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पैसा पीटने के लिए भारतीय लोग बस मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं, जानिए क्या है पूरा बवाल!

7.4 करोड़ डिमैट खाते खुले और झमाझम निवेश हुआ!

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शेयर बाजार की तेजी से खुश निवेशकों की सांकेतिक तस्वीर (फोटो आजतक)
खुशदीप मिश्रा (32) एक आईटी फर्म में काम करते हैं. कमाई इतनी कि खा-पीकर महीने के 30-40 हजार बच जाएं. लेकिन हाल तक इस बचत का ज्यादातर हिस्सा भी नई जरूरतों और शौक पर खर्च हो जाया करते थे. इसके बाद जो कुछ बचता उसमें से कुछ फिक्स्ड डिपॉजिट करते या कंपनी में ही वॉलिंटरी प्रोविडेंट फंड (VPF) में कटवा देते. पिछले साल तक यही उनकी सेविंग हैबिट थी. लेकिन बीते अक्टूबर में उन्होंने डिमैट अकाउंट क्या खुलवाया, अब दोस्तों से निवेश पोर्टफोलियो शेयर करते फिरते हैं.
पहली बार शेयर मार्केट में निवेश करने वाले खुशदीप ने दिसंबर में ही पांच म्यूचुअल फंडों में 2-2 हजार रुपये की एसआईपी (Systematic Investment Plan) शुरू की है. अभी मार्केट से ज्यादा कुछ नहीं मिला है, लेकिन वह रोमांचित जरूर हैं. कल तक शेयरों का नाम सुनकर ही दूर भागने वाले खुशदीप कहते हैं - "मुझे इंडिया की ग्रोथ पर भरोसा है. मार्केट आज नहीं तो कल बहुत ऊपर जाएगा."
खुशदीप का यह भरोसा उनके दोस्तों पर भी तारी हो चुका है और वो भी स्टॉक मार्केट में दिलचस्पी लेने लगे हैं. खुशदीप की कहानी असल में कोविड के बाद भारत में आए एक बड़े वित्तीय रुझान की झलक मात्र है. असल तस्वीर हाल ही में जारी केंद्र सरकार के आंकड़ों में दिखती है. वित्त मंत्रालय के मुताबिक बीते करीब दो-ढाई साल में ही भारत में डिमैट अकाउंट्स की संख्या दोगुनी हो गई है. साल 2018-19 तक देश में 3.6 करोड़ डिमैट अकाउंट थे, जो नवंबर 2021 तक 7.4 करोड़ हो गए. डिमैट अकाउंट यानी dematerialised अकाउंट. वो खाते, जो शेयर मार्केट में ट्रेडिंग करने के लिए ज़रूरी होते हैं. अब नए आंकड़े बताते हैं कि बीते 20 साल में जितने डिमैट अकाउंट खुले उससे ज्यादा हालिया ढाई साल में ही खुल गए. इन आंकड़ों पर खुद सरकार हैरान है और मार्केट एक्सपर्ट्स के अपने-अपने वर्जन हैं. लेकिन एक बात साफ है कि कोविड के समानांतर देश में एक और लहर चल रही है. लोग फिक्स्ड इनकम स्रोतों से छिटककर तेजी से कैपिटल मार्केट और मार्केट लिंक्ड इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश कर रहे हैं.
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज में टेक्निकल एनालिस्ट, इक्विटी रिसर्च, चंदन तापड़िया ने 'दी लल्लनटॉप' को बताया-
आम आदमी की ओर से ऐसा मार्केट पार्टिसिपेशन पहले कभी नहीं दिखा. मैं इसके पीछे डिजिटलाइजेशन को सबसे बड़ी वजह मानता हूं. हर हाथ में स्मार्टफोन और इंटरनेट ने लोगों को ज्यादा जागरूक बनाया है. उन्हें देश दुनिया और बाजारों की रियलटाइम न्यूज मिल रही है. यही चीज उन्हें अपनी बचत और निवेश के बारे में आगे की रणनीति बनाने में भी मदद कर रही है. मसलन, लोगों को पता है कि देश की ग्रोथ रेट क्या है. एक्सपर्ट क्या कह रहे हैं. इससे उनका शेयर बाजारों पर भरोसा बढ़ा है. इसके अलावा कोविड के दौरान शेयर बाजारों ने भारी गिरावट के बाद जो रिकवरी दिखाई उससे भी आम आदमी बाजार की ओर आकर्षित हुआ है.
तापड़िया ने बताया कि डिमैट खातों की यह ग्रोथ थमने वाली नहीं. 138 करोड़ जनसंख्या वाले देश में केवल 1.2 करोड़ लोग ही शेयर मार्केट में निवेश करते हैं. जैसे-जैसे फाइनेंशियल लिटरेसी बढ़ेगी, डिमैट खातों की संख्या बढ़ती जाएगी.
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स्टॉक मार्केट में तेजी की सांकेतिक तस्वीर (साभार : बिजनेस टुडे)
शेयरों की तेजी पर फिदा लोग अप्रैल से अक्टूबर 2021 के बीच 1.9 करोड़ खाते खुले हैं. यानी हर महीने 26.7 लाख नए अकाउंट. यही वो दौर है, जब सेंसेक्स ने 48 हज़ार से 62 हज़ार तक की बुलंदी छुई थी. थोड़ा पीछे जाएं तो कोविड की पहली लहर के दौरान निचले स्तरों से तो यह रिकवरी 150 फीसदी से भी ज्यादा रही. जानकारों का कहना है कि जितने भी नए डिमैट अकाउंट खुले हैं, उनमें तीन चौथाई लोग 30 साल से कम उम्र के हैं. यानी युवा वर्ग को मार्केट की तेजी ने खासा आकर्षित किया है. जानकारों का यह भी कहना है कि इस दौरान ज्यादातर शहरों में वर्क फ्रॉम होम के चलते नौकरीपेशा लोग घर-परिवार, टीवी, सोशल मीडिया और करीबियों के संपर्क में ज्यादा रहे. इससे भी उनकी मार्केट को लेकर जागरूकता बढ़ी और वो भी इस तेजी से जुड़ाव रखने को आतुर हुए.
दूसरा वर्ग वह था, जिसे नौकरियां गंवानी पड़ी. वह या तो अब भी बेरोजगार है या कोई छोटा-मोटा काम करने को मजबूर है. ऐसे लोगों में जल्द से जल्द उस आर्थिक घाटे की भरपाई करने की इच्छा प्रबल रही है. कुछ सर्वे में यह भी सामने आया था कि नौकरी खो चुके लोग बचत की रकम को ज्यादा से ज्यादा आक्रामक तरीके से निवेश करना चाहते हैं, ताकि जल्द से जल्द ज्यादा रिटर्न मिल सके. इस कारण उन्होंने सीधे शेयर मार्केट में उतरने का फैसला किया.
इसके अलावा हाल फिलहाल महंगाई दर भी एक बड़ी वजह है कि लोग फिक्स्ड इनकम स्रोतों से निराश हो रहे हैं और अपने बचत की रकम से कुछ ज्यादा रिटर्न कमाना चाहते हैं. रिफॉर्म से जगा भरोसा एक्सपर्ट्स यह भी कहते हैं कि 2014 के बाद से आर्थिक मोर्चे पर कई बड़े रिफॉर्म के चलते भी इकॉनमी और मार्केट में लोगों का भरोसा मजबूत हुआ है. इससे वे मार्केट लिंक्ड इनवेस्टमेंट जरियों में पैसा लगाने का हौसला दिखा पा रहे हैं.
पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के चीफ इकनॉमिस्ट एस. पी. शर्मा ने हमसे बातचीत में कहा-
मैं इस ट्रेंड के पीछे दो चीजों का योगदान खास तौर से मानता हूं. पहला डिजिटल पेमेंट ने आम लोगों में भी वित्तीय ट्रांजैक्शंस को लेकर एक तरह का भरोसा जगाया है. मोबाइल पर सारे काम हो रहे हैं, जिनके लिए कभी बैंकों की लाइन में लगना पड़ता था. डिमैट खुलवाना भी चुटकी बजाने जैसा आसान हो गया. ऐसे में लोग इसे भी आत्मसात कर रहे हैं. दूसरा बड़ा श्रेय मैं आर्थिक सुधारों को देता हूं, जिसके चलते देश में बड़े पैमाने पर विदेशी पूंजी आई और घरेलू निवेश भी बढ़ा. इससे शेयर बाजारों को तेजी के लिए एक ठोस आधार मिला. इससे आम निवेशक भी खुद को थोड़ा खोल पाया और मार्केट की तरफ बढ़ा है". 
अब यहां पर विशेषज्ञ दो क़िस्म की बातें कहते हैं. एक तो देश में आर्थिक अस्थिरता के लिए नोटबंदी और GST को दोषी ठहराया जाता है, वहीं एक तबका ये भी कहता है कि तमाम समस्याओं के बावजूद नोटबंदी ने डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा दिया. साथ ही GST आने से टैक्स को लेकर हुए अनुपालन में बढ़ोतरी देखी गई. इसके अलावा जनधन योजना का भी ज़िक्र आता है. जिसके तहत करीब 35 करोड़ आबादी बैंकों से जुड़ी. इसके अलावा कई क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), बीमार और घाटे वाली कंपनियों के निजीकरण और लेबर रिफॉर्म के चलते भारत में निवेश का माहौल बना है. इन फ़ैक्टर से बाजारों को बल मिला है.
Digital Pay
डिजिटल पेमेंट की सांकेतिक तस्वीर (आजतक)
KYC वाले पेमेंट अब इस पूरे मामले में हमने ये भी पाया कि जिस तरह से डिजिटल पेमेंट और KYC (Know Your Customer) के बीच के संबंध थोड़ा और प्रगाढ़ हुए, लोगों को शेयर मार्केट और इससे जुड़े निवेश जरियों की ओर थोड़ा और बढ़ावा मिला. ब्रोकरेज फर्म CLSA के मुताबिक भारत में डिजिटल पेमेंट की वैल्यू 300 बिलियन डॉलर सालाना पहुंच चुकी है. इसमें यूपीआई की हिस्सेदारी 60 फीसदी तक है. साल 2026 तक भारत में डिजिटल पेमेंट की वैल्यू 1 ट्रिलियन डॉलर को पार कर जाएगी. सीधे सरल शब्दों में कहें तो मोबाइल से मामला थोड़ा आसान हो गया. इंटरनेट और थोड़ी-सी पूंजी, एक खाता और एकाध ऐप - इतने से गाड़ी चल निकली.
डिजिटल पेमेंट की आदत लोगों में डिमैट एसेट के प्रति भरोसा जगा रही है. लोग मोबाइल में पैसा रखते और देते हुए समझने लगे हैं कि इसी तरह शेयर, म्यूचुअल फंड, गोल्ड ईटीएफ भी रखा और बेचा जा सकता है. इससे उनमें निवेश आदतें बदलने और प्रयोग करने का हौसला आ रहा है. यही वजह है कि डिमैट खातों की संख्या भी डिजिटल पेमेंट के ही समानांतर बढ़ रही है. अंतिम बात निवेश एक बहुत भंगुर और बहुत क़यासों पर चलने वाली शै है.. तमाम उलटबांसियां भी हैं. फ़ायदे की बात होती है तो ख़तरे भी होते ही हैं. पैसा आपका है तो विवेक भी आपका ही होना चाहिए. अपने विवेक और तमाम ख़तरों को ध्यान में रखते हुए निवेश का फ़ैसला लें.

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