The Lallantop

देश की दूसरी सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी BPCL को क्यों बेचने जा रही है सरकार?

आसान भाषा में जानिए, BPCL में सरकार की हिस्सेदारी बिकने से क्या हासिल होगा?

post-main-image
सरकार ने भारत पेट्रोलियम को बेचने की तैयारी कर ली है.
सरकार सरकारी स्वामित्व की कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर डिसइन्वेस्टमेंट यानी विनिवेश की ओर तेज़ी से बढ़ रही है. 30 सितंबर, 2019 को सचिव स्तर की एक मीटिंग में फैसला हुआ कि सरकार-
- भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमेटिड (BPCL)
- शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SCI)
- THDC लिमेटिड
- नॉर्थ ईस्ट इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमेटिड (NEEPO)
में पूरी हिस्सेदारी बेचेगी.
इसके अलावा कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया में भी 30 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला हुआ है. इन सभी कंपनियों में BPCL सबसे बड़ी कंपनी है जिसमें हिस्सेदारी बेचने पर सरकार को अच्छी-खासी रक़म मिलने की उम्मीद है. मौजूदा वक्त में BPCL की मार्किट वैल्यूएशन 1 लाख करोड़ से ज्यादा है. जिसमें से अपना हिस्सा बेचने पर सरकार को 55-60 हज़ार करोड़ मिलने की उम्मीद है. आइए आसान भाषा में जानते है BPCL का पूरा मामला.

BPCL 

भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड भारत सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी है. सरकार के पास 53.29% फीसदी हिस्सा है. भारत के पेट्रोलियम सेक्टर में BPCL बड़ा नाम है. अच्छी खासी हिस्सेदारी है. करीब 25 फीसदी. घर में इस्तेमाल होने वाली LPG गैस से लेकर प्लेन के फ्यूल तक, सब बनाती है BPCL.अगर कच्चे तेल यानी क्रूड ऑयल की रिफाइनिंग की बात करें तो BPCL देश में करीब 13 फ़ीसदी तेल रिफाइन करता है. यानी हर साल करीब 33 मिलियन मीट्रिक टन. तकरीबन 15000 फ्यूलिंग स्टेशन हैं और 6000 LPG डिस्टीब्यूटर्स. BPCL की शेयर मार्केट में मौजूदा वैल्यू 1 लाख 11 हज़ार करोड़ है. सरकार की हिस्सेदारी बनती है क़रीब 60 हज़ार करोड़.
भारत पेट्रोलियम के पास बड़ा डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम है.
भारत पेट्रोलियम के पास बड़ा डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम है.

हिस्सेदारी क्यों बेच रही है सरकार

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना पहला बजट पेश करते हुए विनिवेश का लक्ष्य रखा था 1.05 लाख करोड़ रुपये. यानी सरकार वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान सरकारी कंपनियों और निवेश में हिस्सेदारी बेचकर 1.05 करोड़ रुपये जुटाएगी. BPCL सरकार की महारत्न कंपनी है. यानी बड़ी कंपनी. 30 सितंबर को सचिव स्तर की मीटिंग में जिन कंपनियों में विनिवेश का फैसला हुआ, उनमें से BPCL ही सबसे बड़ी कंपनी है. BPCL बेचने से सरकार एक बार में ही विनिवेश के सालाना लक्ष्य यानी 1.05 लाख करोड़ का आधा हिस्सा जुटा लेगी.
सरकार ने पहले हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड को भी बेचा था. ख़रीदार एक सरकारी पीएसयू- ONGC थी. उस वक्त सरकार को क़ीमत से 18% ज्यादा प्रीमियम मिला था. सरल शब्दों में कहा जाए तो मार्किट वैल्यू से 18% ज्यादा पैसा मिला था. ख़बरों के मुताबिक, सरकार BPCL को खुली मार्किट में बेचने की तैयारी में है. तो उम्मीद है कि 18% से भी ज्यादा प्रीमियम इस बार मिलेगा. अगर ऐसा होता है तो सरकार विनिवेश के सालाना लक्ष्य से और क़रीब पहुंच जाएगी.
ONGC बैंकएंड पर काम करती थी. हिंदुस्तान पेट्रोलियम को ख़रीदकर ONGC पेट्रोलियम रिटेल में भी आ गया है.
ONGC बैंकएंड पर काम करती थी. हिंदुस्तान पेट्रोलियम को ख़रीदकर ONGC पेट्रोलियम रिटेल में भी आ गया है.

कानूनी अड़चनें

जब BPCL को बेचने की ख़बरें सामने आईं तो इसकी प्रक्रिया पर सवाल उठने शुरू हो गए. लोग कहने लगे कि सरकार को BPCL बेचने के लिए संसद की अनुमति लेनी होगी. ऐसा बर्मा शेल (BPCL का पुराना नाम) के अधिग्रहण के लिए 1976 में बने कानून की वजह से था. लेकिन BPCL ने एक सीनियर अधिकारी ने न्यूज़ एजेंसी PTI को बताया कि अब वो कानून ख़त्म हो चुका है और BPCL को बेचने के लिए संसद की अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है.
दरअसल, 2016 में सरकार ने निरसन एवं संशोधन कानून, 2016 के तहत 187 'अप्रचलित और निरर्थक' कानूनों को रद्द कर दिया था. इन्हीं में से एक था BPCL के राष्ट्रीयकरण का कानून. 2016 में रद्द होने से पहले अगर सरकार BPCL को बेचने की कोशिश करती तो उसे संसद की अनुमति लेनी पड़ती.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5 जुलाई को बजट पेश किया.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5 जुलाई को बजट पेश किया.

ऐसा पहली बार नहीं है कि सरकार ने BPCL को बेचने की कोशिश की हो. 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी ऐसी कोशिश हुई थी. तब सरकार 34.1 फीसदी हिस्सा बेच रही थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार बिना कानून में ज़रूरी बदलाव किए BPCL को नहीं बेच सकती. लेकिन अब ऐसी कोई बंदिश नहीं रही है. संसद की अनुमति लेने का प्रावधान 2016 में कानून बदलने के साथ ही ख़त्म हो गया.

मार्केट में रिएक्शन

मार्केट में इंतज़ार है सरकार के अगले क़दम का. सरकार के पास हिस्सेदारी बेचने के दो विकल्प हैं. पहला किसी सरकारी कंपनी को बेच दें और दूसरा प्राइवेट सेक्टर को बेच दें. सरकार दूसरा विकल्प चुनेगी, इसकी संभावना ज़्यादा लग रही है. ICICI सिक्योरिटीज़ ने अपने ग्राहकों को दी जानकारी में लिखा है कि
प्राइवेट हाथों में जाने से BPCL की क़ीमत बढ़ सकता है. इससे तेल के दाम में होने वाली राजनीति कम होगी. ये सुनिश्चत करेगा कि इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC)की भारत सरकार को भारी लाभांश का भुगतान करने की क्षमता बिगड़े नहीं. इससे मार्केट में सेंटिमेंट भी ठीक होगा और इसे बड़े सुधारों की तरह देखा जाएगा.
अगर सरकार के पास मौजूद पहले ऑप्शन यानी BPCL को इंडियन ऑयल के हाथों बेचने की बात करें तो यहां संभावना कम ही दिखती है. जानकारों के मुताबिक, अगर IOC को BPCL बेची जाती है तो इससे मार्केट में IOC की स्थिति मज़बूत हो जाएगी. ऐसा होने पर देश के 65% से ज्यादा तेल स्टेशन इंडियन ऑयल के हो जाएंगे. जो इस सेक्टर में होने वाली प्राइवेट इन्वेस्टमेंट को हतोत्साहित कर सकता है.
सांकेतिक तस्वीर.
सांकेतिक तस्वीर.

इसी बीच क्रेडिट रेटिंग एजेंसी 'मूडीज़' ने कहा है कि
अगर सरकार BPCL को प्राइवेट हाथों में बेचती है तो कंपनी की रेटिंग नेगेटिव हो जाएगी. हिस्सेदारी बेचने पर BPCL के सरकार से संबंध ख़त्म हो जाएंगे जिससे बॉन्ड्स को जल्द रिडीम करने में दिक्कत आ सकती है.
BPCL के लिए सितंबर 2019 का महीना अच्छा रहा था. इसके शेयरों की वैल्यू में क़रीब 20% की बढ़ोतरी हुई थी. फिलहाल BPCL के इर्द-गिर्द फैली अनिश्चित्ता का असर शेयर बाज़ार पर भी दिख रहा है. 3 अक्तूबर, 2019 को BPCL ने बीते एक साल में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया. शेयर वैल्यू 530 रुपये प्रति शेयर के स्तर को पार कर गई. लेकिन इससे दो दिन पहले और दो दिन बाद वैल्यू में 5-7% की गिरावट दर्ज की गई है. यानी अनिश्चित्ता जारी है.

आम जनता पर क्या असर होगा

आम जनता पर सीधे तौर पर कोई असर नहीं पड़ेगा. कंपनी का मालिकाना हक़ बदलेगा. डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क वही रहेगा. आपके घर में गैस पहुंचाने वही आएगा जो पहले आता रहा है. इस वक्त भी डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम प्राइवेट हाथों में ही है. गैस एजेंसी और पेट्रोल पंप पहले से ही प्राइवेट प्लेयर चला रहे हैं. हां, अब तक सरकार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दाम पर नियंत्रण रखती आई है. क्योंकि, डिस्ट्रिब्यूशन में पब्लिक कंपनियां ही बड़ी प्लेयर हैं. आने वाले वक्त में पेट्रोलियम सेक्टर के अंदर अगर प्राइवेट कंपनियां मज़बूत होती हैं तो सरकार को दाम अपने काबू में रखने के लिए चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.
BPCL-s

BPCL की ब्रीफ़ हिस्ट्री

भारत पेट्रोलियम की शुरुआत हुई थी 1886 में. स्कॉटलैंड में बनी थी. नाम रखा गया बर्मा ऑयल कंपनी. इसके बाद पेट्रोलियम इंडस्ट्री में कॉम्पटीशन बढ़ा तो उस वक्त की तीन बड़ी कंपनियों- रॉयल डच, शेल और रॉथ्सचाइल्ड ने मिलकर एक कंपनी बनाई- एशिएटिक पेट्रोलियम. 1928 में एशिएटिक पेट्रोलियम और बर्मा ऑयल कंपनी ने जॉइंट वेंचर शुरू किया. नाम रखा गया- बर्मा शेल ऑयल स्टोरेज एंड डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड.


बर्मा शेल कंपनी जे.आर.डी टाटा के प्लेन में तेल भरने के लिए 1932 में यूं बैलगाड़ी पर रखकर तेल ले गई थी. तस्वीर 1962 की है जब इसे दोबारा दर्शाया गया था.
बर्मा शेल कंपनी जे.आर.डी टाटा के प्लेन में तेल भरने के लिए 1932 में यूं बैलगाड़ी पर रखकर तेल ले गई थी. तस्वीर 1962 की है जब इसे दोबारा दर्शाया गया था.

आज़ादी के बाद साल 1955 में मुंबई में रिफाइनरी की शुरुआत की गई और पेट्रोलियम इंडस्ट्री में बर्मा शेल कंपनी का दखल बढ़ा. इसने LPG बेचने की शुरुआत की. 1979 में सरकार और बर्मा शेल कंपनी के बीच एग्रीमेंट हुआ. 100 फ़ीसदी हिस्सा सरकार का हो गया. 2017 में भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड BPCL को महारत्न कंपनी का दर्जा मिला. 2019 में सरकार ने पूरा हिस्सा बेचनी की तैयारी कर ली है. अगर सरकार सफल रहती है तो मार्च 2020 तक विनिवेश की ये प्रक्रिया पूरी होनी की संभावना है.




वीडियो- बिल्कुल आसान भाषा में समझिए सेंसेक्स और शेयर मार्केट की पूरी ABCD