
डॉ. मयूरेश कुमार
‘वीरों का ऐसा हो वसंत’ मयुरेश कुमार द्वारा लिखी ‘एक आवश्यक पुस्तक’ है. जिसमें मिगेल एर्नान्देस गिलबर्ट की कविताओं का हिंदी अनुवाद करते हुए उनका हिंदी कविताओं से एक तुलनात्मक अध्ययन किया गया है. इसे ‘अनुदित पुस्तक’ या ‘कविता संग्रह’ की बजाय ‘एक आवश्यक पुस्तक’ कहने का कारण भी यही है कि यह केवल ‘अनुदित काव्य’ या ‘कविता संग्रह’ नहीं है. आवश्यक यूं कि ऐसे बिरले ही प्रयास हुए हैं जहां हिंदी साहित्य की एक तटस्थ तुलना अंतर्राष्ट्रीय साहित्य से की गई है. अन्यथा इस तरह की तुलनाएं लकीरें छोटी-बड़ी करने के उद्देश्य से ही होती आई हैं.
मिगेल एर्नान्देस की शहादत की 75वीं वर्षगांठ पर यह पुस्तक मिगेल को एक भावभीनी श्रद्धांजलि देती है. पुस्तक का शीर्षक दरअसल सुभद्रा कुमारी चौहान जी के प्रश्न ‘वीरों का कैसा हो वसंत’ का उत्तर मिगेल एर्नान्देस की कविताओं में ढूँढने का एक प्रयत्न है.
मिगेल एर्नान्देस (30 अक्तूबर 1910 – 28 मार्च 1942), बींसवी सदी के स्पेन के महान कवियों में से एक के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने फासीवाद के खिलाफ स्पेनी गृह युद्ध में अपनी कलम के जरिये मोर्चा खोला और कईयों को लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्हें पकड़ लिया गया, तीस साल की कड़ी सजा सुनाई गई. हालांकि इतनी लंबी सज़ा काटने की नौबत ही न आई. उससे पहले ही जेल में क्षय रोग से ग्रसित होने की वजह से उनका देहावसान हो गया. कविताओं के बारे में खुद मिगेल एर्नान्देस कहते हैं:
पुस्तक के लेखक डॉ. मयुरेश कुमार ने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से अपनी पीएचडी पूरी की और वर्तमान में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में बतौर असिस्टेंट प्रोफ़ेसर कार्यरत हैं. वे पहले हिन्दू कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय), जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, इन्स्तितुतो सेर्वान्तेस और रक्षा मंत्रालय में स्पैनिश पढ़ा चुके हैं. उन्होंने अपनी पढाई स्पेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के विश्वविद्यालयों से भी की है और हाल ही में उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के साथ मिलकर एक शोध को अंजाम दिया है जो अब वहां के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया है. आइए इसी पुस्तक की एक कविता आपको पढ़वाते हैं जो कि एर्नान्देस की स्पेनिश कविता Me Tiraste Un Limon Y Tan Amargo (तुमने मेरी तरफ एक नींबू फेंका, वह भी इतना खट्टा) का भावानुवाद है:
मिगेल एर्नान्देस
कविता क्या है? एक खूबसूरत ग़लत झूठ. एक आक्षेपित सत्य.... ...ऐसा कब होगा कि कवि उंगलियों पर अपनी कविताएं लेकर आएगा और ठीक वैसे ही कहेगा जैसे पादरी हाथ में ब्रेड का टुकड़ा लिए कहते हैं,”भगवान यहां हैं” और हम उसे मान लेंगे?
तुमने मेरी तरफ एक नींबू फेंका, वह भी इतना खट्टा एक गर्म हांथ से, वह भी इतना शुद्ध, कि उसके आकार को कोई ठेस नहीं पहुंची तो भी मैंने उसके खट्टेपन का रस चखा.यह पुस्तक अमेज़न
उस पीले झटके से, हल्के सुस्तपने से तीक्ष्ण गर्माहट में बदल गया मेरा खून, जिसने एक दंश महसूस किया एक चौड़े और मजबूत सीने के छोर से
पर जब तुम्हें देखा तो तुम्हारी मुस्कान को देख कर जो उस नींबू की घटना से आई थी, मेरे तेज गुस्से से कहीं दूर,
मेरा खून मेरी कमीज़ में ही पसीज कर रह गया, और मेरा सुराखदार सुनहरा सीना एक चकरा देने वाली चुभन बन गया.
पर उपलब्ध है. और वहां पर ‘लुक इनसाइड’ विकल्प के अंतर्गत आप इसके कुछ अंश ऑनलाइन भी पढ़ सकते हैं. लेखक से आप निम्न पते पर संपर्क कर सकते हैं: 33mayuresh@gmail.com
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