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BJP का वो नेता, जिसने दो हफ़्ते के अंदर ही अखिलेश यादव का मूड ख़राब कर दिया

क्या है कुंवर मानवेंद्र सिंह की कहानी?

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झांसी के क़द्दावर नेता मानवेंद्र सिंह अब प्रोटेम स्पीकर हैं. और सपा नेतृत्त्व का आरोप है कि भाजपा ने प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति परिपाटी के खिलाफ़ की है.
यूपी की सियासत में कुछ हफ़्तों पहले एक नेता की एंट्री हुई थी. अरविंद कुमार शर्मा. गुजरात काडर के IAS अधिकारी थे. वीआरएस लेकर बीजेपी में आए. और बीजेपी में आने के साथ ही पार्टी ने उन्हें विधान परिषद भेज दिया. लेकिन अरविंद शर्मा के साथ ही एक और नेता को बीजेपी ने विधान परिषद भेजा था. यूपी की पॉलिटिक्स में इस दूसरे नेता के रोल को तलाशा जा रहा था. रोल अब मिला. इस दूसरे नेता को यूपी के विधान परिषद का प्रोटेम स्पीकर बना दिया गया. वही विधान परिषद, जिसमें बीजेपी अल्पमत में है, और सबसे अधिक संख्या समाजवादी पार्टी के पास है. लेकिन राज्यपाल ने मनोनयन कर दिया बीजेपी के इस क़द्दावर विधान परिषद सदस्य का. हम कुंवर मानवेंद्र सिंह की बात कर रहे हैं.
लोकसभा, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य रह चुके मानवेंद्र सिंह का राजनीतिक सफ़र बहुत लम्बा है. संघ और बीजेपी के युवा मोर्चा से जुड़े रह चुके हैं. योगी आदित्यनाथ की गुडलिस्ट में गिने जाते हैं. लेकिन अभी वाला बवाल पहले जान लीजिए.
हाल में ही यूपी विधान परिषद में पार्टियों की ओर से सदस्य भेजे गए. विधान परिषद के स्पीकर थे समाजवादी पार्टी के रमेश यादव. 30 जनवरी को रमेश यादव का कार्यकाल ख़त्म होना था. और नए स्पीकर का चुनाव हुआ नहीं था. तो समाजवादी पार्टी ने राज्यपाल का दरवाज़ा खटखटाया, इस आशा में कि चुनाव होंगे. सपा को स्पीकर चुनाव में फिर से अपनी जीत दिख रही थी. क्यों? क्योंकि 100 सदस्यों की विधान परिषद में सपा के 51 सदस्य हैं और भाजपा के 32. लेकिन लखनऊ के गलियारों में चर्चा है कि किसी समीकरण को देखते हुए भाजपा चुनाव नहीं करवाना चाहती थी. लिहाज़ा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पास प्रोटेम स्पीकर के लिए कुंवर मानवेंद्र सिंह के नाम का प्रस्ताव भेजा गया. हरी झंडी आ गई. 30 जनवरी को घोषणा हुई. और 31 जनवरी को ही राज्यपाल ने कुंवर मानवेंद्र सिंह को शपथ भी दिला दी.
Km Singh Jhansi कुंवर मानवेंद्र सिंह

अब सपा कह रही है कि भाजपा ने परिपाटियों को ध्वस्त किया है. और भाजपा का कहना है कि उसने संविधान का पालन किया है. अब चर्चा तेज हो गई है कि कुंवर मानवेंद्र सिंह के सत्ता में आने के बाद अल्पमत में मौजूद भाजपा को विधान परिषद में अध्यादेशों पर वोटिंग को लेकर थोड़ी बढ़त तो मिलेगी, क्योंकि आख़िर में बिलों पर वोटिंग से लेकर परमानेंट स्पीकर के चुनाव का सारा काम-धाम प्रोटेम स्पीकर के मत्थे ही आएगा. इमरजेंसी से निकला रास्ता कुंवर मानवेंद्र सिंह पर भाजपा का इतना पक्का भरोसा होना कुछ नया नहीं है. मानवेंद्र सिंह झांसी से ताल्लुक़ रखते हैं. और बुंदेलखंडी भाजपा नेता कहते हैं कि उधर की कहावत ‘साफ़ कहना, ख़ुश रहना’ मानवेंद्र सिंह पर सटीक बैठती है.वह जितना ज़रूरी हो. उतना ही कहते हैं. मानवेंद्र सिंह की राजनीति की शुरुआत ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से होती है. 70 और 80 के दशक के शुरुआती समय तक संघ से जुड़े रहने के बाद मानवेंद्र सिंह विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता रहे. देश में जब इमरजेंसी लगी तो मानवेंद्र सिंह जेल गए. दो सालों के लिए. नाम के आगे लगा ‘लोकतंत्र सेनानी’.
इस उपनाम के साथ ही भारत में ग़ैरकांग्रेसी दलों की राजनीति का अभ्युदय भी हो रहा था. आपातकाल ख़त्म होने के बाद जब देश में लोकतंत्र की फिर से स्थापना हुई और चुनाव हुए, तो छात्रसंघ चुनाव भी हुए थे. साल 1979 में लखनऊ यूनिवर्सिटी में चुनाव हुए तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की तरफ़ से मानवेंद्र सिंह ने भी अध्यक्ष पद का पर्चा भरा. वह चुनाव हार गए. लेकिन किसी चुनाव में पहली हार मानवेंद्र सिंह का ग्राफ़ पार्टी में ऊंचा ही करने वाली थी.
Km Singh Jhansi जब इमरजेंसी लगी थी, उस वक़्त दो सालों के लिए मानवेंद्र जेल में रहे थे. बाहर आए. भाजपा का साथ मिला. तीन बार के विधायक को गिरा दिया.

देश की राजनीति में ये वही समय था जब जनसंघ टू भारतीय जनता पार्टी वाया जनता पार्टी का उदय हो रहा था. 1980 में ये ट्रांजिशन पूरा हुआ. बीजेपी प्रकाश में आई. बुंदेलखंड के अहम हिस्से झांसी को थोड़ा ज़्यादा तरजीह देनी थी. तो इस हिस्से का ज़िम्मा दिया गया मानवेंद्र सिंह को. पहले ज़िलाध्यक्ष बनाए गए. साल 1985 में प्रदेश के विधानसभा चुनाव की अधिसूचना आई. मानवेंद्र सिंह ने झांसी की गरौठा विधानसभा पर अपनी नज़रें गड़ायीं. सामने थे तीन बार के विधायक और कांग्रेस के क़द्दावर नेता और राजा समथर रणजीत सिंह जूदेव. उन्हें हराना बड़ी चुनौती थी. क्योंकि जूदेव ने 1977 में जनता पार्टी की कथित आंधी में भी इस सीट को कांग्रेस की झोली में लाकर रख दिया था. मानवेंद्र सिंह को इस सीट से टिकट दिया गया. मानवेंद्र सिंह ने जूदेव को लगभग 10 हज़ार वोटों से हरा दिया.
मानवेंद्र राजनाथ सिंह के क़रीबी कहे जाते हैं. और इसी वजह से चुनाव हार जाने के बाद भी बीजेपी ने उन्हें विधानपरिषद भेजा था. मानवेंद्र राजनाथ सिंह के क़रीबी कहे जाते हैं. और इसी वजह से चुनाव हार जाने के बाद भी बीजेपी ने उन्हें विधानपरिषद भेजा था.

स्थानीय लोग कहते हैं कि जूदेव को हराने के बाद तो मानवेंद्र सिंह ने लगभग खूंटा ही गाड़ दिया. वो पार्टी के लिए बहुत अहम हो गए. इसलिए भी क्योंकि 1985 के चुनाव में प्रदेश भर में भाजपा के कुल 16 नेता विधानसभा पहुंच सके थे, मानवेंद्र उनमें से एक थे. लेकिन ये चुनाव मानवेंद्र सिंह के अब तक के जीवन का पहला और आख़िरी विधानसभा चुनाव था. 1987 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया था. इसके बाद साल आया 1989. मानवेंद्र सिंह ने पर्चा भरा गरौठा से. लेकिन जूदेव ने पिछले चुनाव का बदला इस चुनाव में ले लिया. मानवेंद्र हार गए.
इसके बाद ही अगले साल स्थानीय निकाय के चुनाव हुए. विधायकी से उतरकर स्थानीय निकाय चुनाव के ज़रिए मानवेंद्र सिंह विधान परिषद पहुंच गए. 1996 तक विधान परिषद में जमे रहे. साल 1997 में मायावती सरकार का तख़्ता पलटा. कल्याण सिंह यूपी के CM बने. और मानवेंद्र सिंह बने यूपी जल विद्युत निगम के अध्यक्ष. ये पद कैबिनेट दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री का था.
3 साल बाद साल 2000 में मानवेंद्र सिंह दोबारा विधान परिषद भेजे गए. बस एक बार के विधायक मानवेंद्र सिंह पर पार्टी ने इतना भरोसा क्यों दिखाया? कहा जाता है कि ये वो समय था, जब नेताओं का ज़मीन पर किया गया काम मायने रखता था. और मानवेंद्र सिंह की राजनाथ सिंह से क़रीबी भी इस भरोसे में ख़ासा रोल अदा करती है, ऐसी भी चर्चा होती रहती है.
साल आया 2002. वरिष्ठ सदस्य होने के आधार पर मानवेंद्र सिंह को विधान परिषद का कार्यवाहक सभापति चुना गया. वह साल 2004 से 2006 तक विधान परिषद के उपसभापति भी रहे. 2006 में विधान परिषद में कार्यकाल ख़त्म हुआ. ये वो समय था जब भाजपा सत्ता से बाहर थी. धीरे-धीरे समय बीतता रहा. साल आया 2016. दो साल पहले लोकसभा चुनाव जीतकर आई भाजपा की नज़र अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर थी. मानवेंद्र सिंह को कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र में क्षेत्रीय अध्यक्ष पद सौंप दिया गया. किसके क़रीबी हैं मानवेंद्र? स्थानीय लोग बताते हैं कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में मानवेंद्र सिंह ने साबित कर दिया कि वो सुर्खियों में न रहकर भी काम करने वाले नेता हैं. मानवेंद्र को बुंदेलखंड भेजने का फ़ायदा मिला और विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड की सभी 19 सीटों पर भाजपा को जीत मिली. लोग बताते हैं कि संगठन के प्रति समर्पण और बुंदेलखंड का राजपूत होने के चलते मानवेंद्र सिंह जो अब तक राजनाथ सिंह के ही क़रीबी कहे जाते थे, नए-नवेले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गुडलिस्ट में भी शामिल हो गए.
साल आया 2019. CM योगी ने मानवेंद्र सिंह को वो पद दे दिया, जो अमूमन यूपी के मुख्यमंत्री अपने पास ही रखते थे. ये पद था बुंदेलखंड विकास बोर्ड के अध्यक्ष का. गाड़ी पर लालबत्ती लग गई. मतलब फिर से दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री का पद. फिर अब जो है, सो है ही. जनवरी 2021 में तीसरी बार विधान परिषद भेजे गए, और अब प्रोटेम स्पीकर.
मानवेंद्र को योगी आदित्यनाथ का क़रीबी भी माना जाता है. 2017 के विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड में 19 सीटें जीतकर भाजपा आयी थी, श्रेय गया मानवेंद्र को. (फोटो: बंदीप सिंह, इंडिया टुडे) मानवेंद्र को योगी आदित्यनाथ का क़रीबी भी माना जाता है. 2017 के विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड में 19 सीटें जीतकर भाजपा आयी थी, श्रेय गया मानवेंद्र को. (फोटो: बंदीप सिंह, इंडिया टुडे)

स्थानीय पत्रकार जानकारी देते हैं कि मानवेंद्र बुंदेलखंड के उन कुछ नेताओं में से एक हैं, जिनके बारे में उनके विरोधी भी कुछ ख़राब नहीं बोलते हैं. वह सबसे बनाकर चलने वाले नेता के तौर पर क्षेत्र में देखे जाते हैं. शायद इसीलिए प्रोटेम स्पीकर बनने के बाद मानवेंद्र सिंह ने कहा था,
“सदन की कार्यवाही चलाना मुझे अच्छी तरह से आता है. सभापति का काम होता है कि विपक्ष के सदस्यों का संरक्षण हो और सरकार के कामकाज में बाधा न आए. इस ज़िम्मेदारी को निभाना मैं बख़ूबी जानता हूं. जब भी सदन की कार्यवाही शुरू होगी, आपको इसका प्रमाण मिल जाएगा.”
और ख़बरें बताती हैं कि ऐसा कहते हुए उन्होंने ये भी कहा कि ‘सपा-बसपा सभी विपक्षी पार्टियों में उनके दोस्त हैं.चलते-चलते जानिए प्रोटेम स्पीकर का काम आमतौर पर प्रोटेम स्पीकर का काम नए सदस्यों को शपथ दिलाना और स्पीकर (विधानसभा अध्यक्ष) का चुनाव कराना होता हैं. निर्वाचित अध्यक्ष के अभाव में जब भी फ़्लोर टेस्ट यानी विश्वास मत की बात आती है तो प्रोटेम स्पीकर का रोल काफी महत्वपूर्ण हो जाता हैं. आमतौर पर सबसे वरिष्ठ या सर्वाधिक बार चुनाव जीतने वाले को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है. जब मानवेंद्र सिंह को ही 2002 में वरिष्ठता के आधार पर ही कार्यवाहक सभापति बनाया गया था. लेकिन इस परिपाटी को राज्यपाल के पद पर आसीन व्यक्ति माने, ये जरूरी नहीं है.