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वो ज़हर, जिसके नमक बराबर दो दाने भी जान ले सकते हैं

ट्रंप को चिट्ठी में भेजा गया ये ज़हर जिस बीज से बनता है, उसके तेल का हम खूब इस्तेमाल करते हैं.

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राइसिन बनाने में काम आने वाले कैस्टर बीन्स और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के नाम पिछले हफ्ते एक लिफाफा आया था. वाइट हाउस पहुंचने से पहले जब सरकारी मेल सेंटर पर इसकी चेकिंग हुई तो उसमें कुछ संदिग्ध रसायन दिखा. जांच करने पर पता लगा कि ये केमिकल एक जानलेवा ज़हर राइसिन है.
अमेरिकी एजेंसियों को शक है कि ये पैकेट कैनेडा से आया था. लिफाफा भेजने के शक में एक महिला को न्यूयॉर्क बॉर्डर पर कैनेडा से अमेरिका में दाखिल होने की कोशिश करते समय अरेस्ट किया गया है.
इस तरह से वाइट हाउस में राइसिन ज़हर भेजने का ये पहला मामला नहीं है. इससे पहले 2013 में तब के राष्ट्रपति बराक ओबामा को भी दो बार राइसिन के ऐसे ही पैकेट्स भेजे गए थे. आइए आपको बताते हैं, कि ये जहर क्या है और कितना खतरनाक है.
राइसिन असल में है क्या?
राइसिन, एक तरीके का ज़हरीला प्रोटीन है. ये कैस्टर नाम के पौधे के बीज में पाया जाता है. कैस्टर को हिंदी में अरंडी का पौधा बोलते हैं. ये नुकीली पत्तियों और कांटेदार फल वाला एक छोटे कद का पौधा होता है. पश्चिमी देशों में इसे ज़्यादातर घरों में सजावट के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
कैस्टर प्लांट
कैस्टर प्लांट

अरंडी के बीज में 5 से 10 प्रतिशत तक राइसिन हो सकता है. इन बीजों में तेल की भी प्रचुर मात्रा होती है. इसीलिए इनसे कैस्टर ऑयल निकाला जाता है. अरंडी का यह तेल दवाइयों में काम आता है. मालिश करने और बालों में लगाने के लिए भी अरंडी का तेल खूब विख्यात है. इसके अलावा, इसकी छोटी मात्रा खाना पकाने में भी इस्तेमाल की जा सकती है. इसे शरीर के इम्यून सिस्टम के लिए बढ़िया माना जाता है.
अब आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि जब कैस्टर के बीज में राइसिन जैसा ख़तरनाक ज़हर होता है तो फिर इसी बीज से निकले तेल को खाने में कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है? इसका जवाब यह है कि कैस्टर बीन्स की पिराई के बाद निकले तेल में राइसिन नहीं आता. बल्कि तेल निकलने के बाद बीज की जो खली बचती है, ये प्रोटीन उसी में रह जाता है. इसीलिए कैस्टर ऑयल को खाद्य पदार्थों वाली लिस्ट में जगह मिल जाती है.
ये ज़हर बनाया कैसे जाता है?
इस ज़हर की सबसे ख़ास बात यही है कि इसे बनाना बेहद आसान है. केमिस्ट्री की ठीक-ठाक जानकारी रखने वाला कोई भी आम इंसान इसे बना सकता है. इसके लिए ना किसी हाई-फाई केमिकल की ज़रूरत होती है, और ना ही इक्विपमेंट्स से लैस हाई-टेक लैब की.
तेल निकालने के बाद कैस्टर बीन्स के बचे गूदे से राइसिन बनाने में क्रोमैटोग्राफी नाम की प्रक्रिया काम में आती है. पहले तेल निकालने के बाद बीज के बचे हिस्से का घोल बनाया जाता है. फिर पानी और हाइड्रोक्लोरिक एसिड की मदद से फ़िल्टरिंग के ज़रिए राइसिन बनता है. इसकी प्रक्रिया इतनी आसान है कि अमेरिकी सरकार ने इसकी रेसिपी को इंटरनेट पर बैन कर रखा है.
ये ज़हर हमारे शरीर में पहुंचकर क्या खेल करता है?
राइसिन ख़ुद एक प्रोटीन है, जो हमारे शरीर की कोशिकाओं को संक्रमित करता है. ये हमारे सेल्स की प्रोटीन बनाने की क्षमता ख़त्म कर देता है. इसकी वजह से शरीर के बेहद ज़रूरी काम रुक जाते हैं. यदि व्यक्ति बच भी जाए तो कई अंग स्थाई रूप से बेकार हो जाते हैं.
शरीर की कोशिकाएं
शरीर की कोशिकाएं

ये ज़हर हमारे शरीर में तीन अलग-अलग तरीकों से पहुंच सकता है. खाने की किसी चीज़ में मिलाकर खिलाया जा सकता है. हवा के साथ सांस के ज़रिये फेफड़ों तक पहुंच सकता है. या फिर सीधे हमारे खून में सूई के जरिए पहुंचाया जा सकता है. इसे खाना सबसे कम खतरनाक होता है. अगर सांस के ज़रिए अंदर ले लिया गया या फिर शरीर में इंजेक्ट कर दिया गया तो इसके हज़ारवें हिस्से जितनी मात्रा भी मारक हो सकती है. इन तरीकों से एक आम इंसान को मारने के लिए महज 1.78 मिलीग्राम राइसिन काफ़ी होता है. ये नमक के कुछ दानों जितनी मात्रा है.
राइसिन ज़हर का दुनिया में अभी तक कोई एन्टीडोट नहीं बना है. मतलब अगर ये ज़हर ठीक-ठाक मात्रा में आपके शरीर तक पहुंचा दिया जाए तो फिर बचने की कोई उम्मीद नहीं है.
ये लिफ़ाफ़े वाला तरीका कितना कारगर है?
कोई बड़ी हस्ती जिसके क़रीब नहीं पहुंचा जा सकता, उसके नाम के पैकेट में राइसिन भेजने वाली स्ट्रेटजी ज़हर को उसके पास तक तो पहुंचा सकती है. पर इस तरीके से किसी को मार पाना बेहद मुश्किल है. जब तक आपके भेजे हुए लिफ़ाफ़े को खोलकर सामने वाला उसमें से निकलने वाले संदिग्ध पाउडर को बिना जांचे परखे खा नहीं लेता या किसी तरह से उसकी नाक के रास्ते ये पाउडर उसके शरीर में नहीं चला जाता, तब तक ये ज़हर अपना असर नहीं दिखा सकता. और कोई भी ठीक-ठाक बौद्धिक क्षमता वाला इंसान तो ऐसा नहीं ही करेगा.

ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे प्रणव ने लिखी है.

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