The Lallantop

पीएम मोदी ने राजपथ का नाम बदलकर 'कर्तव्य पथ' क्यों किया?

कर्तव्य पथ के साथ ही पीएम मोदी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 28 फिट ऊंची मूर्ति का भी उद्घाटन किया. इस मूर्ति को पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल कर हाथ से तराश कर बनाया गया है.

post-main-image
पीएम मोदी ने किया नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति का उद्घाटन (फोटो: पीटीआई)

सारे वाद-विवाद और सवाल पीछे छूट गए, जब आज प्रधानमंत्री मोदी ने सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का उद्घाटन किया. साथ ही राजपथ के नए स्वरूप - कर्तव्य पथ को भी देश को समर्पित कर दिया. नेताजी सुभाषचंद्र बसु की प्रतिमा का अनावरण भी किया गया. ये पूरा इलाका हमारे देश की साझी विरासत है. यहां से अंग्रेज़ों ने हम पर शासन चलाया, यहीं पर आज़ादी के बाद सत्ता का हस्तांतरण हुआ. और यहीं पर एक नए चरित्र के साथ भारत में नई व्यवस्था ने जन्म लिया.

''सेन्ट्रल विस्टा एवेन्यू'', सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की पहली परियोजना है जिसका उद्घाटन आज किया गया है. इस एवेन्यू की लागत 600 करोड़ से ऊपर बताई जा रही है. एवेन्यू के अंतर्गत राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक का इलाका आता है. इस इलाके में कई बदलाव किए गए हैं और सबसे ऐतहासिक बदलाव राजपथ का नाम बदलकर 'कर्तव्य पथ' किया जाना है. इस कर्तव्य पथ के आसपास नहर के पुलों की मरम्मत, यात्री अंडरपास, लाइट और शौचालय जैसी सुविधाएं मुहैया कराईं गई हैं. कर्तव्यपथ में पहले जहां लाल बजरी हुआ करती थी वहां अब लाल पत्थर लगाया गया है. पथ पर पानी की आधुनिक सुविधा के साथ पुरानी लाइटों को बदला गया है और अब करीब 900 नए पोल लगाए गए हैं.

सेन्ट्रल विस्टा एवेन्यू का तो काम पूरा हो चुका है लेकिन अभी भी नए संसद भवन, केन्द्रीय सचिवालय, उप राष्ट्रपति आवास और एग्जीक्यूटिव एन्क्लेव जैसी परियोजनाओं का काम पूरा होना बाकी है. सरकार का अनुमान है कि 2026 तक सेन्ट्रल विस्टा की बाकी परियोजनाएं भी पूरी हो जाएंगी. 

सरकार का कहना है कि भारी यातायात, क्षमता से ज्यादा सावर्जनिक उपयोग, रेहड़ी-पटरी वालों के लिए अपर्याप्त सुविधाओं और नहर में जल प्रदूषण की वजह से सेन्ट्रल विस्टा एवेन्यू का पुनर्विकास करना जरूरी था. इसीलिए तमाम आलोचनाओं को झेलते हुए सरकार ने काम जारी रखा.

आज के कार्यक्रम के दौरान दो चीजों की चर्चा सबसे ज्यादा रही पहला कर्तव्यपथ और दूसरी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा. पहले कर्तव्य पथ की बात करते हैं. इसका इतिहास 1911 से शुरू होता है. जब अंग्रेजों ने अपनी राजधानी कलकत्ता से दिल्ली बनाई. बदलाव की इस प्रक्रिया की आधिकारिक घोषणा के लिए जॉर्ज पंचम भारत आए थे. इस दौरान करीब 20 हजार सैनिकों ने दिल्ली में परेड की थी. इन्हीं जॉर्ज पंचम के सम्मान में सड़क का नाम रखा गया किंग्सवे. किंग्सवे मतलब राजा का मार्ग. नामकरण की जिम्मेदारी मिली थी इतिहास के मशहूर प्रोफेसर पर्सिवल स्पियर को. प्रोफेसर स्पियर दिल्ली के मशहूर कॉलेज सेंट स्टीफेंस में पढ़ाते थे. प्रोफेसर स्पियर सिर्फ किंग्सवे के नामकरण तक सीमित नहीं थे. इसके अलावा अंग्रेजों ने उनकी सलाह पर अकबर रोड, शाहजहां रोड जैसी सड़कों के नाम भी रखे. एक संयोग ये भी है कि 1905 में लंदन में भी किंग्सवे बना था जिसका नामकरण जॉर्ज पंचम के पिता किंग एडवर्ड सेवेंथ के नाम पर हुआ था.

दर्शक जानते हैं कि राजधानी दिल्ली को डिजाइन करने की जिम्मेदारी एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर को मिली थी. साल 1913 में किंग्सवे के तरफ रायसीन हिल पर एक भव्य इमारत का निर्माण शुरू हुआ और लुटियंस का भव्य इमारत का ये सपना साल 1930 में पूरा हुआ. इमारत को नाम मिला वायसराय हाउस. भारत जब आजाद नहीं हुआ था तब इस इमारत में वायसराय रहा करते थे. 3 साल बाद इसी रोड पर एक भव्य दरवाजे का निर्माण शुरू हुआ जिसे आज दुनिया इंडिया गेट के नाम से जानती है. धीरे-धीरे वक्त गुजरा और गुजरते वक्त के साथ भारत ने आजादी की नई सुबह देखी. भारत की आजादी के साथ वायसराय हाउस को नया नाम मिला गवर्नमेंट हाउस और इसे स्वतंत्र भारत के पहले वायसराय सी. राजगोपालाचारी का आवास बनाया गया. फिर साल आया 1950 और तारीख थी 26 जनवरी. भारत को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के रूप में पहले राष्ट्रपति मिले. गवर्नमेंट हाउस डॉ राजेन्द्र प्रसाद का आवास बना और बाद में इसका नाम बदलकर राष्ट्रपति भवन कर दिया गया. 1955 में पहली बार इस सड़क पर गणतंत्र दिवस शुरू हुई जोकि अब तक बदस्तूर जारी है. बदलते समय के साथ किंग्सवे का नाम भी बदला और 1963 की एक सुबह किंग्सवे का नाम बदलकर राजपथ कर दिया गया था.

कर्तव्यपथ के अलावा पीएम मोदी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण भी किया है. इसी साल की शुरुआत में 23 जनवरी को पीएम मोदी ने नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया था. नेताजी की 28 फीट ऊंची ये मूर्ति शिल्पकला के मामले में काफी खास है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मूर्ति को बनाने में कम से कम 20 मैट्रिक टन ग्रेनाइट का इस्तेमाल हुआ है. जानकारों की माने तो पूरी मूर्ति को सिर्फ एक ही पत्थर से तराशा गया है और अगले 100 साल तक मूर्ति इसी मजबूती के साथ खड़ी रहेगी. 

आज आप मूर्ति को दिल्ली में जिस रूप में देख रहे हैं उसके लिए दिल्ली का सफर आसान नहीं था. मूर्ति को तेलंगाना से 14 दिनों में दिल्ली लाया गया है. मूर्ति को लाने के लिए 100 फीट लंबे ट्रक का इस्तेमाल किया गया है, जिसने 14 दिनो में 1600 किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय किया है. मूर्ति को बनाने वाले अरुण योगीराज का दावा है कि इस प्रतिमा को पारंपरिक तकनीकों का इस्तेमाल कर हाथ से बनाई गई है और यह भारत में सबसे ऊंची हस्तनिर्मित मूर्तियों में से एक है.

अब आते हैं सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर

दिल्ली में एक जगह है इंडिया गेट. इस इंडिया गेट के लेकर जो रास्ता राष्ट्रपति भवन तक जाता है उसके आसपास के इलाके को सेन्ट्रल विस्टा कहा जाता है. इसके अंतर्गत राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक और इंडिया गेट समेत कई ऑफिस हैं, इन ऑफिस के समूह को सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट कहा गया है. सेन्ट्रल विस्टा रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट की शुरुआत साल 2019 में हुई थी. इस प्रोजेक्ट की शुरुआत को लेकर तर्क दिया गया कि इस इलाके में जो इमारते हैं वो अब सौ साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी हैं. बकौल सरकार अब इन इमारतों को रीडेवलप किया जाना जरूरी था. लेकिन ये जरूरी नहीं कि जैसा सरकार वैसा सब लोग भी सोचें. मई 2020 में पूर्व में नौकरशाह रहे 60 लोगों ने पीएम मोदी और केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी को पत्र लिखकर कहा कि यह योजना विरासत और पर्यावरण दोनों को नुकसान पहुंचाएगी. 

इसके अलावा कई पर्यावरणविद और इतिहासकार मोदी सरकार के इस फैसले से नाखुश दिखे और प्रोजेक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं भी डाली गईं. याचिकार्ताओं का कहना था कि जो जमीन अभी सार्वजनिक है वो कुछ समय बाद सिर्फ सरकारी अधिकारी एक्सेस कर पाएंगे. वहीं पर्यारवरण एक्टिविस्टों का कहना था कि कम से कम 1000 पेड़ काटे जाएंगे और दिल्ली के प्रदूषण में बढ़ोत्तरी देखने को मिलेगी. इसके बाद साल 2021 के जनवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी थी. मोदी सरकार के इस डीम प्रोजेक्ट को अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी मिली बिमल पटेल को. बिमल पेशे से आर्किटेक हैं और HCP कंपनी के चेयरमैन और डायरेक्टर हैं. इसी कंपनी ने सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का मास्टरप्लान और डिजाइन तैयार किया है. 

वीडियो: नरेंद्र मोदी ने राजपथ को 'कर्तव्य पथ' क्यों बनाया, जानने के लिए इतिहास समझना होगा