बोला. इन आरोपों पर कांग्रेस की तरफ से राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने दिए. वहीं कांग्रेस ने दिल्ली के अलावा देश के दूसरे हिस्सों में भी प्रदर्शन किए. पार्टी की कोशिश है कि इस पूरी कवायद को गांधी परिवार पर हमले की तरह बताया जा सके. लेकिन क्या आम लोग भी पार्टी की इस बात से इत्तेफाक रखते हैं, ये देखने वाली बात होगी.
क्योंकि सवाल कई हैं. मिसाल के लिए, AJL को कर्ज़ ही चुकाना था, तो उसने थोड़ी बहुत संपत्ति को बेचकर ये धन क्यों नहीं जुटाया? फिर मोतीलाल वोरा तीन-तीन पदों पर कैसे रहे - कांग्रेस के कोषाध्यक्ष, AJL के CMD और यंग इंडियन के डायरेक्टर? क्या वोरा के किसी फैसले को कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट की तरह देखा जा सकता है. वोरा अब इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन तब भी इस बात का वज़न है कि उनके द्वारा लिए गए वित्तीय फैसलों में वित्तीय सावधानी का पालन हुआ था या नहीं. क्योंकि कांग्रेस के पास जो पैसा था, वो चंदे का पैसा था. और सबसे बड़ा सवाल ये, कि जब AJL का स्वामित्व यंग इंडियन को दिया जा रहा था, तब क्या इस फैसले में AJL के सभी शेयर होल्डर्स शामिल थे?
ED का राजनैतिक इस्तेमाल किसी से छिपा नहीं है. लेकिन AJL और यंग इंडियन का मामला इतना सीधा भी नहीं है कि उसे सिर्फ राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता के आरोप के चलते खारिज किया जा सके.















.webp)


