तेंदुए को मारने के आदेश
सोमवार. 7 दिसंबर को इस तेंदुए ने आठ साल की बच्ची को मार डाला. इससे पहले ये तेंदुआ सोलापुर, बीड, अहमदनगर और औरंगाबाद जिलों में सात लोगों की जान ले चुका है. राज्य के प्रधान वन संरक्षक की ओर से जारी आदेश के मुताबिक 31 दिसंबर तक या तो इस तेंदुए को पकड़ लेना है या फिर मार गिराना है. उन्होंने कहा कि तेंदुए ने इस पूरे इलाके में रहने वाले लोगों में डर पैदा कर दिया है और अब ऐसे में लगता है कि तेंदुआ आदमखोर हो गया है.
पुणे के प्रभागीय वन संरक्षक राहुल पाटिल ने कहा,
"तेंदुआ सोलापुर जिले के जंगलों में है और उसने एक बच्ची की जान ले ली है. अब ये जानवर इंसानों के लिए खतरा बन गया है, इसलिए हमने इस जानवर को गोली मारने या पकड़ने के आदेश जारी कर दिए हैं."

ये तस्वीर मई 2020 की है जब हैदराबाद में एक तेंदुए को बीच सड़क पर बैठे देखा गया था. फोटो- PTI
कैसे घोषित किया जाता है आदमखोर?
अब ये मामला जानने के बाद सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर किसी जानवर को आदमखोर कब और कैसे घोषित किया जाता है. ये जानने के लिए हमने बात की कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर राहुल कुमार से. फोन पर हुई बातचीत में उन्होंने 'द लल्लनटॉप' को बताया,
"वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 के सेक्शन 11 में इसको विस्तार से बताया गया है. मैनईटर या आदमखोर तो एक प्रचलित शब्द है आम बोलचाल की भाषा में, लेकिन असली शब्द है डेंजरस टू ह्यूमन लाइफ. यानी इंसानों के जीवन के लिए खतरनाक. इसके लिए एक प्रोसेस है. शेड्यूल-1 के जो जानवर हैं जैसे टाइगर, लैपर्ड, एलिफेंट वगैरह. इनको हम तभी मार सकते हैं, जब ये इंसानी जिंदगी के लिए खतरा हो जाते हैं."राहुल कुमार ने कहा कि जानवर अमूमन अपने इलाकों में रहते हैं और इंसानों पर हमला नहीं करते. हजार में कोई एक बाघ होता है जो इंसान पर हमला करेगा. लैपर्ड भी इंसानों से दूरी रखते हैं. उन्होंने कहा,
"जानवर इंसानी इलाकों में लगातार आ रहा है, इंसानों को मार रहा है, उस स्थिति में उसे आदमखोर कहा जा सकता है. इसके बाद दूसरी श्रेणी के जानवर होते हैं जैसे बंदर, सूअर आदि. यदि फसल आदि को ये नुकसान पहुंचा रहे हैं, तो इनको मारा जा सकता है."ये तो आप समझ गए होंगे कि आदमखोर आम बोलचाल की भाषा का शब्द है और किसी जानवर को विशेष परिस्थितियों में ही मारा जा सकता है लेकिन अगर तय वक्त में उसे मारा ना जा सके तो क्या होगा? ऐसी स्थिति के लिए क्या प्रावधान है? कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर राहुल कुमार कहते हैं,
"दरअसल जंगली जानवर एक खास टैरेटरी में रहते हैं. महीने भर बाद या कुछ निश्चित वक्त के बाद ये अपना इलाका बदल लेते हैं. अगर वो जंगल में वापस लौट रहा है और इंसानों पर हमले बंद कर दिए हैं तो बदली परिस्थितियों के हिसाब से फैसला किया जाएगा.अब सवाल ये उठता है कि क्या इन्हें मारा जाना जरूरी है? क्या कोई ऐसा तरीका नहीं, जिससे इनको पकड़ लिया जाए और एक दुर्लभ किस्म के जानवर की जान ना जाए. पेटा समेत पूरी दुनिया के पशु प्रेमी भी इस तरह के शिकार के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं. साल 2018 में जब एक आदमखोर बाघिन को मारा गया था, तब भी ये सवाल उठे थे. इसका जवाब देते हुए राहुल कहते हैं,
सबसे पहले तो जानवर को समझने की कोशिश की जाती है कि आखिर वो ऐसा क्यों कर रहा है. उसके पंजों के निशान देखे जाते हैं, उसके द्वारा बनाए गए घाव देखे जाते हैं, ये पता किया जाता है कि जानवर शिकार के लिए कितना सक्षम है? वो इंसानों पर हमला कर क्यों रहा है? अगर उसको शारीरिक दिक्कत है, उसके दांत टूटे हैं तो क्या इसलिए वो इंसानों, बच्चों, मवेशियों को निशाना बना रहा है? सब कुछ चेक करते हैं."
"पहली प्राथमिकता ट्रैंक्लुआइज करने की होती है. पिंजरे में पकड़ने की होती है, लेकिन जब कोई चीज काम नहीं आती तब गोली का सहारा लिया जाता है. वह आखिरी चीज है. लेकिन उसकी नौबत ना आए, तो बेहतर है."कौन जारी करता है मारने के आदेश?
2016 बैच के IFS ऑफिसर नवाकिशोर रेड्डी ने फोन पर हुई बातचीत में बताया कि चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन (chief wildlife warden) ही किसी जानवर को मारने के आदेश जारी कर सकते हैं. वाइल्डलाइफ एक्ट 1972 के सेक्शन 11 (1) में इसकी जानकारी दी गई है. हर राज्य में एक चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन होते हैं और उन्हीं के आदेश पर किसी खूंखार हो चुके जानवर का शिकार किया जा सकता है.
कितने तेंदुओं की जान गई
महाराष्ट्र में साल 2020 में 172 तेंदुओं की जान चली गई. इनमें से 86 तेंदुए अपने आप मर गए जबकि सड़क दुर्घटनाओं में 34 तेंदुओं की मौत हुई. 25 तेंदुए अवैध शिकार के कारण मारे गए जबकि 10 तेंदुए अन्य वजहों से जान गवां बैठे. अब महाराष्ट्र में 669 तेंदुए बचे हुए हैं.
इंसान और जानवरों के बीच संघर्ष
भारत की मौजूदा आबादी 130 करोड़ से अधिक है. हर कहीं इंसानों की मौजूदगी है. जंगल सिमट रहे हैं और जानवरों के लिए दायरा छोटा होता जा रहा है. चंद दिनों पहले की ही बात है, जब गाजियाबाद की पॉश कॉलोनी में तेंदुए को घूमते देखा गया था. हर कुछ दिन के बाद अखबारों में रिहायशी इलाकों में जंगली जानवरों के घूमने की खबरें और तस्वीरें छपती रहती हैं. तभी मेरठ से, तो कभी बिजनौर से ऐसे मामले सामने आते रहते हैं. आप केवल गूगल पर बाघ और इलाके का नाम लिखें, नतीजे आपके सामने होंगे. खैर, हमें उम्मीद है कि आपको इस बारे में हर जरूरी जानकारी मिल गई होगी. लेकिन अगर आपके पास इससे जुड़ा कोई और फैक्ट है या फिर हमसे कोई फैक्ट मिस हो गया है तो आप हमें कॉमेंट में जरूर बताएं.