1.अगर भारत सरकार और एक या एक से ज़्यादा राज्यों के बीच विवाद हो. 2.अगर भारत सरकार और एक राज्य या एक से ज़्यादा राज्य एक तरफ़ हों और एक या एक से ज़्यादा दूसरी तरफ़ हों. 3.अगर दो या दो से ज़्यादा राज्यों के बीच कोई विवाद हो, जिसमें कोई ऐसा सवाल शामिल हो (कानून या तथ्य से जुड़ा) जिस पर कानूनी अधिकार का अस्तित्व या उसका विस्तार निर्भर करता हो. हालांकि ये अधिकार-क्षेत्र किसी ऐसे विवाद पर लागू नहीं होगा, जो संविधान के लागू होने से पहले की गई किसी संधि, समझौते और इससे मिलती-जुलती चीज़ों से पैदा हुआ हो और जो संधि, समझौते अभी भी ज़ारी हों.राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ, 1977 केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'आर्टिकल 131 में कानूनी अधिकार का अस्तित्व या विस्तार की शर्त होनी ज़रूरी है. सरकारों के बीच महज झगड़े की इस आर्टिकल में कोई जगह नहीं है.' और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना अधिकार क्षेत्र बरकरार रखा. 2011 में मध्य प्रदेश बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की एक बेंच ने केरल जैसे ही एक मामले को 'नॉट मेंटेनेबल' बताया था. केरल सरकार ने क्या कहा है केरल सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि CAA, 2019 को आर्टिकल 14 (कानून के सामने समानता), आर्टिकल 21 (जीने का अधिकार) और आर्टिकल 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाना चाहिए. केरल सरकार ने कहा कि अगर ये नया कानून पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में धार्मिक तौर पर उत्पीड़न झेल रहे लोगों के लिए है तो फिर इन देशों के शिया और अहमदिया को क्यों अलग रखा गया है? केरल सरकार की तरफ से याचिका में कहा गया है कि शिया और अहमदिया को भी हिंदू, सिख, बुद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय की तरह CAA में शामिल किया जाना चाहिए. इसके अलावा केरल सरकार ने अपनी याचिका में श्रीलंका के तमिल, नेपाल के मधेसी और अफगानिस्तान के हजारा समह का भी ज़िक्र किया है. केरल सरकार ने CAA को संविधान और लोकतंत्र की मूल आत्मा के ख़िलाफ़ बताया है. CAA के ख़िलाफ़ पहले ही सुप्रीम कोर्ट में 60 याचिकाएं दायर हैं और इस मामले की सुनवाई 22 जनवरी को होनी है.
केरल सरकार CAA को न लागू करे तो क्या मोदी सरकार 356 लगाकर बर्खास्त कर सकती है?