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शेयर मार्केट की कमर टूटने से जिसने बचाई वो 'सर्किट ब्रेकर' होता क्या है?

12 साल बाद फिर से लौटा है ये सर्किट ब्रेकर.

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शेयर मार्केट ने जो लोअर सर्किट ब्रेकर झेला है उसे समझना ज़रूरी है. क्योंकि लोअर सर्किट ने शेयर मार्केट को एक तरह से संभाला ही है

शेयर बाजार में 13 मार्च को जबरदस्त उतार-चढ़ाव रहा. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स शुक्रवार को बाजार खुलते ही 2,534 अंक तक गिर गया. इतनी तेज गिरावट का ये लगातार दूसरा दिन था. ओपनिंग के 12 मिनट बाद ही लोअर सर्किट लग गया. और लोअर सर्किट लगने की वजह से ट्रेडिंग रोक दी गई. 2008 की मंदी के बाद पिछले 12 साल में ये पहला मौका था, जब बाज़ार को 45 मिनट के लिए बंद करना पड़ा. इस दौरान रुपया भी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर यानी 74.48 तक गिर गया.

45 मिनट बाद जब ट्रेडिंग दोबारा शुरू हुई तो सेंसेक्स 3600 अंक तक गिर गया. इसके बाद अगले 38 मिनट में ही सेंसेक्स ने पूरे 3600 अंक तो रिकवर किए ही, साथ ही पिछली क्लोजिंग से 384 पॉइंट ऊपर चला गया. इसी तरह निफ्टी में ओपनिंग के साथ ही 966 अंक की गिरावट देखी गई थी. बाद में ये भी रिकवर हुआ और 146 अंक ऊपर चढ़ गया.


अगर शेयर मार्केट ने लोअर कैप ना लगाया होता तो लंबा खेल हो जाता
अगर शेयर मार्केट ने लोअर कैप ना लगाया होता तो लंबा खेल हो जाता

# लेकिन ये लोअर सर्किट है क्या?

लोअर सर्किट को असल में सर्किट ब्रेकर भी कहते हैं. और जैसा कि नाम से ज़ाहिर है कि ये सर्किट माने सिलसिले को तोड़ने के लिए सर्किट ब्रेकर कहा जाता है. सर्किट या सिलसिला किस चीज़ का? ख़रीदारी या बिकवाली का सिलसिला. शेयर बाज़ार ही नहीं बल्कि किसी भी बाज़ार के लिए सिर्फ़ ख़रीदारी या सिर्फ़ बिकवाली ठीक चीज़ नहीं होती. बाज़ार मतलब जहां ख़रीदारी हो तो बिकवाली भी हो. सामान खरीदा बेचा जाए तो बाज़ार बना रहता है. लेकिन जब शेयर मार्केट में अचानक सब लोग अपने शेयर बेचने लगते हैं, या ख़रीदने लगते हैं तो बाज़ार को बचाने के लिए सर्किट ब्रेकर का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन ये सर्किट ब्रेकर इतना ख़ास क्यों है कि 2008 के बाद इसे दोबारा इस्तेमाल करने में 12 साल लग गए?

असल में ये लोअर सर्किट न लगता तो ही अच्छा होता. 12 साल बाद ही लेकिन इसका लगना बाज़ार के लिए अच्छा नहीं है. लोअर सर्किट के लगने और शेयर मार्केट की ख़रीदारी-बिकवाली को समझने से पहले एक उदाहरण सुन लीजिए. सर्किट ब्रेकर समझने में काम आएगा.


अगर इस तरह की मंडी फिर कभी आई तो बाज़ार इससे निपटने के लिए वही तरीका अपनाएगा
अगर इस तरह की मंडी फिर कभी आई तो बाज़ार इससे निपटने के लिए वही तरीका अपनाएगा

# शेयर मार्केट का गणित

शेयर का मतलब होता है हिस्सा. किसी कंपनी में आपका हिस्सा माने आपका शेयर. अब समझिए कि एक गांव में अनिल नाम का आदमी एक दुकान चलाता है. दुकान टोटल हज़ार रुपए की है. अनिल के पास अपना पैसा नहीं था दुकान खोलने के लिए, इसलिए उसने गांव के कुछ लोगों से मदद मांगी. अनिल ने दुकान में हिस्सेदारी बेची. गांव के लोगों ने 10 रुपए प्रति शेयर के हिसाब से अनिल की दुकान में हिस्सेदारी ख़रीद ली. अब जब अनिल की दुकान को फ़ायदा होगा तो एक शेयर का दाम 10 रुपए से बढ़ जाएगा, और मुनाफ़े का एक हिस्सा जोड़कर ज़्यादा हो जाएगा.

अब समझिए कि अचानक एक दिन सारे के सारे लोग अनिल की दुकान की अपनी हिस्सेदारी बेचने लगें तो? तो उसे ख़रीदेगा कौन? क्योंकि सारे ही बेच रहे होंगे. इससे या तो इकठ्ठा ही बाज़ार का फ़ायदा होगा या नुकसान.

एक शब्द होता है भेड़ चाल. मतलब एक भेड़ के पीछे पूरा झुंड निकल पड़ता है. और जब बाज़ार से एक भेड़ के पीछे सारी भेड़ें निकलने के लिए गेट की तरफ़ बढ़ने लगती हैं, तो गेट बंद करना होता है सर्किट ब्रेकर. माने ये बाज़ार को बचाने का तरीका है. अगर देखा-देखी में लोग एक साथ अपने शेयर बेचने लगे तो एक तय सीमा के बाद बाज़ार में ट्रेडिंग रोक दी जाती है.


# क्या है सारा गुणा गणित?

जुलाई, 2001 की सेबी की गाइडलाइन के बाद सर्किट की शुरुआत हुई थी. भारतीय शेयर बाजार में अचानक आए बड़े उतार-चढ़ाव को थामने के लिए सर्किट लगाया जाता है. ये दो तरह के होते हैं. अपर सर्किट और लोअर सर्किट. अपर सर्किट तब लगाया जाता है, जब बाजार एक तय सीमा से ज्यादा बढ़ जाता है. और जब उसी सीमा से ज्यादा घटता है तो लोअर सर्किट का इस्तेमाल किया जाता है. सेबी ने सर्किट के लिए तीन ट्रिगर लिमिट 10%, 15% और 20% तय की हैं.


# कैसे लागू होता है सर्किट ब्रेकर?

शेयर बाजार में सर्किट ब्रेकर लगाने का भी नियम है.

जब दोपहर 1 बजे से पहले शेयर बाजार 10% तक गिर या चढ़ जाए तो ट्रेडिंग 45 मिनट के लिए रोक दी जाती है.

अगर 1 बजे के बाद 10% का उतार-चढ़ाव होता है तो कारोबार को केवल 15 मिनट के लिए रोका जाता है.

अगर दोपहर 1 बजे से पहले शेयर बाजार में 15% उतार-चढ़ाव आए तो ट्रेडिंग 1 घंटे 45 मिनट के लिए रोक दी जाती है. अगर ट्रेडिंग के दौरान किसी भी वक्त शेयर बाजार में 20% का उतार-चढ़ाव आता है तो बचे हुए दिन के लिए ट्रेडिंग बंद कर दी जाती है.


# कब-कब लगा है सर्किट ब्रेकर?

-भारत में सेबी ने 28 जून, 2001 में सर्किट ब्रेकर की व्यवस्था लागू की

- देश के शेयर बाजार के इतिहास में पहली बार सर्किट ब्रेकर का इस्तेमाल 17 मई, 2004 को हुआ. इस दिन दो बार सर्किट ब्रेकर लगाया गया.

-इसके बाद सर्किट ब्रेकर का इस्तेमाल 22 मई, 2006 को हुआ. इस दिन शेयर बाजार में लोअर सर्किट लगाया गया.

-इसके बाद सर्किट ब्रेकर का इस्तेमाल 17 अक्टूबर, 2007 को किया गया. इस दिन भी शेयर बाजार में लोअर सर्किट लगा.

-इसके बाद 22 जनवरी, 2008 को शेयर बाजार में सर्किट ब्रेकर का इस्तेमाल हुआ.

-अब 12 साल बाद 13 मार्च, 2020 को सर्किट ब्रेकर का इस्तेमाल हुआ है.

बाज़ार की कमर टूटी हुई है. पिछले कई बरसों से बाज़ार ने ये हालात नहीं देखे थे. अब बाज़ार ने सर्किट ब्रेकर भी देख लिया. निवेशक दिन-रात यही दुआ कर रहे हैं कि बाज़ार संभल जाए. और ये सर्किट ब्रेकर का दिन दोबारा न देखना पड़े.




वीडियो देखें:

बिल्कुल आसान भाषा में समझिए सेंसेक्स और शेयर मार्केट की पूरी ABCD