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हम अपने कौन-कौन से अंग दान कर सकते हैं और इसका प्रोसेस क्या है?

अंगदान के बारे में सब कुछ.

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अंगदान का मामला है.
घटना दिल्ली की है. तारीख़- 8 जनवरी. 20 महीने की बच्ची धनिष्ठा घर की छत से नीचे गिर गई. परिवार वाले तुरंत लेकर अस्पताल भागे. गंगाराम हॉस्पिटल. बच्ची के सिर पर काफी चोट आई थी. 11 जनवरी को बच्ची को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया. हालांकि बच्ची के बाकी अंग अच्छे से काम कर रहे थे. परिवार वालों ने अंगदान करने का फैसला किया. 20 महीने की बच्ची का अंगदान. एक बेहद मुश्किल फैसला. लेकिन इस फैसले ने पांच लोगों की ज़िंदगी को बेहतर बना दिया. धनिष्ठा के हार्ट, लिवर, दोनों किडनी और कॉर्नियां पांच अलग-अलग लोगों को प्रत्यारोपित किए गए. धनिष्ठा तो अब नहीं रही, लेकिन बहुत बड़ा काम कर गई. बात साफ है. फूंकने और दफ़न होने के अलावा भी ये जिस्म काम में लाया जा सकता है. इसीलिए हमने सोचा कि आपसे अंगदान की प्रक्रिया पर बात की जाए. चलिए, शुरू से शुरू करते हैं. अंगदान का मतलब कुछ लोग होते हैं, जिनके शरीर का कोई एक अंग ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा होता है. इसकी वजह से पूरे शरीर पर, इसकी फंक्शनिंग पर असर पड़ रहा होता है. अब ये अंग इस हालत में भी नहीं है कि इलाज करके चंगा किया जा सके. अब फ़र्ज़ करिए कि किसी दूसरे इंसान के शरीर से ये अंग इस बीमार व्यक्ति के शरीर में लगा दिया जाए. तब तो ये बिल्कुल सही हो जाएगा. बस इसी को कहते हैं अंगदान. Organ Donation. अंगदान कौन कर सकता है लिविंग डोनर (जीवित दाता): 18 साल से ज़्यादा उम्र का कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से अंगदान कर सकता हैं. अब कॉमन सेंस है कि जीवित व्यक्ति अपना दिल निकालकर तो किसी को दे नहीं देगा. लेकिन कुछ अंग ऐसे भी होते हैं, जो जीवित व्यक्ति दान कर सकता है. जैसे कि- आंख, किडनी, लिवर. क्योंकि इंसान का काम तो एक आंख और एक किडनी से भी चल सकता है. ऐसे में कई बार करीबियों के लिए एक आंख या एक किडनी को लोग दान कर देते हैं. वहीं, लिवर का एक छोटा हिस्सा काटकर जरूरतमंद की बॉडी में ट्रांसप्लांट किया जाता है. डेड डोनर (मृतक दाता): कोई भी व्यक्ति प्राकृतिक मृत्यु (ब्रेन स्टेम/कार्डियक) के बाद अपने अंगों को दान कर सकता है. इस कैटेगरी में ब्रेन डेड लोगों को भी शामिल किया जा सकता है. जैसा कि धनिष्ठा के केस में हुआ. ऐसा डोनर लिवर, किडनी, हार्ट, लंग्स, अग्नाशय जैसे अंग दान कर सकता है. बताते चलें कि शरीर के कुछ टिश्यूज़ जैसे कि हड्डी, त्वचा, कॉर्निया, हार्ट वॉल्व, रक्त वाहिकाओं, तंत्रिकाओं को भी दान किया जा सकता है. डोनर बनने के लिए क्या करें यदि किसी ने अपनी मृत्यु से पहले ऑर्गन डोनेशन की विल लिखवाई है तो ऐसा करने के लिए उसे दो गवाहों की ज़रूरत होगी. उनमें से कोई भी एक व्यक्ति डोनर की मृत्यु के बाद उसके अंगों को दान करने का अधिकार रखता है. यदि ऐसी कोई विल नहीं बनी है तो किसी की मृत्यु के बाद नज़दीकी परिजन अंगदान का निर्णय ले सकते हैं. डोनर के अंतिम संस्कार में (फिर चाहे वो किसी भी धर्म का हो) डोनेशन से कोई अंतर नहीं आता. भारत सरकार ने फ़रवरी, 1995 में ‘मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम‘ पास किया था. जिसके अन्तर्गत अंगदान और मस्तिष्क मृत्यु को क़ानूनी वैधता प्रदान की गई है. लेकिन ‘मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994’ के अनुसार अंगों व टिशूज़ की बिक्री पूर्णत: प्रतिबंधित है. और यदि ऐसा पाया जाता है तो दोषियों को दंड या/और जुर्माना देना होगा. ऑर्गन डोनेशन में पीछे है भारत ऑर्गन डोनेशन के मामले में फ्रांस का उदाहरण बहुत बड़ा है. उन्होंने इसकी अहमियत को समझा और 1 जनवरी, 2017 को वहां एक कानून लाया गया. फ्रांस का हर नागरिक तब तक ऑर्गन-डोनर है, जब तक कि वो अपने आप को इस लिस्ट से हटा न दे. इससे पहले लोग स्वेच्छा से अंगदान कर सकते थे. लेकिन 1 जनवरी, 2017 से वहां का हर एक बाशिंदा डोनर है. अगर कोई नहीं चाहता कि उसके अंग दान किए जाएं तो वो अपने आप को डी-रजिस्टर कर सकता है. अब बात भारत की.
# अंगदान के क्षेत्र में देश में काम करने वाली सक्रिय संस्था ORGAN की एक रिपोर्ट के मुताबिक - स्पेन में हर दस लाख में से करीब 47 लोग अंगदान करते हैं. अमेरिका में करीब 32 लाख. वहीं हमारे भारत में हर दस लाख में से कितने लोग अंगदान करते हैं? 0.8 लोग. # भारत का ऑर्गन डोनेशन रेट दुनिया में सबसे कम है. सबसे कम. # देश में हर साल करीब दो लाख किडनी, 50 हज़ार दिल और 50 हज़ार लिवर की ज़रूरत होती है. और अंगदान के ज़रिये हमारे पास आते कितने हैं?  दो हज़ार से भी कम किडनी. और एक हज़ार से भी कम दिल और लिवर. # देश में मृत लोगों में से एक फीसदी भी अंगदान नहीं करते.
हालांकि धार्मिक कर्मकांडों में जकड़े हमारे समाज में इसे पूरी तरह स्वीकार्यता अब भी नहीं मिल पाई है. अंधविश्वास ही तमाम हैं. कि साब आंख दान कर दी तो अगले जन्म में बिना आंख के पैदा होंगे. देहदान करने से आत्मा को शांति नहीं मिलती, वगैरह. अच्छा कुछ ग़लत जानकारियां भी हैं. जैसे कि- अंगदान किया तो वो अंग निकालकर विकृत लाश वापस की जाती है. जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है. ज़रूरत का अंग निकालकर मृतक के शरीर को वापस सिलकर परिजनों को सौेंपा जाता है. मृतक के परिवारजन खुद उनका अंगदान क्या ही करेंगे, कई बार तो मृतक कंसेंट देकर मरा होता है तब भी उसकी आख़िरी इच्छा को नकारते हुए उसका अंतिम संस्कार कर डालते हैं. अभी बहुत वक़्त लगेगा हमें ये समझने में कि शरीर को नष्ट करने की जगह उसे किसी के भले के काम में ले आना मृतक के लिए सबसे अच्छी श्रद्धांजलि है.

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