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क्या है आर्टिकल 131, जिसके आधार पर केरल सरकार CAA के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई

केरल इस कानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट जाने वाला पहला राज्य है.

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केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा था कि CAA संविधान के आधारभूत मूल्यों और सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है. फोटो: India Today
नागरिकता संशोधन कानून. CAA. 10 जनवरी से लागू हो गया है. लेकिन 'विवादित' शब्द इसके साथ जुड़ गया. सड़कों पर तो इसका विरोध हो ही रहा है, कई राज्य भी 'हम नहीं मानेंगे' वाले मोड में हैं. लेकिन दिक्कत ये है कि नागरिकता पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है और कोई भी राज्य इसे लागू करने से इनकार नहीं कर सकता. 31 दिसंबर, 2019 को केरल विधानसभा ने इस कानून के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास किया था. इसे लेकर मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद भिड़ गए. रविशंकर प्रसाद ने विजयन को बेहतर कानूनी सलाह लेने की 'सलाह' दे डाली. अब केरल सरकार संविधान के आर्टिकल 131 का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. इस कानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट जाने वाला केरल पहला राज्य है. संविधान का आर्टिकल 131 क्या कहता है? आर्टिकल 131 केंद्र और राज्य या दो राज्यों के बीच हुए विवाद से डील करता है. यह आर्टिकल ऐसे विवाद की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट को फैसला देने का अधिकार देता है. इसमें केस की सबसे पहले सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में ही होती है. ये आर्टिकल 32 से अलग है, जहां सुप्रीम कोर्ट को रिट ज़ारी करने का अधिकार होता है. आर्टिकल 131 के तहत इन स्थितियों में कोर्ट को एक्सक्लूसिव अधिकार होता है, जिसमें-
1.अगर भारत सरकार और एक या एक से ज़्यादा राज्यों के बीच विवाद हो. 2.अगर भारत सरकार और एक राज्य या एक से ज़्यादा राज्य एक तरफ़ हों और एक या एक से ज़्यादा दूसरी तरफ़ हों. 3.अगर दो या दो से ज़्यादा राज्यों के बीच कोई विवाद हो, जिसमें कोई ऐसा सवाल शामिल हो (कानून या तथ्य से जुड़ा) जिस पर कानूनी अधिकार का अस्तित्व या उसका विस्तार निर्भर करता हो. हालांकि ये अधिकार-क्षेत्र किसी ऐसे विवाद पर लागू नहीं होगा, जो संविधान के लागू होने से पहले की गई किसी संधि, समझौते और इससे मिलती-जुलती चीज़ों से पैदा हुआ हो और जो संधि, समझौते अभी भी ज़ारी हों.
राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ, 1977 केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'आर्टिकल 131 में कानूनी अधिकार का अस्तित्व या विस्तार की शर्त होनी ज़रूरी है. सरकारों के बीच महज झगड़े की इस आर्टिकल में कोई जगह नहीं है.' और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना अधिकार क्षेत्र बरकरार रखा. 2011 में मध्य प्रदेश बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की एक बेंच ने केरल जैसे ही एक मामले को 'नॉट मेंटेनेबल' बताया था. केरल सरकार ने क्या कहा है केरल सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि CAA, 2019 को आर्टिकल 14 (कानून के सामने समानता), आर्टिकल 21 (जीने का अधिकार) और आर्टिकल 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाना चाहिए. केरल सरकार ने कहा कि अगर ये नया कानून पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में धार्मिक तौर पर उत्पीड़न झेल रहे लोगों के लिए है तो फिर इन देशों के शिया और अहमदिया को क्यों अलग रखा गया है? केरल सरकार की तरफ से याचिका में कहा गया है कि शिया और अहमदिया को भी हिंदू, सिख, बुद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय की तरह CAA में शामिल किया जाना चाहिए. इसके अलावा केरल सरकार ने अपनी याचिका में श्रीलंका के तमिल, नेपाल के मधेसी और अफगानिस्तान के हजारा समह का भी ज़िक्र किया है. केरल सरकार ने CAA को संविधान और लोकतंत्र की मूल आत्मा के ख़िलाफ़ बताया है. CAA के ख़िलाफ़ पहले ही सुप्रीम कोर्ट में 60 याचिकाएं दायर हैं और इस मामले की सुनवाई 22 जनवरी को होनी है.
केरल सरकार CAA को न लागू करे तो क्या मोदी सरकार 356 लगाकर बर्खास्त कर सकती है? 

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