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क्या भारत अब पाकिस्तान का पानी रोक देगा?

अगर सिंधु जल समझौता तोड़ दिया जाए तो क्या होगा?

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सांकेतिक फोटो
वर्ल्ड बैंक के पूर्व उपाध्यक्ष इस्माइल सेरागेल्डिन ने कहा था -
तीसरा विश्व युद्ध दरवाजे पर खटखटा रहा है. अगर कुछ किया नहीं गया तो यह युद्ध पानी के लिए ही लड़ा जाएगा.
युद्ध और पानी का साथ बहुत पुराना है. पानी के लिए लड़ाइयां लड़ी जाती रही हैं. पर आज बात हो रही है पानी का इस्तेमाल कर के युद्ध लड़ने की. पुलवामा में आतंकी हमले के बाद कड़े कदम उठाने और मुंह तोड़ जवाब देने की मांगें उठ रही हैं. इन्हीं मांगों के बीच पाकिस्तान का पानी रोक देने की भी बात हो रही है. कौन सा पानी? कैसे रोका जाएगा? पानी की ही बात क्यों उठ रही है? वजह है भारत और पाकिस्तान के बीच का सिंधु जल समझौता. इसे इंडस वॉटर ट्रीटी भी कहा जाता है. इसी समझौते को तोड़ कर पाकिस्तान का पानी बंद करने की बात चल रही है.
सिंधु जल समझौते की 6 नदियों का मानचित्र (1)
सिंधु जल समझौते की 6 नदियों का मानचित्र (1)

क्या है सिंधु जल समझौता

यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को किया गया था. इस समझौते से नदियों के पानी का बंटवारा किया गया था. भारत से होते हुए पाकिस्तान जाने वाली कुल 6 नदियां हैं. सिंधु, झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास और सतलुज. इन नदियों को दो खेमों में बांटा गया है. पूर्वी और पश्चिमी. पहली तीन नदियां पश्चिमी नदियां कहलाती हैं और बाद की तीन पूर्वी. समझौते के अनुसार भारत का पूर्वी नदियों पर तो पूरा अधिकार रहेगा पर पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए छोड़ना पड़ेगा.
सिंधु, झेलम और चेनाब का पानी भारत सिर्फ नॉन-कनजम्पटिव चीजों में ही इस्तेमाल कर सकता है. नॉन-कनजम्पटिव मतलब ऐसा उपयोग जिसके बाद पानी को वापस नदी में छोड़ा जा सके. जैसे पीने या सिंचाई में तो पानी खर्च हो जाएगा, तो इसे कनजम्पटिव इस्तेमाल कहेंगे. नॉन-कनजम्पटिव हुआ पानी से बिजली बनाना. जिसमें पानी के तेज प्रवाह से बिजली बनाने वाले रोटर (पहिये) को घुमाया जाता है. ऐसे इस्तेमाल से पानी का उपयोग तो होता है पर उस पानी को पाकिस्तान के लिए वापस नदियों में छोड़ दिया जाता है.
सिंधु जल समझौते की 6 नदियों का मानचित्र (2)
सिंधु जल समझौते की 6 नदियों का मानचित्र (2) 

समझौते से पाकिस्तान का ही फायदा हुआ है

समझौते से पाकिस्तान को नदियों का कुल लगभग 80% पानी मिलता है और भारत को 20%. ऐसा इसलिए क्योंकि पश्चिमी नदियों में ज्यादा पानी है. इनका पूरा पानी पाकिस्तान को ही जाता है. कम पानी वाली पूर्वी नदियों का पानी भारत इस्तेमाल तो करता है, पर इनका भी बाकी बचा हिस्सा पाकिस्तान को जाता है.
समझौते में पानी के बंटवारे का सांकेतिक चित्र
समझौते में पानी के बंटवारे का सांकेतिक चित्र

क्या हम पाकिस्तान का पानी रोक सकते हैं?

हम जब पानी रोकने की बात करते हैं तो ये क्यों भूल जाते हैं कि नदियां खुद से बहती हैं. बंटवारे के पहले भी पाकिस्तान से बहती थीं. जब पाकिस्तान, पाकिस्तान नहीं था तब भी वहीं से बहतीं थीं और आज भी वहीं से बह रही हैं. नदियां पाइपलाइन की तरह नहीं होतीं. कि जब मन किया नल घुमा दिया और पानी बंद. थोड़ी देर के लिए भी पानी रोकना हो तो बांध बनाने पड़ेंगे. ये बांध बनाने में सालों लगते हैं. और चलिए अगर आपने अलादीन के चिराग से, दो दिन में ऐसा बांध बना भी लिया जो पाकिस्तान की नदियां सुखा दे, तो जो इतना सारा पानी रुकेगा, उसे आप डालेंगे कहां? मतलब क्या कश्मीर में पानी ही रोकेंगे? लोगों को विस्थापित कर देंगे. वो कश्मीर जिसे कोई मांगे, तो आप उसे चीर देंगे. क्या उसी कश्मीर को डूबी हुई द्वारका बनाना आपको मंज़ूर है? नहीं न!
तो और कैसे रोकेंगे पानी? एक और तरीका ये है कि पानी को पूर्वी नदियों में मिला दिया जाए. पर कितना पानी मिलाएंगे. क्या लाहौर सुखाने के लिए पंजाब में बाढ़ ले आएंगे? इन नदियों में करीब 170 MAF पानी बहता है. जिसमें से पाकिस्तान के पास करीब 135 MAF पानी जाता है. भारत को मिलता है मात्र 35 MAF के करीब पानी. पाकिस्तान 135 MAF में से करीब 40 MAF यूं ही बहा देता है. दूसरी तरफ इन 35  के अलावा हमें सिर्फ 5 से 10 MAF की और जरूरत है. हम बस इतना पानी ही अपनी नदियों में मिला सकते हैं. इससे पाकिस्तान को कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. रही बात पाकिस्तान को प्यास से मार देने की, तो उसके लिए हमें जितना पानी रोकना पड़ेगा उतना पानी स्टोर करने की हमारी क्षमता नहीं है.

चीन के साथ कोई समझौता नहीं है तो क्या चीन हमारा पानी रोक सकता है?

एक गाना सुना होगा आपने पंछी, नदियां पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके. अब एक दम ऐसा भी नहीं है. थोड़ा-बहुत रुक भी जाता है. पर पूरी की पूरी नदियां अभी तक तो नहीं रोकी जा सकती हैं. इससे भी बड़ा ज्ञान ये है कि ऐसा कोई कर भी नहीं रहा है. समझौता हो या न हो. जो बात सिंधु के लिए सच है वही ब्रह्मपुत्र के लिए भी सही है. समय समय पर चीन हमारा पानी रोक देगा यह डर भी फैलाया जाता है. 2016 में चीन ने ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी, यारलुंग ज़ांग्बो पर सबसे बड़ा बांध बनाया. लाल्हो डैम. तब भी ऐसा डर था कि चीन पाकिस्तान के सपोर्ट में भारत का पानी रोकने के लिए यह बांध बना रहा है. भारत ने इसके असर को मापने के लिए एक एक्सपर्ट टीम बनाई. रिपोर्ट में निकला कि अगर चीन ने पानी को कहीं ओर मोड़ने की कोशिश की तो इससे असर पड़ेगा. लेकिन यह प्रोजेक्ट भी नॉन-कनजम्पटिव प्रोजेक्ट है. मतलब पानी कहीं भी मोड़ा नहीं जाएगा. ऐसे ही बांध भारत ने भी बनाए हैं. किशनगंगा प्रोजेक्ट, बागलीहार प्रोजेक्ट आदि. पाकिस्तान ने इन पर विरोध भी जताया है. डर के चलते. ऐसा ही डर हमें भी है.
मानचित्र पर ब्रह्मपुत्र नदी
मानचित्र पर ब्रह्मपुत्र नदी

ये डर आता कहां से है

डर वाजिब है. इन मामलों में ध्यान रखने की जरूरत होती है. पर जिस तरह से पूरा पानी रोक देने की बात की जाती है वैसा कुछ नहीं है. जो प्रोजेक्ट बनते हैं, उनमें सालों लगते हैं. उन्हें चालू करने या न करने के लिए ढेरों सवाल उठाए जाते हैं. इंटरनेशनल कोर्ट में केस लड़े जाते हैं. एक दिन में कोई ज्वालामुखी नहीं फटता.

पहली बार नहीं उठा है ये सवाल

इससे पहले भी उड़ी हमले के बाद ऐसी मांगें उठी थीं. प्रधानमंत्री ने भी कहा था
"खून और नदियां साथ-साथ नहीं बह सकते."
फिर बदला लिया गया. सर्जिकल स्ट्राइक हुई. धीरे-धीरे इस तरह की मांग कम हो गई. पानी जितना पहले बहता था उतना ही बहता रहा.

अब आगे क्या?

पाकिस्तान की हरकतों के जवाब में पानी रोका जा सकता है. थोड़ा-बहुत. ऐसा नहीं है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन पाकिस्तान में अकाल नहीं आ जाएगा इससे. सलाहकारों का मानना है कि जवाब में पाकिस्तान को आर्थिक, सामरिक, राजनीतिक और हर तरफ से घेरा जाना चाहिए. साथ में ये भी कर सकते हैं. पर सिर्फ पानी रोक देने के लिए बहुत सी बातें सोचनी होंगी. जवाबी कार्रवाई क्या होगी ये तो वक्त ही बताएगा.