राहुल गांधी के बयान पर विदेश में क्या हंगामा मचा है?
राहुल गांधी ने चीन, पाकिस्तान को लेकर क्या दावे किए, अमेरिका ने क्या कहा?
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राहुल गांधी ने चीन, पाकिस्तान को लेकर क्या दावे किए, अमेरिका ने क्या कहा? (फोटो - इंडिया टुडे )
आज 2022 के भारतीय संसद में बजट सत्र का चौथा दिन है. 31 जनवरी को सत्र शुरू हुआ था. पहले दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का अभिभाषण हुआ. एक फ़रवरी को आम बजट पेश किया गया. दो फ़रवरी को राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस शुरू हुई. इस मौके पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी हमलावर नज़र आए. उन्होंने तीन बड़े मुद्दों पर केंद्र को घेरने की कोशिश की. पहला, बेरोज़गारी और आर्थिक असमानता. दूसरा, राहुल गांधी ने कहा कि भारत राज्यों का संघ है, कोई साम्राज्य नहीं. इसकी संरचना पर हमला नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि पेगासस के ज़रिए संघीय ढांचे की आवाज़ दबाई जा रही है. उनके भाषण का तीसरा बड़ा मुद्दा भारत की विदेश नीति पर केंद्रित रहा. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार चीन और पाकिस्तान को अलग-थलग करने में नाकाम रही है. ये भारत के लिए बड़ा ख़तरा बन गया है. राहुल गांधी के बयान पर विदेश में क्या हंगामा मचा है? चीन ने गलवान में घायल हुए सैनिक के हाथों में विंटर ओलंपिक्स की मशाल क्यों सौंपी? और, पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भारत के बारे में क्या कहा? सबसे पहले ये जान लेते हैं कि राहुल गांधी के आरोप क्या-क्या थे? - नंबर एक. राहुल गांधी ने सरकार से पूछा कि 26 जनवरी के मौके पर कोई विदेशी मेहमान क्यों नहीं आया? उन्होंने कहा कि ये सरकार की नाकामी है कि हम दुनिया में अलग-थलग हो गए हैं. यहां पर राहुल गांधी एक ग़लती कर गए. या, यूं कह सकते हैं कि भावनाओं में बह गए. दरअसल, भारत ने दिसंबर 2021 में सेंट्रल एशियाई देशों के पांच नेताओं को इन्विटेशन भेजा था. 2022 के गणतंत्र दिवस समारोह में चीफ़ गेस्ट बनने के लिए. जिन देशों के नेताओं को बुलावा भेजा गया था, वे थे - कज़ाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान. उनका समारोह में हिस्सा लेना तय माना जा रहा था. फिर नया साल आया. साथ में ओमिक्रॉन की भी एंट्री हुई. भारत में कोरोना के बहुत तेज़ी से आगे बढ़ने लगे. फिर 18 जनवरी को ख़बर आई कि मेहमानों का आना संभव नहीं होगा. ऐसा लगातार दूसरे साल हो रहा था. 2021 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने 26 जनवरी के मौके पर चीफ़ गेस्ट बनने का न्यौता स्वीकार लिया था. लेकिन उस बार भी कोरोना के मामले अचानक से बढ़ने लगे थे. बोरिस जॉनसन को भी अपना भारत दौरा रद्द करना पड़ा था. इस साल मेहमान भारत तो नहीं आए. लेकिन 27 जनवरी को उनकी भारत के साथ एक वर्चुअल समिट हुई. इस समिट में भारत की तरफ़ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सेंट्रल एशिया के पांच देशों के राष्ट्रपतियों ने हिस्सा लिया. इस मीटिंग में अफ़ग़ानिस्तान का मुद्दा छाया रहा. इसके अलावा, भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच संबंध मज़बूत करने पर भी चर्चा हुई. भारत और मध्य एशियाई देशों के नेताओं की इतने बड़े स्तर पर पहली बार चर्चा हुई थी. भारत की वर्चुअल समिट से दो दिन पहले चीन ने डोरा डाल दिया था. उसने आनन-फानन में 25 जनवरी को इन नेताओं की बैठक ले ली थी और लगभग चार हज़ार करोड़ रुपये की मदद का ऐलान भी कर दिया. इस वजह से पीएम मोदी की ये समिट काफ़ी अहम थी. राहुल गांधी का पहला आरोप यहां पर खारिज हो जाता है. दरअसल, कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह से पांचों नेताओं की विजिट कैंसिल हुई थी. हालांकि, गणतंत्र दिवस समारोह के अगले ही दिन भारत के साथ इन नेताओं की वर्चुअल बैठक आयोजित हुई थी. राहुल गांधी के इस आरोप पर बीजेपी नेता और केंद्र सरकार के मंत्रियों का भी जवाब आया. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ट्विटर पर लिखा कि जो लोग भारत में रहते हैं, उन्हें पता है कि देश में कोरोना की लहर चल रही है. एस. जयशंकर का तंज राहुल गांधी की विदेश यात्राओं पर था. उन्होंने ये भी सवाल किया कि क्या उन्हें 27 जनवरी की समिट के बारे में कुछ पता नहीं है? अब आरोप नंबर दो की बारी. राहुल गांधी ने कहा कि सालों से भारत की विदेश नीति का सबसे बड़ा मकसद पाकिस्तान और चीन को अलग रखने का था. लेकिन आपने उन्हें एक-दूसरे के करीब ला दिया. ये बीजेपी सरकार का भारत के लोगों के साथ किया गया सबसे बड़ा अपराध है. इस आरोप पर एस. जयशंकर ने लिखा कि राहुल गांधी को इतिहास पढ़ने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि शक्सगम घाटी को पाकिस्तान ने 1963 में अवैध तरीके से चीन के हवाले किया था. राहुल गांधी के आरोपों का मसला अमेरिका में भी उठा. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की ब्रीफ़िंग के दौरान पत्रकारों ने इस पर सवाल पूछा. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने जवाब दिया कि वो इस बयान का समर्थन नहीं करते. प्राइस ने कहा कि ये चीन और पाकिस्तान के आपस की बात है. उन्होंने ये भी कहा कि पाकिस्तान अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है. ये तो हुई राहुल गांधी के भाषण की बात. अब जानते हैं, गलवान घाटी में घायल हुए उस चीनी सैनिक की कहानी, जिसे बीजिंग ओलंपिक्स का मशालवाहक बनाया गया है. चीन में 04 फ़रवरी से विंटर ओलंपिक्स का आयोजन हो रहा है. (हमने दुनियादारी में पहले बता चुके हैं कि किस तरह से चीन अपने दामन के दाग छिपाने के लिए आलोचकों को गायब करवा रहा है, एथलीट्स पर निगरानी रख रहा है और विरोधियों पर लगाम कस रहा है. आपको उस ऐपिसोड का लिंक डिस्क्रिप्शन में मिल जाएगा.) एक तरफ़ तो चीन ये चाहता है कि विंटर ओलंपिक्स के ज़रिए वो अपनी पाक-साफ़ छवि बनाए. दूसरी तरफ़ वो खेलों का इस्तेमाल अपना प्रोपेगैंडा फैलाने के लिए भी कर रहा है. 02 फ़रवरी को चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स में एक रिपोर्ट छपी. टाइटल कुछ यूं था, Galwan valley border clash hero becomes 2022 torch relay torchbearer गलवान घाटी में हुई झड़प का हीरो 2022 ओलंपिक्स की मशाल रैली का वाहक बना भारत और चीन के सैनिकों के बीच जून 2020 में गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी. इसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए थे. चीन लंबे समय तक अपने हताहत सैनिकों की संख्या छिपाता रहा. फिर उसने कबूला कि झड़प में उसके चार सैनिक मारे गए. फ़रवरी 2022 में ऑस्ट्रेलियाई अख़बार क्लेक्सॉन ने दावा किया कि गलवान की झड़प में चीन के 42 सैनिक नदी में डूबकर मारे गए थे. इस रिपोर्ट का आधार चीनी ब्लॉगर्स और गुमनाम सोर्सेज़ को बताया गया है. गलवान की इसी झड़प के दौरान एक चीनी सैनिक ‘क़ी फ़ेबाओ’ के सिर में तगड़ी चोट लगी थी. उसे बाद में शिनजियांग मिलिटरी कमांड में रेजिमेंटल कमांडर बनाया गया. अब चीन ने उसे मशालवाहक बनाया है. बीजिंग विंटर ओलंपिक्स में लगभग 12 सौ मशालवाहक हैं. लेकिन फ़ेबाओ का मसलन सबसे संगीन है. एक तरफ़ चीन खेलों को खेल तक सीमित रखने के दावे करता है. वहीं दूसरी तरफ़, वो इसका इस्तेमाल वो अपना प्रोपेगैंडा चमकाने के लिए कर रहा है. अमेरिकी सेनेट की फ़ॉरेन रिलेशंस कमिटी के एक वरिष्ठ सदस्य ने इसको लेकर चीन को लताड़ भी लगाई है. जिम रिच ने ट्विटर पर लिखा कि ये शर्मनाक है. एक ऐसे शख़्स को ओलंपिक्स का मशालवाहक बनाया गया है, जो भारत पर हमले में शामिल रहा और फिलहाल उइगर मुस्लिमों को नरसंहार कर रहा है. जिम ने ये भी लिखा कि अमेरिका भारत की संप्रभुता और उइगरों की आज़ादी का समर्थन करता रहेगा. शिनजियांग में उइगर नरसंहार के आधार पर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देश विंटर ओलंपिक्स का डिप्लोमैटिक बहिष्कार भी कर रहे हैं. इस मसले पर भारत का बयान भी आ गया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि चीन ने ओलंपिक आयोजन का राजनीतिकरण करने की कोशिश की है. भारत ने अपना विरोध दर्ज़ कराया है. बीजिंग में भारत के राजदूत विंटर ओलंपिक्स के उद्घाटन या समापन समारोह में हिस्सा नहीं लेंगे. हालांकि, चीन को इन दबाओं या झटकों से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. वो अपने प्रोपेगैंडा को लेकर अडिग रहने वाला है. चीन के बाद अब बात इंटरव्यू की. पाकिस्तान के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइज़र (NSA) मोईद युसुफ़ ने इंडियन एक्सप्रेस से बात की है. मोईद ने कहा कि पाकिस्तान, भारत के साथ बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन इसके लिए शुरुआत भारत को करनी होगी. उन्होंने ये भी कहा कि भारत सरकार की विचारधारा ने संवाद के रास्ते बंद कर दिए हैं. जनवरी 2022 में पाकिस्तान सरकार ने अपनी पहली नेशनल सिक्योरिटी पॉलिसी जारी की थी. इसमें कहा गया था कि पाकिस्तान, भारत के साथ अगले सौ सालों तक कोई लड़ाई नहीं चाहता. इस लिहाज से मोईद युसुफ़ का बयान काफ़ी अहम माना जा रहा है.
मोईद ने भारत के मसले पर और क्या-क्या दावे किए?
- पहली बात, कश्मीर का मुद्दा पाकिस्तान के लिए अहम बना रहेगा. आपस में बातचीत शुरू करने और रिश्ते मज़बूत करने की कोशिश का ये मतलब नहीं है कि हम अपने राष्ट्रीय हित का मुद्दा दरकिनार कर देंगे. - दूसरी बात, पाकिस्तान ने भारत को सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए बुलाया है. सार्क समिट में नहीं आने का फ़ैसला भारत का था. - मोईद से एक सवाल ये पूछा गया कि अफ़ग़ानिस्तान तक मानवीय मदद भेजने के लिए भारत के अनुरोध का क्या हुआ? भारत ने पाकिस्तान के ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान तक का सड़क मार्ग खोलने की अपील की थी. मोईद ने दावा किया कि पाकिस्तान की कैबिनेट इस प्रस्ताव को अगस्त 2021 में ही हरी झंडी दिखा चुकी है, लेकिन भारत ने अपनी ही बात को भुला दिया. मोईद ने आरोप लगाया कि भारत सरकार पब्लिसिटी स्टंट कर रही थी. अभी तक अफ़ग़ानिस्तान में अनाज का एक दाना नहीं भेजा गया है. - चीन के मसले पर मोईद ने कहा कि वो पाकिस्तान का सबसे क़रीबी रणनीतिक साझेदार नहीं है. पाकिस्तान, भारत के साथ रिश्ते बढ़ा सकता है, बशर्ते भारत संवेदनशीलता से उसके हितों का सम्मान करे. मोईद युसुफ़ को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के सबसे क़रीबी लोगों में गिना जाता है. उनके बयानों के पीछे पाकिस्तान सरकार का मानस है. भारत इस पहल को कैसे लेता है, ये देखने वाली बात होगी. अब सुर्खियों की बारी. पहली सुर्खी रूस-यूक्रेन संकट से जुड़ी है. दोनों देशों के बढ़ते तनाव के बीच तुर्की के राष्ट्रपति रिचेप तैय्यप अर्दोआन यूक्रेन पहुंचे हैं. वो वहां यूक्रेन के राष्ट्रपति वोल्दोमीर ज़ेलेन्सकी से बात करेंगे. तुर्की, रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने की बात कर रहा है. अर्दोआन का दावा है कि दोनों देशों के नेताओं से उनके अच्छे रिश्ते हैं और दोनों ही उनकी बात ध्यान से सुनेंगे. तुर्की का एक लालच भी है. वो नाटो का सदस्य है, पूर्वी यूरोप में जिसकी बढ़ती पहुंच से रूस चिढ़ा हुआ है. तुर्की कई जगहों पर रूसी सेना के साथ भी खड़ा है. इसके अलावा, उसने यूक्रेन की डिफ़ेंस इंडस्ट्री में भारी निवेश किया है. इसलिए, तुर्की इस तनाव को किसी भी कीमत पर टालना चाहता है. दूसरी और अंतिम सुर्खी सीरिया से है. यूएस स्पेशल फ़ोर्सेज़ के एक ऑपरेशन में 13 लोगों के मारे जाने की ख़बर है. ये ऑपरेशन दो फ़रवरी की आधी रात इदलिब प्रांत में चलाया गया. टारगेट पर अल-क़ायदा के आतंकी थे. अमेरिका दावा करता है कि इदलिब में अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट ने अपना ठिकाना बना लिया है. वहां से वे पूरी दुनिया में आतंकी हमले की प्लानिंग करते हैं. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने कहा कि मिशन सफ़ल रहा और इसमें किसी भी अमेरिकी सैनिक को नुकसान नहीं पहुंचा. हालांकि, पेंटागन ने और कोई जानकारी नहीं दी है. व्हाइट हेलमेट्स रेस्क्यू सर्विस ने दावा किया है कि उन्हें एक घर में छह बच्चों और चार महिलाओं के शव मिले हैं. सीरिया में पिछले 11 सालों से सिविल वॉर चल रहा है. इदलिब बशर अल-असद के ख़िलाफ़ लड़ रहे विद्रोहियों का अंतिम गढ़ है.
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