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जिस ट्रेन का आज एक्सीडेंट हुआ है, क्या है उसके नाम की कहानी

आजमगढ़ से दिल्ली के लिए शुरू हुई थी.

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यूपी में हफ्ते भर के अंदर दो रेल हादसे हो गए हैं. 22 अगस्त देर रात को आजमगढ़ से दिल्ली आ रही कैफियत एक्सप्रेस कानपुर और इटावा के बीच हादसे का शिकार हो गई. हादसा औरेया के पास अछल्दा रेलवे स्टेशन के नजदीक रात 2.40 बजे तब हुआ जब ट्रेन एक डंपर से टकरा गई. देखते-देखते ट्रेन के इंजन समेत 10 डिब्बे पटरी से उतर गए. शुक्र है किसी के मरने की खबर नहीं है, मगर 21 लोग घायल हुए हैं. अब जांच-वांच होएगी. किसी ना किसी को बली का बकरा भी बना दिया जाएगा.  मगर फिलहाल जानिए कैफियत एक्सप्रेस के नाम के पीछे की कहानी-

कैफियत मतलब मदहोशी

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इस ट्रेन का नाम कैफियत एक्सप्रेस उर्दू के मशहूर शायर कैफी आजमी के नाम पर पड़ा. कैफी आजमी उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के छोटे से गांव मिजवां में 14 जनवरी 1919 में जन्मे थे. आजमगढ़ से उनके इसी रिश्ते के कारण ट्रेन को आजमगढ़ से दिल्ली के बीच चलाया गया. कैफी आजमी की बेटी और फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी के आग्रह पर साल 2003 में तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार ने इस ट्रेन को चलवाया था. आजमगढ़ से पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के बीच चलने वाली ये एक्सप्रेस ट्रेन अपने 803 किलोमीटर के सफर में अयोध्या और लखनऊ से भी गुजरती है. कैफी आजमी ने हिन्दी फिल्मों के लिए कई मशहूर गीत व गज़लें लिखीं, जिनमें देशभक्ति का अमर गीत - कर चले हम फिदा, जान-ओ-तन साथियों भी शामिल है.
 
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1.'दूसरा वनवास'
राम बनवास से जब लौटकर घर में आए याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए रक्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आए
धर्म क्या उनका है, क्या जात है ये जानता कौन घर ना जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये
शाकाहारी हैं मेरे दोस्त, तुम्हारे ख़ंजर तुमने बाबर की तरफ फेंके थे सारे पत्थर है मेरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आए
पांव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे कि नज़र आए वहां ख़ून के गहरे धब्बे पांव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे राजधानी की फज़ा आई नहीं रास मुझे छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे
 
बेटी शबाना और पत्नी शौकत के साथ कैफी आजमी (फोटो- स्टार्स अनफोल्डेड)
बेटी शबाना और पत्नी शौकत के साथ कैफी आजमी (फोटो- स्टार्स अनफोल्डेड)

 
2. उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
कल्ब-ए-माहौल में लरज़ां शरर-ए-जंग हैं आज हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक रंग हैं आज आबगीनों में तपां वलवला-ए-संग हैं आज हुस्न और इश्क हम आवाज़ व हमआहंग हैं आज जिसमें जलता हूं उसी आग में जलना है तुझे उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
ज़िन्दगी जहद में है सब्र के काबू में नहीं नब्ज़-ए-हस्ती का लहू कांपते आंसू में नहीं उड़ने खुलने में है नक़्हत ख़म-ए-गेसू में नहीं जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं उसकी आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
गोशे-गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिये फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिये क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिये ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिये रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं तुझ में शोले भी हैं बस अश्कफ़िशानी ही नहीं तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं अपनी तारीख़ का उनवान बदलना है तुझे उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ कर रस्म के बुत बन्द-ए-क़दामत से निकल ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल नफ़स के खींचे हुये हल्क़ा-ए-अज़मत से निकल क़ैद बन जाये मुहब्बत तो मुहब्बत से निकल राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ ये अज़्म शिकन दग़दग़ा-ए-पन्द भी तोड़ तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वह सौगंध भी तोड़ तौक़ यह भी है ज़मर्रूद का गुल बन्द भी तोड़ तोड़ पैमाना-ए-मरदान-ए-ख़िरदमन्द भी तोड़ बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तू फ़लातून व अरस्तू है तू ज़ोहरा परवीन तेरे क़ब्ज़े में ग़रदूं तेरी ठोकर में ज़मीं हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से ज़बीं मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं लड़खड़ाएगी कहां तक कि संभलना है तुझे उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
वीडियो भी देखें-
https://www.youtube.com/watch?v=tiYxyLcX_l4


 
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