कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की मुश्किलें घटने की बजाय बढ़ती ही जा रही हैं. भारत पर आरोप लगाने के बाद वो अपने ही जाल में उलझ गए हैं. कनाडा का विपक्ष और मीडिया सबूत मांग रहा है. इंटरनैशनल मंच पर उनकी विश्वसनीयता ख़तरे में पड़ गई है. इस बवाल के बीच ट्रूडो पर एक और मुसीबत टूटी है. 24 सितंबर को कनाडा की संसद में हिटलर के एक सैनिक का सम्मान हुआ. इससे जनता नाराज़ हो गई. विपक्ष ने ट्रूडो को माफ़ी मांगने के लिए कहा. मगर उन्होंने माफ़ी नहीं मांगी.
कनाडा की संसद में ट्रूडो को झटका, भारत के साथ विवाद पर क्या नई अपडेट आई?
कनाडा की संसद में हिटलर का सैनिक क्या कर रहा था? ट्रूडो अब किस विवाद में फंस गए?

तो आइए आज समझते हैं,
- कनाडा की संसद में अब क्या कांड हुआ?
- भारत-कनाडा विवाद में अमेरिका का क्या रोल निकला?
- और, विदेशमंत्री एस जयशंकर क्यों बोले, दुनिया अभी भी डबल स्टैण्डर्ड में जी रही है?
पहले संसद में हुए कांड के बारे में जान लेते हैं.
22 सितंबर को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की कनाडा पहुंचे. प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से मिले. फिर संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ कॉमंस को संबोधित किया. इसी दौरान सदन के स्पीकर एंथनी रोटा का भाषण भी हुआ. भाषण के बीच में उन्होंने गैलरी में बैठे एक शख़्स की तरफ़ इशारा किया. बोले, वो यूक्रेन और कनाडा के नायक हैं. हम उन्हें उनकी सेवा के लिए शुक्रिया कहते हैं.
ये सुनकर पूरा सदन अपनी सीट से खड़ा हो गया. कई मिनटों तक तालियां बजीं. ज़ेलेन्स्की और ट्रूडो भी खड़े हुए. ताली भी बजाई अगले दिन पता चला कि जिस शख़्स का सम्मान हुआ, वो हिटलर के लिए काम करता था. उसका नाम था, युरोस्लाव हुंका. वो दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान गेलिसिया डिविजन में वॉलंटियर के तौर पर काम करते थे. ये डिविजन हिटलर की पैरामिलिटरी फ़ोर्स SS के अंडर काम करती थी. SS ने 1930 और 1940 के दशक में लाखों यहूदियों की हत्या की. गेलिसिया डिविजन पर भी अत्याचार के आरोप लगते हैं. 1945 में हिटलर की हार हुई. इस डिविजन ने ब्रिटिश आर्मी के सामने सरेंडर कर दिया. उस समय तक इसका नाम फ़र्स्ट यूक्रेनियन डिविजन (FUD) हो चुका था. दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद दोषियों को सज़ा देने के लिए न्यूरेम्बर्ग ट्रायब्यूनल का गठन हुआ.
इस ट्रायब्यूनल ने FUD को क्रिमिनल ऑर्गेनाइज़ेशन घोषित किया था. हालांकि, उन्हें किसी मामले में दोषी नहीं ठहराया जा सका. वर्ल्ड वॉर के बाद FUD के वॉलंटियर्स को पश्चिमी देशों मैं बसने का मौका मिला. लगभग दो हज़ार लोग कनाडा गए. उनमें हुंका भी थे. अभी ये साफ़ नहीं है कि हुंका किसी अपराध में शामिल थे या नहीं. लेकिन उनका FUD से लिंक था, इसमें कोई संशय नहीं है.
हाउस ऑफ़ कॉमंस के स्पीकर रोटा ने उन्हीं को नायक बताया था. इसको लेकर यहूदी संगठन नाराज़ हो गए. कई जगहों पर प्रोटेस्ट हुए. बवाल बढ़ा तो 24 सितंबर को रोटा ने माफ़ी मांग ली. बोले, ‘इस बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं थी. ना किसी सांसद को और ना ही यूक्रेनी डेलीगेशन को. पूरी ग़लती मेरी है. मैं माफ़ी मांगता हूं.’
यहूदी संगठनों ने माफ़ी स्वीकार कर ली है. लेकिन कनाडा का विपक्ष मानने के लिए तैयार नहीं है. विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी के मुखिया पियेर पोलिवर ने प्रधानमंत्री ट्रूडो पर निशाना साधा है. कहा है कि इस घटना की पूरी ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री ट्रूडो की है. माफ़ी उन्हें मांगनी चाहिए.
इस पर ट्रूडो के दफ़्तर ने बयान दिया. बोले कि रोटा को स्पीकर ने इन्वाइट किया था. इसमें प्रधानमंत्री की कोई भूमिका नहीं थी. स्पीकर ने माफ़ी मांगकर सही किया.
ट्रूडो सरकार मामले को ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी में है. लेकिन इसने उनकी छीछालेदर ज़रूर कर दी है. इस घटना को भारत के साथ चल रहे विवाद से भी जोड़ा जा रहा है. पूछा जा रहा है कि, दूसरे देश पर संगीन आरोप लगाने वाली सरकार कैसे एक नाज़ी का पता नहीं लगा पाई?
अब दूसरे चैप्टर की तरफ़ चलते हैं.
ट्रूडो, आरोप और सबूत.
भारत-कनाडा विवाद की जड़ में ट्रूडो का वो बयान था, जिसमें उन्होंने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया था. निज्जर खालिस्तानी आतंकी था. 18 जून को ब्रिटिश कोलम्बिया में उसकी हत्या हो गई. उस वक़्त उसके करीबियों ने हत्या का इल्ज़ाम भारत पर लगाया था. भारतीय उच्चायोग को निशाना बनाया. भारतीय अधिकारियों के ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट किया. और, हिंदू मंदिरों की दीवारों पर भी उल्टा-सीधा लिखा गया. फिर 18 सितंबर को पीएम ट्रूडो ने संसद में दावा किया कि निज्जर की हत्या में भारत सरकार के एजेंट्स शामिल थे. हालांकि, उन्होंने कोई सबूत नहीं दिया. बस ये दोहराते रहे कि हमारे पास पुख्ता जानकारी उपलब्ध है.
लेकिन इस ‘पुख्ता जानकारी’ का सोर्स क्या था? इसको लेकर कयास लगते रहे.
23 सितंबर को अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने हिंट दिया. सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट छापी, जिसका टाइटल था,
U.S. Provided Canada With Intelligence on Killing of Sikh Leader
सिख नेता की हत्या में कनाडा को इंटेलिजेंस अमेरिका ने मुहैया कराया था.
रिपोर्ट में क्या-क्या था? तीन पॉइंट्स में समझते हैं.- नंबर एक. अमेरिकी खुफिया एजेंसी के अधिकारी ने कहा कि हमें निज्जर की हत्या की साजिश की जानकारी नहीं थी. अगर होती तो कनाडा के साथ ये ज़रूर साझा करते.
- नंबर दो. कनाडाई अधिकारियों ने हत्या से पहले निज्जर को चेताया था.
- नंबर तीन. निज्जर की हत्या के बाद कुछ सबूत कनाडा को दिए गए थे. इसी के आधार पर कनाडा इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि हत्या में भारत सरकार शामिल थी. उसके बाद ही ट्रूडो ने संसद में जाने का फ़ैसला किया.
इससे पहले कनाडा में अमेरिका के राजदूत डेविड कोहेन ने CTV को इंटरव्यू दिया. कहा कि कनाडा को साझा इंटेलिजेंस के ज़रिए भारतीय एजेंट्स के शामिल होने की जानकारी मिली थी. कनाडा और अमेरिका फ़ाइव आइज़ के ज़रिए आपस में खुफिया सूचनाएं बांटते हैं. इस गुट में अमेरिका और कनाडा के अलावा ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड हैं.
कोहेन के इंटरव्यू के बाद चर्चा चली कि भारतीय अधिकारियों की निगरानी अमेरिका करवा रहा था. न्यूयॉर्क टाइम्स की 23 सितंबर की रिपोर्ट के बाद तस्वीर काफ़ी हद तक साफ हो चुकी है. हालांकि, किसी ने भी अभी तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है.
भारत-कनाडा विवाद पर अमेरिका का क्या स्टैंड रहा है?
वो दोनों तरफ़ अपनी चौधराहट बनाए रखने की कोशिश में जुटा है. कई ज़िम्मेदार अधिकारियों के बयान आए हैं. 19 सितंबर को नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के को-ऑर्डिनेटर जॉन किर्बी ने कहा, आरोप गंभीर हैं. कनाडा जांच कर रहा है. जांच पूरी होने से पहले हम कुछ नहीं कह सकते.
20 सितंबर को भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी बोले, इस तरह के आरोप वास्तव में झकझोर देने वाले हैं. लेकिन जांच का नतीजा आने से पहले कोई राय नहीं बनानी चाहिए.
21 सितंबर को अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन का बयान आया. बोले, हम दोनों देशों के साथ संपर्क में हैं. किसी को कोई स्पेशल छूट नहीं दी जाएगी.
फिर 22 सितंबर को कनाडा में अमेरिका के राजदूत डेविड कोहेन का इंटरव्यू हुआ. उन्होंने ट्रूडो के आरोप के पीछे फ़ाइव आइज़ की भूमिका बताई.
उसी रोज़ अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की न्यूयॉर्क में प्रेस कॉन्फ़्रेंस हुई. उन्होंने कहा कि हम कनाडा से सिर्फ़ बात नहीं कर रहे बल्कि साथ मिलकर काम भी कर रहे हैं. ये जांच आगे बढ़नी चाहिए. हम दोनों देशों के साथ संपर्क में हैं. हम जवाबदेही चाहते हैं और ये ज़रूरी है कि जांच पूरी हो और नतीजे तक पहुंचे.
अगर आप बयानों को देखें तो समझ आता है कि अमेरिका की तल्खी बढ़ रही है. वो भारत पर शिकंजा कसने की कोशिश कर रहा है. लेकिन कोई खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है. जानकारों का कहना है कि भले ही अमेरिका, कनाडा का पड़ोसी और नेटो में पार्टनर हो, लेकिन वो भारत को अलग-थलग नहीं कर सकता. अमेरिका जानता है कि भारत की मदद के बिना चीन को चुनौती नहीं दी जा सकती है.
एक चीज़ और, पिछले कुछ बरसों में ग्लोबल स्टेज पर भारत की ताक़त बढ़ी है. हाल में नई दिल्ली में हुए G20 लीडर्स समिट में ये दिखा भी. जहां पहले ही दिन साझा डेक्लेरेशन जारी हुआ और सभी देशों ने सहमति जताई. इसके अलावा, भारत ने अफ़्रीकन यूनियन(AU) को मेंबर बनाने में भी सफलता हासिल की. AU अफ्रीका महाद्वीप के 50 से अधिक देशों का गुट है. इस एक फ़ैसले से भारत ने ना सिर्फ़ अफ़्रीका में चीन के प्रभुत्व को चुनौती दी, बल्कि ग्लोबल साउथ का लीडर बनने की मज़बूत दावेदारी भी पेश की.
फिलहाल हम अगले चैप्टर की तरफ़ चलते हैं.
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर इन दिनों अमेरिका के दौरे पर हैं. उन्हें यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली (UNGA) की सालाना बैठक को संबोधित करना है. UNGA, यूएन का सबसे बड़ा अंग है. 193 देश इसके सदस्य हैं. आमतौर पर सदस्य देशों की सरकार के मुखिया सालाना बैठक को संबोधित करते हैं. लेकिन भारत की तरफ़ से पीएम मोदी की बजाय जयशंकर गए हैं. उनका संबोधन 26 सितंबर को होगा. उससे पहले और बाद में वो अलग-अलग देशों के नेताओं से मुलाक़ात कर रहे हैं. कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं. 24 सितंबर को वो ऑब्जर्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन (ORF) के प्रोग्राम में थे. वहां बोले,
‘जो देश प्रभावशाली पोजिशन्स में हैं, वे बदलाव का विरोध कर रहे हैं. ये हम यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में लगातार देख रहे हैं. जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं वे अपनी उत्पादन क्षमता का और जो संस्थागत और ऐतिहासिक तौर पर मज़बूत हैं, उन्होंने अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल हथियारों की तरह किया है. वे आपके सामने अच्छी-अच्छी बातें करते हैं. लेकिन असलियत ये है कि ये दुनिया आज भी दोहरेपन में जी रही है.’
जयशंकर के बयान को अमेरिका और कनाडा को जवाब के तौर पर पेश किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि भारत ने अपना स्टैंड क्लीयर कर दिया है. वो दबाए जाने की कोशिशों का पुरजोर विरोध करेगा और बिना किसी के पाले में गए अपनी पोजिशन बनाकर रखेगा.
विदेश मंत्री जयशंकर का अमेरिका दौरा 30 सितंबर तक चलेगा. 27 सितंबर को वो एंटनी ब्लिंकन से वन टू वन मुलाक़ात करने वाले हैं. इस मीटिंग में राष्ट्रपति जो बाइडन को रिपब्लिक डे परेड में बतौर चीफ़ गेस्ट बुलाने पर भी चर्चा हो सकती है. सबसे ज्यादा नज़र कनाडा विवाद पर रहेगी. इस मीटिंग पर हमारी भी नज़र रहेगी. फिलहाल हम पूरे विवाद की टाइमलाइन रिकैप करा देते हैं.
- 18 सितंबर. जस्टिन ट्रूडो संसद में कहा, कनाडा की सिक्योरिटी एजेंसियों को इस बात के पुख्ता सबूत मिले हैं कि हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार के एजेंट्स शामिल थे. संसद में ऐलान से पहले अमेरिका, ब्रिटेन और फ़्रांस को ब्रीफ़ भी किया. लेकिन सबूत को लेकर कोई जानकारी नहीं दी.
ट्रूडो के बयान के बाद भारत और कनाडा ने एक-दूसरे के एक-एक राजनयिक को निष्कासित करने का आदेश दिया.
- 20 सितंबर को भारत ने कनाडा में रहने वाले भारतीय नागरिकों के लिए एडवायज़री जारी की. कहा कि ख़तरे वाले इलाकों में न जाएं और सावधान रहें.
- 21 सितंबर को भारत ने कनाडाई नागरिकों के लिए वीजा पर रोक लगा दी. प्रेस कॉन्फ़्रेंस में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि कनाडा ने कोई सबूत मुहैया नहीं कराया है.
- 23 सितम्बर को न्यू यॉर्क टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट छापी. दावा किया कि ट्रूडो ने अमेरिका से मिले सबूत के आधार पर संसद में आरोप लगाए थे.
- 25 सितंबर को खालिस्तानी गुटों ने भारतीय उच्चायोग के दफ़्तरों के बाहर प्रोटेस्ट की अपील की.