लोग कहते हैं कि ये ज़माना गांधी बनने का नहीं है. और कांग्रेस के नेता एक-एक कर के इस बात को पुख्ता कर रहे हैं. बात महात्मा वाले गांधी की नहीं हो रही. उनको तो देश ने पैक-अप कर के कब का साउथ अफ्रीका भेज दिया. वहीं जाने पर उनकी याद आती है. बात हो रही है उस गांधी टाइटल की जिसकी पदवी इंदिरा गांधी ने खुद ली थी, राजा-महाराजाओं की पदवियां ख़त्म करने के बाद.
इंदिरा गांधी ने अपना राज चलाने के लिए नेताओं की एक बड़ी फ़ौज तैयार की थी. जिसे चापलूसी और बात करने में कोई फर्क नहीं मालूम था. उसी फ़ौज के दम पर लोकतांत्रिक देश भारत में 'गांधी-परिवार' की सत्ता चली बरसों. कभी इंदिरा की, कभी राजीव की और बाद में सोनिया की. कहते हैं कि देश में लोकतंत्र तो था चाहे जिस रूप में हो, पर कांग्रेस पार्टी में हमेशा तानाशाही रही.
और ये पता चल रहा है 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की जमीन राहुल गांधी के हाथों नीलाम होने के बाद. जिसे मुंहमांगी कीमत देकर मोदी सरकार ने खरीद लिया था. डूबते जहाज पर पंछी नहीं बैठते. सोनिया के पिंजड़े में कैद सारे कांग्रेसी एक-एक कर उड़ान भर रहे हैं.
कांग्रेस का हर पुरोधा खुल के सामने आ रहा है, पंचतंत्र और अलिफ़-लैला की कहानियां लेकर. सब के सब कांग्रेस के 30-40 सालों का छुपा हुआ इतिहास बता रहे हैं जो तूतनखामन की कहानियों से भी ज्यादा रोमांचक है.
सबसे ताजा कहानी है खानदानी कांग्रेसी मार्गरेट अल्वा की. इंदिरा के समय से 'कांग्रेस' की सेवा करती रहीं मार्गरेट को सोनिया गांधी ने चलता कर दिया सिर्फ एक बात पूछने पर. अपने बेटे को टिकट ना मिलने पर एक सवाल ने रुखसती के पैगाम पर मैडम के हस्ताक्षर करा दिए. मंत्री से राज्यपाल बनाकर भेज दिया गया. अब टाइम बहुत था उनके पास. उनकी आत्मकथा Courage and Commitment: An Autobiography में इंदिरा, संजय,राजीव, सोनिया और राहुल सबकी मनमर्जियों की कहानी है.

मार्गरेट अल्वा
किताब के कुछ अंश:
गांधी परिवार की काबिलियत
मार्गरेट कहती हैं कि गांधी परिवार लोगों का इस्तेमाल कर फेंकने में बहुत काबिल है. गवर्नर बनाना हो, किसी को हटाना हो, मैडम सोनिया ही इसका फैसला करती थीं. मनमोहन सिंह को हां करना होता था. इसमें कुछ नया तो नहीं है. बहुत लोग कहते हैं. पर एक बार फिर किसी ने कह दिया है.इमरजेंसी की कहानी
मार्गरेट कहती हैं कि मैं तुर्कमान गेट के हादसे को देखने गई थी. बुलडोज़र से घर गिराए गए थे. वहां की हालत देखकर मैं रो पड़ी. तुरंत मैं इंदिरा से मिलने गई. उनको सब बताया. वो सुनती रहीं. उनको सब पता था. बोलीं: मार्गरेट, कभी-कभी कठिन डिसीजन लेने पड़ते हैं. नहीं तो कोई बदलाव नहीं आएगा.https://youtu.be/nNuons3bu6U
हथियारों की खरीद गांधी परिवार तय करता था!
सत्तर-अस्सी के दशक में इंडिया में कई टैंक और हथियार खरीदे गए थे. कहते हैं कि इसका फैसला पार्लियामेंट ने नहीं, संजय गांधी ने किया था. मार्गरेट ने इसकी तरफ इशारा किया है. संजय गांधी उस वक़्त इंदिरा के बेटे होने के अलावा कुछ नहीं थे. हथियार एक ऐसे देश से खरीदे गए थे जहां से इंडिया का बिजनेस नहीं होता था. इस बात पर बवाल मचा. मार्गरेट खुद भी पार्लियामेंट में इस बात पर बहस करती थीं. एक दिन सुबह इनके घर में एक चिट्ठी फेंकी गई. कहा गया कि इस मामले में ज्यादा मत बोलो. फिर एक दिन इनको हथियारों के दलाल का फोन आया. काफी देर तक वो इनको समझाता रहा. कि ऐसा कुछ नहीं है जैसा आप सोच रही हैं. बाद में मार्गरेट को पता चला कि ये फोन टेप किया जा रहा था. ये दिखाने के लिए कि मार्गरेट ही इस खरीद में शामिल है.
फिदेल कास्त्रो ने बताया वी पी सिंह राजीव की पीठ में छुरा भोंकेगा
मार्गरेट क्यूबा के प्रेसिडेंट फिदेल कास्त्रो से मुलाकात का जिक्र करती हैं. डिनर के समय फिदेल ने मार्गरेट से पूछा: कितना वजन है तुम्हारा? मार्गरेट ने कहा: हमारे इंडिया में एक कहावत है. साड़ी जितना छुपा लेती है, उसके बारे में नहीं बताते. क्यों बताऊँ वजन. फिदेल ने मार्गरेट को उठा लिया और बोले: पता चल गया वजन. फिर बाद में एक सीरियस बात पर बोले: मार्गरेट, मैं राजीव को पसंद करता हूं. जवान है, फ्यूचर अच्छा है. पर उसे अपने फाइनेंस मिनिस्टर वी पी सिंह से सावधान रहना चाहिए. जब मार्गरेट ने राजीव को ये बात बताई तो राजीव हंस पड़े: फिदेल को इंडियन पॉलिटिक्स के बारे में क्या पता? पर फिदेल की बात सच साबित हुई कुछ वक़्त के बाद.राजीव की हत्या में शामिल होने का शक जताया गया मार्गरेट पर!
मार्गरेट उस वक्त के 'मद्रास स्टेट' से आती हैं. राजीव गांधी की मौत भी श्रीपेरुम्बुदुर यानी तमिलनाडु में हुई थी. उस वक़्त मार्गरेट पर बहुत सारे सवाल उठाये गए थे. ये भी कहा गया कि राजीव की हत्या में इनके रोल की जांच होनी चाहिए. बीजेपी के सुब्रमण्यम स्वामी को उस वक्त भी 'खुफिया जानकारी' थी: 'मार्गरेट ने ही राजीव का शेड्यूल लीक कर दिया था'.मार्गरेट सोनिया के पास गईं सफाई देने. कहती हैं कि उस वक़्त वो उनके करीब आ गयीं. उस वक़्त के सोनिया की बहुत बड़ाई करती हैं. सोनिया से कहा: आप अकेली नहीं हैं. मैं हमेशा आपके साथ रहूंगी. जब भी जो दिल में आये, बोलियेगा. आप हमारे इतिहास की याद दिलाती हैं. हमारी यादें ताज़ा रहती हैं.

क्या नरसिम्हा राव सोनिया को जेल भेजना चाहते थे?
राजीव के क़त्ल के बाद कांग्रेस ने नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनाया था. सोनिया और नरसिम्हा राव के बीच हमेशा शक-सुबहा बना रहता था. राव के करीबी थे तांत्रिक चंद्रास्वामी. जिन पर राजीव की हत्या में शामिल होने का आरोप भी लगा था. तभी बाबरी मस्जिद वाला कांड हो गया. इसके बाद सोनिया की तल्खी और बढ़ गई.फिर एक और वाकया हुआ. दिल्ली हाई कोर्ट ने बोफोर्स केस की शिकायत को रद्द कर दिया. राव सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी. सोनिया काफी नाराज थीं.
मुझसे बोलीं: प्रधानमन्त्री क्या चाहते हैं? जेल भेजना चाहते हैं मुझे?बाद में सोनिया और राव एक-दूसरे की जासूसी करवाते रहे.
मैंने उनको बताया कि CBI मेरे ही अंडर में है. ऐसा कुछ नहीं होगा.
सोनिया बिफर पड़ीं: कांग्रेस सरकार ने मेरे लिए क्या किया है? ये बंगला भी चंद्रशेखर का दिया हुआ है. मैं किसी से कुछ चाहती नहीं. पर ये सब क्या है?
मैंने राव से बात की. उनकी अलग कहानी थी: क्या चाहती हैं वो मुझसे? कोर्ट के सामने पड़े केस को मैं बंद नहीं करवा सकता.
फिर राव मुझसे हमेशा पूछते: कैसा मूड है मैडम का?
https://youtu.be/y9_KCe--H1s
2008 में मैडम सोनिया हुईं नाराज! मार्गरेट का करियर ख़त्म.
कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में सारे नेताओं के बेटे-बेटियों को टिकट दे दिया गया था. पर मेरे साथ भेद-भाव क्यों हुआ? मुझे नीचा दिखाने के लिए मेरे बेटे निवेदित को जान-बूझकर बाहर रखा गया. नतीजन, जहां पार्टी चुनाव जीत सकती थी, हार गई. पर मैं चुप रही.मार्गरेट बताती हैं कि पत्रकार पर उनको भरोसा था. वो तो ऐसे ही बात कर रही थीं. उनको अंदाजा नहीं था कि वो इस बात का बतंगड़ बना देगा. वो कोई इंटरव्यू नहीं था. फिर आगे कहती हैं कि एंटनी को केरल चुनाव को लेकर मुझसे खुन्नस थी. उन्होंने इसका बदला लिया.
एक दिन एक पत्रकार मेरे घर आ गए. कई राज्यों के कांग्रेस प्रत्याशियों की लिस्ट लेकर. दिखाने लगे कि कई नेताओं के बेटे-बेटी चुनाव लड़ रहे हैं. आप के साथ अलग क्यों हुआ?
मैंने तुरंत कहा: सबके लिए नियम अलग-अलग होते हैं. इसीलिए हम चुनाव हारे हैं. मेरा बेटा स्मगलर या आतंकवादी नहीं था. चुनाव में टिकट बेचने की भी ख़बरें थीं. पर कुछ नहीं किया गया.
जब मैं दिल्ली लौटी, ए के एंटनी ने मुझसे कहा कि मैडम से मिल लीजिये. बहुत बुरा लगा. जब मैं सोनिया के घर 10, जनपथ गई तो कहा: ऐसा लग रहा है कि मैं एक स्कूल गर्ल हूं और प्रिंसिपल ने मिलने बुलाया है. क्या आप नाराज हो?
सोनिया मुस्कराईं और बोलीं: मार्गरेट, आपने ऐसा क्यों किया? आपको तो मालूम ही है चुनाव हो रहे हैं.
"मैं माफ़ी मांगती हूं," मैंने कहा. गुस्से में मुंह से निकल गया. पर वो सच था. मेरे पास प्रूफ है कि लोगों से टिकट के लिए पैसे मांगे गए थे.
सोनिया ने बीच में ही बात काट दी: मैं आपके साथ हमेशा खड़ी रही हूं, मार्गरेट. पर आपने ऐसा क्यों किया? इस बार आपने मुझे नीचा दिखाया है.
मैंने धीरे से कहा: आपने मुझे कांग्रेस में जगह दी. अगर आपको लगता है कि मैंने आपको नीचा दिखाया है तो मैं चली जाउंगी. मुझे एक दिन का वक़्त चाहिए रिजाइन करने के लिए.
ए के एंटनी ने तुरंत कहा: मार्गरेट, ऐसा कुछ मत करिये जिससे मैडम को तकलीफ हो.
तब मैंने कड़े होकर कहा: एंटनी, आप इससे बाहर रहिये. ये मेरे और सोनिया जी के बीच की बात है.
सोनिया ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा: शांत हो जाइये. अभी तो आपको जाना पड़ेगा. पर मेरा वादा है आपको वापस ले आउंगी.
https://youtu.be/74Uxg_7riOE
फिर बिना पूछे मैडम ने गवर्नर बना दिया. फरमान था, इसरार नहीं.
फिर एक दिन दोपहर में, जब मैं सो रही थी, सोनिया जी का फोन आया: आपका नाम प्रधानमन्त्री के पास भेजा गया है. आपको गवर्नर बनाने के लिए. जब तक मैं जवाब देती, फोन कट गया.
फिर फोन आया चिदंबरम का: आपको उत्तराखंड का गवर्नर बनाया गया है.
ये सब मेरी मर्जी के खिलाफ था. पर सोनिया जी, सरकार और प्रेसिडेंट को शर्मिंदा करना मेरे बस की बात नहीं थी. मैंने बात मान ली. 67 साल की उमर में मुझे नया टास्क मिला: गवर्नरशिप.
एक बार मैंने एक बात कहने की गलती की थी: अल्वा परिवार एकमात्र ऐसा राजनैतिक परिवार है जिसका पिछले पचास साल में एक ना एक सदस्य पार्लियामेंट में रहा ही है.
शायद मेरी इस बात को चैलेंज मान लिया गया. पर मनमोहन सिंह हमेशा मुझे मंत्री बनाना चाहते थे. जो कि हो नहीं पाया. या होने नहीं दिया गया.
जब ऑस्ट्रेलिया में दारू पी के सांसदों ने बवाल किया!
किताब में 1976 की एक रोचक घटना का भी जिक्र है. देश में इमरजेंसी लगी थी. इंदिरा ने अपने कुछ सांसदों को ऑस्ट्रेलिया भेजा था एजुकेशनल टूर पर. वहां इनको एक दारू की विशाल फैक्ट्री में ले जाया गया. फिर अपने सांसद पी के टल्ली हो गए. बोतल ले के भटकने लगे. इसको वहां की मीडिया ने रिकॉर्ड कर लिया और टीवी पर चलाया. जब लौट के आये तो इंदिरा ने क्लास ली. बाद में सबको खाने-पीने, बात करने, बैठने-उठने की ट्रेनिंग दी गई.https://youtu.be/dVetlvruCEA
यूनिफार्म सिविल कोड तो लागू होना चाहिए
शाह बानो मामले का जिक्र करते कहती हैं कि मैं राजीव की बात से सहमत नहीं थी. पर मेरी बात से राजीव भड़क गए. शाह बानो पर उनका डिसीजन सही नहीं था. मैं भी माइनॉरिटी कम्युनिटी से आती हूं. मुझे पता है कि हर समुदाय की औरतों को एक समान कानून की जरूरत है. ये डर कि यूनिफार्म सिविल कोड की आड़ में 'हिन्दू संस्कार' लाद दिए जायेंगे, बेमानी हैं.https://youtu.be/0j3QCOrkrss
दासता और आजादी की ये कहानियां नटवर सिंह (One Life Is Not Enough, 2014), अर्जुन सिंह (A Grain of Sand in the Hourglass of Time, 2012) ने भी कही हैं. तवलीन सिंह ने भी अपनी किताब 'दरबार' में लिखा है: "I had been dropped?" पूछ रही हैं कि बता रही हैं, क्लियर नहीं है. मतलब अभी तक उनको भी समझ नहीं आया. मैडम सोनिया का हुक्म बहुत बार शब्दों में भी नहीं आता. लागू हो जाता है. लोग उनके मन की बात कांग्रेस के दरबार की हवा से समझ जाते हैं.
(मार्गरेट ने अपने एक इंटरव्यू में बताया है कि मार्किट में आने के साथ ही वो मैडम सोनिया को ये किताब दे चुकी हैं. क्या रिएक्शन आया, नहीं बताया.)