- 12 नवंबर 2023. दिवाली का दिन. इसी दिन उत्तरकाशी में अंडरकंस्ट्रक्शन सुरंग का एक बड़ा हिस्सा धंस गया. 41 मजदूर फंस गए. इसके बाद शुरु हुआ रेस्क्यू ऑपरेशन. टनल में फंसे मजदूरों को एक पाइप के जरिए ऑक्सीजन, खाने-पीने का सामान देने की व्य्वस्था शुरू हुई.
उत्तरकाशी जैसी घटना दोबारा न हो इसके लिए सरकार और सरकारी एजेंसियां कितनी तैयार हैं?
16 दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद सुरक्षित बाहर आए मजदूर.

- 13 नवंबर 2023. इस दिन पाइप के जरिए मजदूरों सें संपर्क किया गया. रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी टीमों को सुरंग से मलबा हटाने में काफी दिक्कतें सामने आने लगीं. मलबे को हटाते ही ये फिर से फैल जाता.
- 14 नवंबर 2023- भारी-भरकम मशीनों के सहारे हॉरिज़ॉन्टल ड्रिलिंग शुरू हुई. रेस्क्यू टीम सुरंग के अंदर 900 मिमी पाइप लगाकर रास्ता बनाने की कोशिश कर रही थी. अधिकारियों ने दावा किया कि शाम होते-होते मजदूरों को निकाल लिया जाएगा. शाम होते- होते ये दावा तो फेल हुआ ही उल्टा बचाव कार्य के दौरान मलबा गिरने से भगदड़ मच गई. सुरंग में पाइप डालते वक्त ड्रिलिंग मशीन में भी गड़बड़ी हुई और प्लेटफॉर्म भी टूट गया. रेस्क्यू ऑपरेशन रुक गया.
- 15 नवंबर 2023. भारतीय वायुसेना का C 130J हरक्यूलिस विमान ड्रिलिंग की हेवी मशीन लेकर उत्तराखंड के चिन्यालीसौड़ में उतरा. ये थी वो मशहूर ड्रिलिंग ऑगर मशीन, जो इस दावे के साथ सिल्कयारा टनल पहुंची कि ये मजदूरों तक पहुंचने का रास्ता बेहद आसान कर देगी. इस दिन रेस्क्यू ऑपरेशन में विशेष सुझाव लेने के लिए थाईलैंड और नॉर्वे की एजेंसियों से संपर्क साधा गया.
- 16 नवंबर 2023- इस दिन ऑगर मशीन के जरिए 800 मिमी का पाइप मलबे में डाला गया. ऑगर मशीन से मलबे को काटने में आसानी तो हो रही थी. फिर भी मलबा नीचे गिरने की संभावना को देखते हुए काम धीमी गति से किया जा रहा था.
- 17 नवंबर 2023 - 57 मीटर लंबे मलबे को चीरकर करीब 24 मीटर ड्रिलिंग पूरी हुई. चार पाइप डाले गए. जब पांचवां पाइप डाला जा रहा था तो पत्थर आ गया. मशीन फंस गई. इंदौर से एक और ऑगर मशीन एयरलिफ्ट करके लाई गई. शाम को National Highways and Infrastructure Development Corporation Limited (NHIDCL) ने बताया कि सुरंग में एक बड़ी दरार आई है. विशेषज्ञ की रिपोर्ट के आधार पर ऑपरेशन तुरंत रोक दिया गया.
- 19 नवंबर 2023 - सुरंग को तीन दिशाओं से खोदना शुरू किया गया. सिल्कयारा की ओर जो सुरंग का मुंह था, उस ओर खुदाई शुरू की NHIDCL ने. सुरंग के दूसरे सिरे यानी बरकोट की ओर से Tehri Hydro Development Corporation Limited (THDCL)ने खुदाई शुरू की. इसके अलावा सुरंग के ऊपर मौजूद पहाड़ी से नीचे की ओर वर्टिकल खुदाई शुरू की Rail Vikas Nigam Limited (RVNL)ने.
- 20 नवंबर 2023- वर्टिकल ड्रिलिंग सफल हुई.
ध्यान दें कि सुरंग को तीन दिशाओं से खोदा जा रहा था. ऐसा इसलिए किया गया था ताकि एक तरीके के फेल होने की सूरत में दूसरा तरीका मौजूद रहे. लेकिन सुरंग के सिल्कयारा वाले सिरे से जो खुदाई की जा रही थी, उस खुदाई से लोगों को ज्यादा आशाएं थीं. क्योंकि मजदूरों को बाहर लेकर आने का ये रास्ता सबसे तेज और सेफ था. ऑगर मशीन भी इसी रास्ते पर लगाई गई थी.
लेकिन इसी मौके पर ऑगर ने धोखा देना शुरू किया. कभी वो चट्टान में जाकर फंस जाती. कभी वो मलबे में मौजूद लोहे की छड़ों और दूसरी चीजों में जाकर फंस जाती. राहत कार्य में लगे हुए लोगों को बार-बार इस ऑगर मशीन का रेस्क्यू करना पड़ता. मैनुअल खुदाई शुरू करके ऑगर मशीन को चलायमान बनाया जाता. वो फिर जाकर फंस जाती. आखिर में ऑगर का यूज बंद कर दिया गया. प्लाज्मा कटर की मदद से फंसी हुई ऑगर को काटकर अलग कर दिया गया.
ये रेस्क्यू ऑपरेशन का वो मौका था, जो बहुत बेसब्री से भरा हुआ था. क्योंकि मजदूर दसेक मीटर की दूरी पर ही थे. ऐसी हालत में गड़बड़ियां ज्यादा हताश कर रही थीं.
अब इंजीनियरों ने एक बड़ा फैसला लिया. मशीनों से नहीं, हाथ से खुदाई करेंगे. लेकिन ये फावड़े-कुदाल से होने वाली आम खुदाई नहीं थी. ये थी रैट माइनिंग. यानी चूहों वाली खुदाई. क्या होती है ये?
जैसे चूहा होता है. उसे अपनी जगह बनानी है, तो वो चुपचाप अपने आने-जाने के रास्ते बराबर छेद करता है. और अपनी कार्रवाई को अंजाम देता है. वैसे ही इस माइनिंग में मजदूर अपने साइज़ बराबर एक छेद करते हैं. धीरे-धीरे. इस खुदाई का भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल मेघालय में होता था. वहां खदानों से कोयला निकालने के लिए मजदूर और ठेकेदार इस तरह की खुदाई करते थे. खुदाई के बाद एक आदमी उस छेद से भीतर जाकर कोयला लेकर बाहर आता.
इस प्रैक्टिस में बहुत सारे लोग घायल हुए. कई लोगों की मौत हुई. आखिरकार साल 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मेघालय में इस प्रैक्टिस पर प्रतिबंध लगा दिया. राज्य सरकार इस बैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई. मामला आज भी सुना जा रहा है.
बहरहाल, लोगों को बचाने की जुगत में रैट माइनिंग एक उम्मीद की तरह साबित हुआ. टनल में माइनर्स ने खुदाई शुरू की. उनका टारगेट था कि धीरे-धीरे खुदाई करके एक पाइप डालने भर की जगह बनाई जाए. पाइप डाली जाएगी. और इस पाइप में फंसे हुए मजदूरों को लिटाकर बाहर की ओर खींचा जाएगा. बार-बार ड्रिल करके इसकी तैयारी कर ली गई. फिर 28 नवंबर 2023 को वो मौका आया, जिसका सभी को इंतजार था. सीएम धामी ने ट्वीट करके जानकारी दी -
"श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए टनल में पाइप डालने का कार्य पूरा हो चुका है. शीघ्र ही सभी श्रमिक भाइयों को बाहर निकाल लिया जाएगा."
और टनल के बाहर एम्बुलेंस के लिए सड़क ठीक कर ली गई. उत्तरकाशी से लेकर ऋषिकेश और देहरादून तक के अस्पतालों में बिस्तर रिजर्व कर लिए गए. सूत्रों ने एक खबर दी. एक मजदूर को पाइप से बाहर आने में 3 से 4 मिनट का समय लगेगा. ऐसे में हर मजदूर को बाहर निकालने में लगभग 2-3 घंटे लग जाएंगे. NDMA के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल सय्यद अता हसनैन ने मीडिया को साफ कर दिया कहा - हम किसी भी तरह की जल्दी में नहीं हैं.'
इसी इंतजार के बीच अचानक से खबर आई की मजदूरों का सुरक्षित बाहर निकालना शुरू हो गया है. कुछ ही देर में सभी मजदूर बाहर आ गए. सुरंग के बाहर मौजूद सीएम धामी ने मजदूरों से मिलकर उनका हालचाल जाना, फिर सभी मजदूरों को एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया गया जहां उनका चेकअप किया जा रहा है.
लेकिन इस उपलब्धि के बाद भी सवाल कहीं नहीं मरते हैं. सवाल जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करते हैं. तो अब कुछ सवालों की बारी है, जिनके जवाब इसलिए भी ढूंढना जरूरी है कि अव्वल तो ऐसे हादसे दोबारा हों न. और अगर हो भी जाएं तो रेस्क्यू ऑपरेशन में इतना वक्त न लगे. इतनी गड़बड़ियां न हों कि मशीनें तक फेल कर जाएं. क्या हैं हमारे सवाल?
1- रेस्क्यू टनल की गैरमौजूदगी. किसी भी मार्ग पर जब कोई टनल बनाई जाती है, वो उसके बराबर में एक रेस्क्यू टनल बनाई जाती है. किसी हादसे की सूरत में मजदूर इससे बाहर निकल सकते हैं. सिल्कयारा में ये टनल बस नक्शे पर मौजूद थी, लेकिन वो बनाई नहीं गई थी. 20 नवंबर को जब केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी से उत्तरकाशी में पत्रकारों ने रेस्क्यू टनल की गैरमौजूदगी को लेकर सवाल पूछा, तो उन्होंने कहा कि इस पर अलग से बात कर लेंगे. उत्तराखंड में ये रेस्क्यू टनल अगर मौजूद होती तो क्या स्थिति ये होती? शायद नहीं.
2- ह्यूम पाइप की गैरमौजूदगी. इंडिया टुडे के आशुतोष मिश्रा की रिपोर्ट बताती है कि सिल्कयारा टनल में ह्यूम पाइप भी मौजूद नहीं थी. ये एक कॉनक्रीट की पाइप होती है, जो टनल की पूरी लंबाई में फैली होती है. किसी हादसे की सूरत में ये पाइप भी एस्केप की तरह काम करता है. सिल्कयारा टनल में ये पाइप लगाई तो गई थी, लेकिन बिना कोई कारण जाहिर किये हटा दी गई थी.
3 - उत्तराखंड में टनल निर्माण के दौरान दो तरह की घटनाएं मुख्य रूप से सामने आती हैं. पहली अचानक भारी मात्रा में पानी निकलना और दूसरी अप्रत्याशित रूप से कतरनी चट्टानों (आपस की रगड़ से घिसी हुई) का मिलना. इन वजहों से अमूमन भूस्खलन होता है, और टनल अंदर की ओर धंस जाती है. जाहिर है कि सिल्कयारा टनल की तैयारी के वक्त जियोलॉजिकल और जियो टेक्नीकल जांच की गई होगी. मिट्टी की भी जांच की गई होगी. क्या उसकी रिपोर्ट कंपनी को दी गई. अगर ऐसा हुआ तो कंपनी ने इस पर क्या अमल किया?
4- सुरंग का एक हिस्सा क्यों धंसा? कैसे धंसा? क्या इसकी कोई पुख्ता जानकारी सामने आई है?
5 - रेस्क्यू ऑपरेशन में 16 दिनों से ज्यादा का वक्त लग गया. ऑगर मशीन इतना फंसी कि टूट गई. उसे प्लाज्मा कटर से हटाया गया. इसके पहले भी दूसरी मशीनें फंस गई थीं. परिजनों ने ये आरोप भी लगाए थे कि मजदूरों को बचाने की जगह प्रयोग किये जा रहे हैं. तो क्या रेस्क्यू का एक बेसिक स्टैन्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) सिल्कयारा में गायब था? जिस वजह से इतना वक्त बर्बाद गया?
आशा है कि हम इस हादसे और इस बचाव कार्य से सीख लें. ताकि एक साफ और सुरक्षित कल की ओर बढ़ सकें.