अब सबसे अहम जो बात है, वो यह कि 'सिडिशन' होता है 'राजद्रोह' ही. लेकिन लोगों ने राजद्रोह और देशद्रोह के भेद को दरकिनार कर, सरकार को ही देश बना दिया. हुआ ये कि आधी आबादी को ऐसा लगता है कि सिडिशन, देशद्रोही के खिलाफ कड़ाई करने के लिए बनाया गया क़ानून है.
क्या है इस कानून का इतिहास, कहानी क्या है? सबसे पहले जिस देश ने सिडिशन जैसे कानून का स्वागत किया, वो था इंग्लैंड. 17वीं शताब्दी में जब इंग्लैंड को यह महसूस हुआ कि साम्राज्य और सरकार के ख़िलाफ़ उठ रही आवाज़ उनकी सत्ता के लिए परेशानी का कारण बन सकती है, तब वे अपनी सत्ता बचाने के लिए लाए थे सिडिशन.

शिमला में कांग्रेस लीडर नीरज भारती सिडिशन के तहत बुक किए गए थे (फ़ोटो: PTI)
वहीं भारत में ब्रिटिशर्स को इस कानून की ज़रूरत थोड़ी देर से पड़ी. 19वीं शताब्दी में. यह कानून वर्ष 1837 में ब्रिटिशर थॉमस मैकॉले द्वारा तैयार किया गया था, क्योंकि उस वक़्त IPC का ड्राफ़्ट तैयार करने का ज़िम्मा उनके ही हाथों में था. लेकिन जो ज़रूरी बात है, वो यह कि जब वर्ष 1860 में IPC लागू किया गया, तो सिडिशन लॉ का कहीं नामोनिशान न था!
इसकी ज़रूरत तब पड़ी, जब जेम्स स्टीफन को यह लगने लगा कि अब भारतीय क्रांतिकारियों को शांत करने का कोई और उपाय नहीं बचा, तब उन्होंने IPC (संशोधन) अधिनियम, 1870 के तहत धारा 124A यानी कि सिडिशन को IPC में शामिल कर लिया.
क्या स्वतंत्रता सेनानियों पर भी लगाई गई थी धारा 124A
एक बार धारा 124A जैसे ही IPC में शामिल हुई, स्वतंत्रता आंदोलन में खूब बढ़कर हिस्सा लेने वाले सेनानियों को मानो इस धारा के तहत गिरफ़्त में ले लेने का ट्रेंड चल गया हो. अखबार के संपादकों पर यह धारा लगाई गई और कहा गया कि ये ब्रिटश साम्राज्य के ख़िलाफ़ लिखने का काम करते हैं. यहां तक कि महात्मा गांधी से लेकर बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और भगत सिंह को भी इस कानून के तहत जेल जाना पड़ा था.
महात्मा गांधी ने जेल जाते वक़्त इस धारा के बारे में जो कहा था, वो आज भी बेहद प्रासंगिक है. उन्होंने कहा थी-
"धारा 124A (सिडिशन) जिसके तहत मैं जेल जा रहा हूं. ये उन सभी कानूनों में, जो हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को कमज़ोर करने के लिए बनाये गए हैं, उनमें सबसे हास्यास्पद और डरावना है. क्योंकि देश से लगाव या प्रेम किसी कागज़ी फ़रमान से नहीं मापा जा सकता. अगर किसी को सरकार की किसी बात से परेशानी है, तो उसे यह आज़ादी होनी चाहिए कि वो अपनी परेशानी व्यक्त कर सके. उसे यह आज़ादी तब तक होनी चाहिए, जब तक वह अपनी किसी बात से नफ़रत या हिंसा नहीं भड़काता."हाल में किस तरीक़े से इस्तेमाल हो रही धारा 124A
जैसा कि आपको याद होगा, इसी साल फरवरी में बैंगलोर में एक चौदह वर्षीय अमूल्य लियोना नाम की नाबालिग़ लड़की पर सिडिशन के चार्जेज़ लगाए गए थे. क्यों? क्योंकि उसने एक पॉलिटिकल प्लेटफॉर्म से पहले 'हिंदुस्तान ज़िंदाबाद' उसके बाद 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाए थे. उसका कहना यह था कि हमारा देश तो आबाद रहे ही, साथ में हम अपने पड़ोसी मुल्क़ से लड़ते रहने की बजाए शांति की बात करें. उसी केस को लेकर 13 अक्टूबर, 2020 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी. लोकुर ने कहा-
"क्या एक टीनएजर लड़की के दो बार 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाने से कोई सरकार गिर गयी? तो फिर सिडिशन चार्जेज़ को लगाने का मतलब क्या है?''एक-दो केस ऐसे ही बेहद रोचक और सोचने पर मजबूर कर देने वाले हैं कि आखिर इस सिडिशन का आज मायने रह क्या गया है? जैसे दिसंबर, 2016 में एक नॉवेलिस्ट कमल सी. चवरा पर केरल पुलिस ने FIR दर्ज़ की. उन पर भारतीय जनता पार्टी के यूथ विंग भारतीय जनता युवा मोर्चा ने यह आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने एक उपन्यास 'स्माशानंगालूडे नोतुपुस्तकम' (बुक ऑफ़ द ग्रेवयर्ड) में तिरंगे का अपमान किया है. बहुत जल्द ही कई बुद्धिजीवियों और छात्रों ने उन पर लगाए गए आरोपों की आलोचना की. साथ ही पुलिस ने भी किसी भी तरह का आरोप सिद्ध न कर पाने के चलते सिडिशन के चार्ज वापस ले लिए.
एक और बहुत ही चौंकाने वाली घटना सामने आई थी तमिलनाडु से, सितंबर, 2016 में. वहां एक गांव है कंडुकुलम. उसके लगभग सभी वासी वहां बन रहे एक न्यूक्लियर प्लांट के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे. उनका प्रदर्शन शांत था, किसी भी प्रकार की हिंसा के बिना. पर सभी गांववालों पर (8,856 लोगों पर) धारा 124A लगा दी गई. वहां के निवासियों का भी कहना है कि बरसों से उन पर धाराएं लगी हुई हैं. वे संकट में हैं और यह सब सरकार द्वारा सिर्फ आंदोलन ख़त्म कर देने के लिए किया गया है. ये भी तब हुआ, जब सितंबर, 2016 में ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार की आलोचना का मतलब सिडिशन कतई नहीं होता.
एक और हैरान कर देने वाला केस है जून, 2017 से लेकर जुलाई, 2018 तक का. जगह है झारखंड का 'पाठलगढ़'. पाठलगढ़ वो गांव है, जहां के ट्राइबल कम्यूनिटी की यह मांग है कि उनके गांव की ऑटोनॉमी (स्वराज्य) उन्हें ही सौंप दी जाए. इस मांग को रखने के लिए एक विद्रोह का तरीक़ा उन्होंने निकाला. उन्होंने ढेर सारे पत्थरों पर संविधान के कुछ विशेष अनुच्छेद लिखकर गांव के बाहर लगा दिए. इसी बात पर गांव की कुल जनसंख्या, जो कि 10,000 थी, सब पर धारा 124A लगा दी गई.
सिडिशन को हटाने के पक्ष और विपक्ष में खड़े लोगों की राय
इसी तरह से कुछ साल से सिडिशन की धारा का इस्तेमाल बढ़ता नज़र आता है. जैसे कि अगर NRCB (The National Crime Records Bureau) के डेटा की मानें, तो 2014 से 2016 तक में देश में सिडिशन के 112 केस रजिस्टर किये गए. उसके बाद से 2017 में 51 केस रजिस्टर हुए, 2018 में 70 केस. आज तक बहुत सारे अलग-अलग यूनिवर्सिटीज़ के छात्र-छात्राओं से लेकर प्रोफेसर्स पर यह धारा लगा दी गई है. यहां तक कि हाल ही में कर्नाटक में एक 11 साल की बच्ची की मां पर धारा 124A लगा दी गई, क्योंकि उसकी बच्ची पर ये आरोप लगे थे कि वह किसी एंटी सीएए वाले नाटक का हिस्सा थीं अपने स्कूल में.
बता दें इन सभी केसेज़ में से 90% में पुलिस चार्जशीट भी दायर नहीं कर पाती.
इन तमाम मुद्दों को ध्यान में रखते हुए कई लोग धारा 124A की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हैं. उनके कुछ अहम सवाल ये हैं कि केंद्र और राज्यों की अपनी सरकारों द्वारा आम तौर से अलग राय रखने वाले लोगों और आर्टिस्ट, जर्नलिस्ट, लेखक और भी लोगों पर ये चार्ज बिना किसी क्राइम के लगा दिए जाते हैं. दूसरा यह कि जिन अंग्रेज़ों ने यह कानून भारत के लिए बनाया, उन्होंने ब्रिटेन से ही इसे हटा दिया है. लेकिन हम इसे ढोए ही नहीं जा रहे हैं, बल्कि इसकी रफ्तार भी लगातार तेज कर रहे हैं. दूसरा विधि आयोग (लॉ कमीशन) इसे कई बार संशोधित या समाप्त करने की अनुशंसा कर चुका है.

ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत पर कब्ज़ा जमाकर रखने के लिए सिडिशन को औजार बनाया था. (फ़ोटो: 'लगान' मूवी)
पांच दशकों में तीसरी बार अगस्त, 2018 में विधि आयोग ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124A की समीक्षा करने की प्रक्रिया में आगे काम किया. विधि आयोग ने अपने परामर्श पत्र (Consultation Paper) में इस विषय पर पुनर्विचार करने की बात कही है और जनता के सामने इसे राष्ट्रीय बहस के लिए पेश किया गया है.
दूसरी तरफ़ इस कानून के पक्ष में यह कहा जाता रहा है कि सिडिशन (IPC की धारा 124A) के ज़रिए देशद्रोही, आतंकवादी और अलगाववादी ताकतों से मुकाबला करना आसान हो जाता है.
इस धारा की कुछ अहम कड़ियां
# भारत में सिडिशन का ज़ुर्म करने वालों को पकड़ने के लिये किसी भी तरह के वारंट की ज़रूरत नहीं होती है. साथ ही इसके बाद दोनों पक्षों के बीच कोई आपसी सुलह की गुंजाइश भी नहीं बचती.
# यह एक ग़ैर-ज़मानती अपराध होता है, पर जब तक अपराध सिद्ध न हो जाये, तब तक हिरासत में भी नहीं लिया जा सकता.
# एक और ज़रूरी बात कि जिस पर भी ये धारा लगती है, उसका पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया जाता है. उसे कोई भी नौकरी करने की मनाही होती है.
अंत में जाते-जाते पढ़िये डॉक्टर विनायक सेन को समर्पित यह कविता 'राजद्रोह'. विनायक सेन कौन थे? डॉक्टर विनायक सेन ने छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों के लोगों के साथ रहकर काम किया. क्या काम किया? पेशे से बाल चिकित्सक थे. उन्होंने वहां के मजदूरों के लिए मुफ़्त में इलाज करना शुरू किया. पर 24 दिसंबर, 2010 में उन पर 124A धारा लगाई गई. उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई. आरोप ये लगा कि वो नक्सलियों को सत्ता के ख़िलाफ़ लड़ने में मदद करते हैं.
इस कविता में बात यह कही गयी है कि हम देशभक्त तब तक ही रह सकते हैं, जब तक हम आसपास के लोगों के दुख और संताप को समझने के लिए खड़े हो पाएं.
राजद्रोह है हक की बात करना.