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रेपो रेट तो सुना होगा, ये 'लॉन्ग टर्म रेपो रेट' क्या है, जिसे RBI ने फिर शुरू किया है?

बजट के बाद RBI ने मौद्रिक नीति का ऐलान किया है.

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आरबीआई ने मौद्रिक नीति का ऐलान किया. रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया. आरबीआई के गवर्नर शशिकांत दास (फोटो-पीटीआई)
RBI. यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया. देश में तमाम बैंकों का सुप्रीमो. देश में जितने सरकारी या गैर सरकारी बैंक चल रहे हैं, इन सबकी निगरानी करना रिज़र्व बैंक का काम है. रिज़र्व बैंक पॉलिसी बनाकर इन बैंकों को देता है, जिसके आधार पर बैंकों को अपना कामकाज करना होता है. 17 अप्रैल को RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने लॉकडाउन के बीच देश की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए कुछ अहम ऐलान किए.
इस बार RBI ने पॉलिसी का ऐलान करते हुए लंबे वक्त के बाद लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन्स (LTRO) लाए जाने की बात की है. लेकिन ये LTRO है क्या?
दरअसल, रिज़र्व बैंक के कई काम होते हैं. एक काम होता है, नीतिगत दरों पर फैसला करना. अब ये नीतिगत दरें क्या होती हैं? नीतिगत दरें, उनको कहा जाता है, जिनके आधार पर रिज़र्व बैंक और दूसरे कमर्शियल बैंकों के बीच लेन-देन होता है. मसलन कोई बैंक है. उसे अपना काम-काज चलाने के लिए लोन की जरूरत पड़ सकती है. अगर काम-काज बढ़िया चल रहा है, तो कमाया हुआ पैसा कहीं जमा करना है. ऐसे में आता है रिज़र्व बैंक.

रेपो रेट क्या होता है?

बैंक अपने रोज के खर्चों को चलाने के लिए RBI से पैसा उधार लेते हैं. बैंक जिस दर पर रिज़र्व बैंक से उधार लेते हैं, उसे रेपो रेट कहते हैं. इससे उलट, जब बैंक अपना पैसा रिज़र्व बैंक में जमा करते हैं, तो उन्हें ब्याज़ मिलता है. इस ब्याज की दर को ही रिवर्स रेपो रेट कहते हैं.
लेकिन हम आपको ये सब क्यों बता रहे हैं?  बजट के बाद आरबीआई ने मौद्रिक नीति का ऐलान किया. आरबीआई ने रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया. रेपो रेट 5.15 फीसदी ही है. वहीं रिवर्स रेपो रेट 4.90% पर बरकरार रखा है.
देश में तमाम बैंकों का प्रमुख आरबीआई. देश में तमाम बैंकों का प्रमुख आरबीआई.

LTRO क्या होता है?

लेकिन आरबीआई ने एक बड़ा ऐलान किया. लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन्स (LTRO). इसे आरबीआई का मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है. क्यों बताया जा रहा है? इसके बारे में बाद में बात करेंगे. उससे पहले ये जान लेते हैं कि LTRO होता क्या है?
खबर की शुरुआत में हमने रेपो रेट का जिक्र किया. बैंक जिस दर पर रिज़र्व बैंक से कर्ज लेते हैं, उसे रेपो रेट कहते हैं. ये शॉर्ट टर्म होते हैं. तीन महीने और छह महीने के लिए. लेकिन आरबीआई ने लंबे समय बाद लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन्स की बात कही है. रेपो रेट शॉर्ट टर्म के लिए होता है. वहीं लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन्स एक से तीन साल तक के लिए होता है. यानी बैंक आरबीआई से एक से तीन साल तक के लिए कर्ज ले सकते हैं.
सबसे बड़ी बात ये है कि आरबीआई ने लॉन्ग टर्म रेपो की दर, रेपो रेट की दर पर ही रखा है. आरबीआई के इस ऐलान से पहले लॉन्ग टर्म के लिए कर्ज लेने पर बैंकों को ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ता था. लेकिन 15 फरवरी, 2020 से लिक्विडिटी, यानी कैश फ्लो की कमी होने पर बैंक आरबीआई से रेपो रेट वाले रेट पर एक से तीन साल तक के लिए कर्ज ले सकते हैं.
आरबीआई के गवर्नर शशिकांत दास ने इस मौके पर कहा,
हम पॉलिसी रेट पर ये फंड दे रहे हैं. हम बैंकिंग सिस्टम में एक लाख करोड़ रुपए डालने जा रहे हैं, जिससे बैंक लोन पर ब्याज दर कम कर सकें. यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि केंद्रीय बैंक के पास ऐसे कई उपाय हैं, जिनसे वह भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए कर सकता है.

जरूरत क्यों पड़ी?

'इंडिया टुडे' मैगजीन के एडिटर अंशुमान तिवारी बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था जिस दौर से गुजर रही है, वैसे में रिजर्व बैंक सीधे ब्याज दर नहीं घटा सकता. मार्केट में इसके लिए न तो स्पेस है, न ही डिमांड. महंगाई बढ़ रही है. हालांकि आरबीआई चाहता है कि मार्केट में लिक्विडिटी बनी रही, यानी कैश फ्लो बना रहे. LTRO से लिक्विडिटी बनी रहेगी. हालांकि इस लिक्विडिटी का फायदा कर्ज लेने वालों को उतना नहीं मिलेगा, जितना आने वाले समय में सरकार को मिलेगा. बैंकों का पैसा फाइनली सरकार की ट्रेजरी बिल में जाएगा.
अंशुमान तिवारी का कहना है कि आरबीआई ने ये विंडो लंबे समय बाद शुरू किया है. ये इसलिए किया गया है कि मार्केट में इंट्रेस्ट रेट पर दबाव न पड़े. क्योंकि लिक्विडिटी विंडो खोलकर रखने पर बाजार के लिए ये सेंटिमेंट रहेगा कि पर्याप्त पैसा आ रहा है, इससे ब्याज दरें नहीं बढ़ेंगी. महंगाई की दर और राजकोषीय घाटे को देखते हुए ब्याज दरें बढ़ना शुरू हो जाती हैं.
कुल मिलाकर, आरबीआई चाहता है कि बाजार में कैश फ्लो बना रहे. इसलिए वह एक लाख करोड़ रुपए मार्केट में डालने की बात कर रहा है. लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन्स लाने के पीछे वजह ये है कि आरबीआई मौजूदा स्थिति में रेपो रेट नहीं घटा सकता, इसलिए वह लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन्स लेकर आया.


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