'जब उसकी आंखें ऊपर की ओर घूमने लगें और वो किसी एक जगह पर स्पर्श से आनंदित हो, पुरुष को बार-बार उसी जगह स्पर्श करना चाहिए. लड़कियों का ये सेक्स सीक्रेट वात्स्यायन ने कई साल पहले कामसूत्र में बताया मगर 1980 तक योरप में ये सीक्रेट ही रहा.'लेखिका वेंडी डॉनिगर अपने एक निबंध में ये लिखती हैं. ज़ाहिर है बात एक लड़की के ऑर्गैज़म की हो रही है. चरमसुख. चरमोत्कर्ष. या क्लाइमैक्स. जो भी पुकारना चाहें. ये बात और है कि लड़कियों के ऑर्गैज़म पर बात करना, सेक्स पर बात करने से भी बड़ा टैबू है. लेकिन जब हमारे नेता कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं.
बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या का एक पांच साल पुराना ट्वीट चर्चा में है. उन्होंने पत्रकार तारिक फ़तह को क्वोट करते हुए लिखा है:
“अरब की 95% महिलाओं ने पिछले कई सौ साल में कभी ऑर्गैज़म का एहसास नहीं किया है. हर मां ने बच्चे सिर्फ सेक्स करके ही पैदा किए, प्यार करके नहीं.”
ऑर्गैज़म का मसला
2017 में कॉन्डम बनाने वाली कंपनी ड्यूरेक्स ने एक स्टडी करवाई. और बताया कि सेक्स से जुड़ी कौन सी जानकारी है. जो लोग सबसे ज्यादा गूगल पर सर्च करते हैं. लिस्ट में पहले दो सवाल थे:
- जीस्पॉट कहां होता हैबीते साल ड्यूरेक्स ने एक और स्टडी पोस्ट की. ट्विटर पर उन्होंने बताया कि भारत में 70 फीसद महिलाओं को सेक्स के दौरान ऑर्गैज़म नहीं होता. #OrgasmInequality के साथ.
- औरत को ऑर्गैज़म तक कैसे पहुंचाएं
- सेक्शुअल उत्तेजना के समय, हमारा सिस्टम सेक्शुअल ऑर्गन्स की ओर ज्यादा खून भेजने लगता है. इस समय धड़कन, सांसें और ब्लड प्रेशर, तीनों बढ़ जाते हैं.
- उत्तेजना के चरम पर योनी की मसल्स में ऐंठन होती है. संतुष्टि की फीलिंग आती है. जिसे बायोलॉजिकल शब्दों में ऑर्गैज़म कहा जाता है. इसके बाद शरीर वापस नॉर्मल धड़कन, सांसें और ब्लड प्रेशर के स्तर पर लौटने लगता है.
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- रिसर्च बताती है कि पुरुष को ऑर्गैज़म, इजैक्युलेशन, यानी शरीर से वीर्य निकलने के साथ होता है. जिसके बाद पुरुष थकान या आलस महसूस करते हैं.
- मगर औरतों में इससे उलट ट्रेंड देखा गया. वो एक ऑर्गैज़म के बाद भी सेक्स की क्रिया में हिस्सा ले सकती हैं. और एक से अधिक ऑर्गैज़म तक भी पहुंच सकती हैं.
मगर वे एक ऑर्गैज़म तक भी नहीं पहुंच पा रहीं
बचपन में निरोध का ऐड आता था. तो बैकग्राउंड में गाना चलता था:
रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना भूल कोई हमसे न हो जाएहम ऐसे सामाजिक स्ट्रक्चर में हैं. जिसमें सेक्स एक भूल है. जबतक आपको समाज की नज़रों में ब्याहकर पति के बिस्तर पर गर्भवती होने के लिए न छोड़ा जाए, सेक्स एक भूल है. लड़की हनीमून की शॉपिंग कर रही हो तो पूरी कायनात उसे लाल साटिन की बेबीडॉल नाइटी दिलवाने में लग जाती है. कुंवारी हो तो बेचारी का काजल लगाना भी दुश्वार. खैर.

तो सेक्स का पर्पज हुआ बच्चे पैदा करना. बायॉलजी की किताब में रिप्रोडक्शन के सेक्शन में ही सेक्स की सारी नॉलेज दे डाली. लेकिन का क्या सचमुच सेक्स और रिप्रोडक्शन एक हैं? नहीं.
- साइंस कहती है कि ऑर्गैज़म और अंडाशय के काम में कोई ख़ास वास्ता नहीं है. यानी अगर अंडाशय अपना काम करना बंद भी कर दें. तो भी औरत को ऑर्गैज़म और उसकी इच्छा बनी रहती है.गोरखधंधा
- ऑर्गैज़म का पुरुष के लिंग से भी कोई वास्ता नहीं है. क्योंकि अधिकतर ऑर्गैज़म पर पेनीट्रेटिव सेक्स का कोई असर नहीं होता. वो योनी की बाहरी मांसपेशियों को छूने से होता है.
- पर चूंकि हम सेक्स को केवल बच्चा पैदा करने का ज़रिया मानते आए हैं. तो गर्भवती होने को ही हम अच्छी सेक्स लाइफ का पर्याय मानते हैं. कि चलो इनके घर-परिवार में सब ठीक चल रहा है.
- लेकिन 4 बच्चे पैदा कर चुकी औरत भी यौन रूप से असंतुष्ट हो, तो कोई बड़ी बात नहीं. क्योंकि वो एकतरफ़ा सेक्स में महज़ भागीदार बनकर अपना जीवन काट देती है. चूंकि सेक्स में पुरुष को 'कर्ता' मानते हैं, सेक्स की परिभाषा पुरुष के इर्द-गिर्द ही रची गई. इसमें औरत को 'टेकर' और पुरुष को 'गिवर' माना गया.
- औरतों की कंडीशनिंग ऐसे भी की गई है. कि सेक्स इजैक्युलेशन पर खतम होता है. इससे पहले वो ऑर्गैज़म के लिए तैयार हो सकें, उन्हें लगता है कि सेक्स ख़त्म हो चुका है.
जिस चीज़ को हम समझने में असमर्थ होते हैं उसे विस्मय से देखते हैं. और उससे डरते हैं. जैसे ईश्वर. या ऑर्गैज़म.
आज ही नहीं, ईसा से भी दो हजार साल पहले, मिस्र की सभ्यता में ये मानते थे कि गर्भाशय टिकता नहीं. वो औरत के पूरे शरीर को गुलाम बना लेता है. औरत आखिर चाहती क्या है. ये इंसानी सभ्यता का एक बड़ा सवाल था.

कई सौ साल तक योरप की औरतों में एक बीमारी देखी गई. नाम हिस्टीरिया, अर्थ पागलपन. लक्षण, औरत की सांस चढ़ना, उलझन होना, उसका अपनी संवेदनाओं पर काबू न रहना और सेक्स की भूख बढ़ जाना. इलाज, कोई नहीं.
16वीं और 17वीं शताब्दी योरप में लड़कियों में लक्षण देखे जाते. तो समझाया जाता कि हस्तमैथुन न करना, वो गलत होता है. बड़े-बड़े डॉक्टर्स ने बताया, शादी और गर्भ ही इस समस्या से निपट सकता है. आने वाले समय में ये तक किया गया. कि लड़कियों के गर्भाशय निकाल दिए गए. कि ये पागलपन ख़त्म हो. लेकिन कुछ न हुआ.

19वीं शताब्दी में कुछ डॉक्टर्स ने इलाज निकाला. कि अगर औरत की योनी की मालिश की जाए. तो उसे आराम पड़ जाता है. रेचल पी मेन्स की किताब 'हिस्टीरिया' के मुताबिक़, मालिश के लिए इतनी औरतें जमा होने लगीं. कि डॉक्टर्स थकने लगे. किंवदंतियों के मुताबिक़, यहीं से वाइब्रेटर के जन्म की नींव रखी गई.
एक लंबे समय तक लोग समझ नहीं पाए कि ये बला क्या है. क्योंकि सैकड़ों साल तक पुरुषवादी समाज सोच ही नहीं पाया कि सेक्स में औरत की भी हिस्सेदारी हो सकती है.
काश हमने अपनी 'KS' पढ़ी होती
'सबसे अच्छा संभोग वो होता है जिसमें पुरुष और औरत एक साथ ही संतुष्टि के चरम पर पहुंचें. क्योंकि यही बराबरी का संभोग है. लेकिन अगर ऐसा एक ही समय नहीं हो पाता और पुरुष पहले ही अपने चरम तक पहुंच जाए. तो ये ठीक नहीं है. इसलिए औरत को पर्याप्त चुंबन, आलिंगन दिए जाएं इस तरह से कि वो पहले अपने चरम तक पहुंचे. एक बार औरत अपने चरम पर पहुंच जाए तो पुरुष भी उसके अंदर प्रवेश कर तेज़ गति से अपने चरम पर पहुंचे.'

जिस कामसूत्र को हमने सेक्स की पोजीशन और कॉन्डम के ब्रांड तक में समेट दिया. उसे बाद के समय में कई वेस्टर्न नारीवादियों ने एक फेमिनिस्ट टेक्स्ट की तरह पढ़ा. जिसमें औरतों के सेक्स और उससे जुड़ी आजादी का जिक्र है. वेंडी डॉनिगर लिखती हैं:
'वात्स्यायन ने बहुत कुछ लिखा. जिसमें ये भी शामिल था कि अगर औरत अपने पति से यौन रूप से संतुष्ट नहीं है, तो वो उसे छोड़ सकती है. अगर वो विधवा है, तो किसी और पुरुष से उसे शादी कर लेनी चाहिए.'वहीं ओशो की फिलॉसफी औरत को पुरुष से बड़ा मानती है. ओशो के मुताबिक़:
आधी मानव जनसंख्या को ऑर्गैज़म के बारे में पता ही नहीं है. औरतें जब ऑर्गैज़म महसूस नहीं करतीं, तो नुकसान पुरुष का भी होता है."attachment_246132" align="alignnone" width="700"
पुरुष की यौनिकता उसके एक-दो अंगों तक सीमित है. लेकिन औरत की यौनिकता बड़ी है. उसके पूरे शरीर में यौनिकता है. इसकी महानता पुरुष नहीं समझता. वो जल्दी में रहता है. जैसे ये काम उसे पैसों के लिए करना हो. पुरुष कुछ पलों में ख़त्म हो जाता है. तबतक औरत शुरू ही नहीं हुई होती.