तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने 21 जुलाई को उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहने की घोषणा की. पार्टी की इस घोषणा को चौंकाने वाला माना गया. ऐसा इसलिए क्योंकि इस चुनाव में NDA की तरफ से पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) खड़े हैं. वो जगदीप धनखड़ जिनके और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के बीच ठनी रही है. TMC के इस फैसले को 'विपक्षी एकता' में कुछ गड़बड़ी होने के तौर पर भी देखा गया.
उपराष्ट्रपति चुनाव: जगदीप धनखड़ का विरोध ना करने की ममता बनर्जी की राजनीति सिर घुमा देगी?
ममता बनर्जी को फूटी आंख न सुहाने वाले जगदीप धनखड़ का TMC उपराष्ट्रपति चुनाव में विरोध क्यों नहीं कर रही?

TMC ने उपराष्ट्रपति पद के चुनाव से दूरी बनाने के पीछे की वजह ये बताई कि विपक्षी उम्मीदवार का नाम तय करने से पहले पार्टी से चर्चा नहीं की गई. इससे पहले विपक्ष की तरफ से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने 17 जुलाई को उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार के तौर पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व राज्यपाल मार्गरेट अल्वा के नाम की घोषणा की थी. विपक्ष की तरफ से कहा गया था कि तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से इस संबंध में बात कर ली गई है और दोनों पार्टियों की तरफ से जल्द ही मार्गरेट अल्वा के नाम का समर्थन किया जाएगा.
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हालांकि, मार्गरेट अल्वा के नाम से टीएमसी की दूरी की सुगबुहाट पहले से ही होने लगी थी. मार्गरेट अल्वा का नाम निर्धारित करने को लेकर हुई विपक्षी नेताओं की बैठक में टीएमसी की तरफ से कोई शामिल नहीं हुआ. इसी तरह से मार्गरेट अल्वा के नामांकन वाले दिन भी टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी बाकी विपक्षी नेताओं के साथ नहीं गईं, जबकि वो दिल्ली में ही मौजूद थीं.
विपक्ष के नेतृत्व को लेकर खींचतानउपराष्ट्रपति पद के चुनाव से दूरी बनाने की घोषणा करते हुए तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने 21 जुलाई को कहा,
"उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को नॉमिनेट करने से पहले हमारी सहमित नहीं ली गई. ममता बनर्जी ने पार्टी के सभी सांसदों से सलाह-मश्विरा करने के बाद फैसला किया कि पार्टी NDA के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ का समर्थन नहीं करेगी. मीटिंग में शामिल हुए सांसदों में से 85 फीसदी ने कहा कि जिस तरह से विपक्ष ने TMC से बिना किसी सलाह-मश्विरा के उम्मीदवार के नाम का फैसला किया, उसके चलते हम उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहेंगे. हमसे विचार-विमर्श नहीं किया गया."
अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि TMC के इस फैसले की वजह विपक्ष के नेतृत्व को लेकर चल रही खींचतान है. ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव में अग्रणी भूमिका निभाई. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस चुनाव को लेकर हुई बैठक के आखिर में ममता बनर्जी को बोलने नहीं दिया गया. जिसके बाद TMC के नेताओं ने कहा कि उनकी पार्टी को हल्के में नहीं लिया जा सकता है और विपक्षी एकता को बनाए रखने की जिम्मेदारी TMC पर नहीं डाली जा सकती है.
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ये भी कहा गया कि टीएमसी खुद को बीजेपी के बरक्स एक मजबूत विकल्प के तौर पर पेश करना चाहती है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, TMC नेताओं का कहना है कि ऐसा करने के लिए पार्टी कांग्रेस को अपने साथ लेना चाहती है, लेकिन कांग्रेस की हठ पूरी विपक्षी एकता पर भारी पड़ रही है. इन नेताओं का कहना है कि ममता बनर्जी ने दिल्ली के लिए अपने लक्ष्य निर्धारित कर लिए हैं और उन्हें एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है.
‘जगदीप धनखड़ को सम्मानजनक विदाई’सियासत के पटल पर देखें तो जगदीश धनखड़ और ममता बनर्जी के बीच हमेशा से तलवारें खिंची रहीं. दोनों ने एक दूसरे की आलोचना करने का शायद एक भी मौका नहीं छोड़ा. ऐसी छवि बन गई. तकरार इतनी बढ़ी की ममता बनर्जी ने जगदीप धनखड़ को ट्विटर पर ब्लॉक तक कर दिया. कई मौकों पर तो दोनों के बीच खुलेआम तकरार देखने को मिली. ऐसे में उपराष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा ना लेकर ममता ने संदेश दिया है कि वो अगर जगदीप धनखड़ के साथ नहीं हैं, तो खिलाफ भी नहीं हैं. इस तरह से ममता बनर्जी ने नैतिक तौर पर खुद को ऊपर दिखाने की कोशिश की है. ममता की तरफ से ये बताने की कोशिश की गई है कि भले ही जगदीप धनखड़ उनके विरोधी रहे हों, लेकिन वो उनके देश के दूसरे सबसे बड़े पद पर पहुंचने में बाधा नहीं बन रही हैं और उन्हें सम्मानजनक विदाई दे रही हैं.
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इसके साथ ही TMC का जगदीप धनखड़ के खिलाफ ना जाने की एक वजह उनका पश्चिम बंगाल का राज्यपाल रहना भी है. ममता बनर्जी की पार्टी अन्य मुद्दों के साथ बंगाली अस्मिता के मुद्दे के साथ भी चुनाव में उतरती हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब NDA की तरफ से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर जगदीप धनखड़ के नाम का ऐलान किया गया, तो एक नैरेटिव ये भी सामने आया कि धनखड़ पश्चिम बंगाल के गवर्नर रहे हैं और उनका उपराष्ट्रपति बनना राज्य के लिए गर्व की बात होगी. ऐसे में जगदीप धनखड़ के खिलाफ ना उतरकर टीएमसी ने इस नैरेटिव को भी अपने पक्ष में करने की कोशिश की.
TMC कूटनीतिक रुखTMC की तरफ से उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहने के ऐलान के बाद कांग्रेस और वामपंथी दलों ने पार्टी को निशाने पर लिया. आलोचना करने वालों ने कहा कि कुछ दिन पहले ममता बनर्जी दार्जिलिंग में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा और पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ से मिली थीं. ऐसे में इस मुलाकात के दौरान ही ममता बनर्जी और बीजेपी के बीच सांठगांठ हो गई थी. कहा गया कि ममता बनर्जी ने इस मुलाकात के बाद ही उपराष्ट्रपति चुनाव से अलग रहने का फैसला ले लिया था क्योंकि वो बीजेपी नेतृत्व को नाराज नहीं करना चाहती थीं.
इन आलोचनाओं पर TMC की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, विपक्ष के ये आरोप पूरी तरह से गलत नहीं हैं. रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि इस मुलाकात के दौरान ममता बनर्जी को जगदीप धनखड़ की उम्मीदवारी के बारे में जानकारी दे दी गई थी और उनकी सहमति मांगी गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक, टीएमसी के नेताओं का कहना है कि ममता बनर्जी एक कूटनीति रुख अपना रही हैं. वे बताते हैं कि धनखड़ अगर उपराष्ट्रपति बन जाएंगे, तो ये राज्य सरकार के लिए राहत की बात होगी. हर मुद्दे पर पार्टी को झगड़ा नहीं करना पड़ेगा.
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