राज्यसभा की 55 सीटों के लिए 26 मार्च, 2020 को चुनाव होना था. लेकिन चुनाव से पहले ही 37 उम्मीदवार बिना लड़े ही निर्विरोध चुन लिए गए, जबकि 18 सीटों के लिए चुनाव हुए. चुनाव की तारीख कोविड संकट की वजह से बढ़ाकर 19 जून कर दी गई. निर्विरोध चुनकर आए कुछ चेहरे तो जाने-माने हैं. लेकिन कई ऐसे भी हैं, जिन्हें कम ही लोग जानते हैं. तो मुखातिब होइए उन राज्यसभा सदस्यों से, जो इस बार निर्विरोध चुन लिए गए हैं.
ये 37 नेता पहले ही निर्विरोध पहुंच चुके हैं राज्यसभा
इन नेताओं के राजनीतिक सफर पर एक नजर.

निर्विरोध चुने गए लोगों में शरद पवार (बाएं), रामदास आठवले (बीच में) और दीपेंद्र हुड्डा (दाएं) जैसे नाम हैं. फोटो: India Today
- हरिवंश नारायण सिंह (जेडीयू) - पेश से पत्रकार रहे हरिवंश नारायण सिंह को लोग उनके सरल स्वभाव के लिए जानते हैं. उन्हें अपनी पढ़ाई बीएचयू से की. 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' से पत्रकारिया शुरू की. उसके बाद वह बिहार के बड़े अखबार 'प्रभात खबर' के संपादक रहे. उनके कार्यकाल के दौरान अखबार ने कई बड़े खुलासे किए, जिनमें चारा घोटाला भी शामिल है. वह देश के पूर्व पीएम चंद्रशेखर के मीडिया सलाहकार भी रहे. फिलहाल वह राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन भी हैं. ऐसे में उनका राज्यसभा जाना लाजमी है.# बिहार
- रामनाथ ठाकुर (जेडीयू) - ठाकुर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं. वह बिहार के हज्जाम समाज से आते हैं. वे बिहार सरकार के सूचना और जनसंपर्क मंत्री रह चुके हैं. दूसरी बार राज्यसभा जा रहे हैं.
- प्रेमचंद गुप्ता (आरजेडी) - बड़े बिजनेसमैन हैं. कहा जाता है कि उनका बिजनेस दूसरे देशों में भी है. पार्टी में उनकी भूमिका फंड मैनेजर की है. अपनी इस भूमिका को बखूबी निभाने के लिए ही उन्हें राज्यसभा भेजा जा रहा है.
- अमरेंद्र धारी सिंह (आरजेडी) - उन्हें पार्टी में जानने वाले कम ही लोग हैं. जब उनका नाम राज्यसभा के लिए आया, तो पार्टी के भीतरखाने में विरोध भी हुआ. उन्हें प्रदेश में बड़े बिजनेसमैन के तौर पर जाना जाता है. लालू यादव के परिवार के काफी करीबी माने जाते हैं.
- विवेक ठाकुर (बीजेपी) - भाजपा के सीनियर लीडर और केंद्रीय मंत्री रह चुके सीपी ठाकुर के बेटे हैं. दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से पढ़ाई की है. फॉरेन ट्रेड में एमबीए किया है. प्रदेश में ज्यादा जाना-माना चेहरा नहीं हैं. लेकिन शीर्ष नेतृत्व की तरफ से नाम आगे आने से राज्यसभा की सीट पक्की हुई.

राज्यसभा की गुणा गणित बिहार में पूरी हो गई है.
- फूलो देवी नेताम (कांग्रेस) - बस्तर के आदिवासी समाज से आती हैं. प्रदेश महिला कांग्रेस की मुखिया रही हैं. कहा जाता है कि इनका नाम कांग्रेस हाईकमान की तरफ से तय हुआ था. चूंकि प्रदेश की 29 आदिवासी बहुल सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. ऐसे में नेताम को राज्यसभा भेजकर पार्टी आदिवासी समाज को संदेश देना चाहती है.# छत्तीसगढ़
- केटीएस तुलसी (कांग्रेस) - तुलसी का नाम देश के नामी वकीलों में शुमार होता है. केटीएस तुलसी प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के केस भी लड़ रहे हैं. ऐसे में उन्हें कांग्रेस आलाकमान की पसंद माना जा रहा है.
- दिनेश त्रिवेदी (टीएमसी) - त्रिवेदी टीएमसी के पुराने नेता और ममता बनर्जी के काफी करीबी माने जाते रहे हैं. वह देश के रेलमंत्री भी रहे हैं. हालांकि बीच में ममता बनर्जी के साथ विवाद के चलते पार्टी में हाशिए पर चले गए थे, लेकिन फिर से ममता बनर्जी की गुड बुक में आकर उन्होंने राज्यसभा का रास्ता बनाया है.# प.बंगाल
- अर्पिता घोष (टीएमसी) - थिएटर डायरेक्टर और एक्टर. 2014 में लोकसभा चुनाव जीत चुकी हैं.
- सुब्रत बख्शी (टीएमसी) - पार्टी के जनरल सेक्रेटरी, राज्य के बड़े नेता.
- मौसम बेनजीर नूर (टीएमसी) - बड़े नेता एबीए गनीखान चौधरी की भतीजी, पिछले टर्म में सांसद रही हैं.
- बिकास रंजन भट्टाचार्य (सीपीआईएम) - कोलकाता हाई कोर्ट के बड़े वकील. कोलकाता के मेयर रहे हैं. उन्हें इस बार पार्टी के बड़े नेता सीताराम येचुरी की जगह राज्यसभा भेजा गया है.
- सुभाष सिंह - पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता, अनजाना चेहरा, लेकिन पार्टी ने टिकट दिया.# ओडिशा
- मुन्ना खान - उड़िया फिल्मों के पुराने स्टार, नवीन पटनायक के करीबी.
- सुजीत कुमार - हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई की, ओडिशा सरकार में सलाहकार.
- ममता महंत - पार्टी का महिला चेहरा, जुझारू नेता, पहली बार संसद जा रही हैं. (सभी बीजेडी)
- रामचंद्र जांगड़ा (बीजेपी) - जांगड़ा अति पिछड़े वर्ग से आते हैं और उनकी काफी तेज-तर्रार नेता की छवि है. उन्हें राजनीति में देवीलाल लेकर आए. जानकार बताते हैं कि तीन विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा इसलिए भेजा, क्योंकि पार्टी को राज्य में किसी बड़े अति पिछड़े वर्ग के नेता की तलाश थी.# हरियाणा
- दुष्यंत कुमार गौतम (बीजेपी) - गौतम आरएसएस के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं और दिल्ली की राजनीति में भी काफी सक्रिय रहे हैं. वह बीजेपी के उपाध्यक्ष भी हैं. इन्हें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का काफी करीबी माना जाता है. चौधरी बीरेंद्र सिंह के इस्तीफे के चलते खाली हुई सीट पर उपचुनाव के बाद इन्हें निर्विरोध चुना गया है.
- दीपेंद्र हुड्डा (कांग्रेस ) - पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के बेटे हैं. कांग्रेस का युवा चेहरा हैं. इन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता है. पार्टी के आलाकमान पर अच्छी पकड़ के चलते राज्यसभा भेजे गए हैं.
- शरद पवार (एनसीपी) - महाराष्ट्र और देश की राजनीति का जाना-माना चेहरा हैं शरद पवार. इनका शुमार उन नेताओं में होता है, जो राजनीति में नामुमकिन को भी मुमकिन बना देते हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना की सरकार बनवाने में उनकी बड़ी भूमिका है. पवार ऐसे नेता हैं, जिनके दोस्त हर पार्टी में हैं.# महाराष्ट्र
- रामदास आठवले (आरपीआई) - दलित पैंथर के तौर पर अपनी राजनीति शुरू करने वाले आठवले की महाराष्ट्र दलित वोटर में गहरी पैठ है. हालांकि पिछले कुछ वक्त में बाबा भीमराव आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर की तरफ से उन्हें तगड़ी चुनौती मिली है. ये अपने विवादित बयानों को लेकर भी अक्सर चर्चा में रहते हैं. उन्हें राजनीति में लाने में शरद पवार का बड़ा योगदान है.
- प्रियंका चतुर्वेदी (शिवसेना) - कहा जाता है कि शिवसेना में उन्हें आदित्य ठाकरे की सिफारिश पर लाया गया. शिवसेना ने अपनी कट्टर छवि से निकलने और शहरी वोटर्स और कॉर्पोरेट के बीच पहुंच बनाने के लिए प्रियंका चतुर्वेदी पर दांव लगाया है. कांग्रेस पार्टी में जब उन्हें तवज्जो नहीं मिली, तो उन्होंने शिवसेना जॉइन की. पार्टी में शामिल होने के कुछ महीनों के भीतर ही उन्हें राज्यसभा भेज दिया गया.
- उदयन राजे भोसले (बीजेपी) - उदयन राजे छत्रपति शिवजी महाराज की 16वीं पीढ़ी के वंशज हैं. सतारा सीट से 2009 और 2014 में एनसीपी के टिकट पर चुनाव जीते. 2019 में भी सतारा सीट से जीते, लेकिन एनसीपी से मनमुटाव के चलते इस्तीफा दिया और बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव लड़े. इस बार वह चुनाव हार गए. बीजेपी ने उन्हें मराठा गौरव की छवि के चलते राज्यसभा भेजने का फैसला लिया.
- राजीव सातव (कांग्रेस)- महाराष्ट्र के मराठवाड़ी क्षेत्र से आने वाले सातव ओबीसी (माली) समुदाय से हैं. मराठवाड़ा में अपनी कमजोरी को देखते हुए कांग्रेस ने इस युवा नेता को राज्यसभा भेजने का फैसला लिया है. वैसे सातव ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की जनरल सेक्रेटरी हैं. वह राहुल गांधी की कोर टीम के मेंबर हैं. उन्हें कांग्रेस हाईकमान की पसंद की तौर पर देखा जाता है.
- भगवत कराडा (बीजेपी)- औरंगाबाद के मेयर रहे कराडा बंजारा समुदाय से आते हैं. इन्हें गोपीनाथ मुंडे समर्थक माना जाता है, जो खुद बांजारा समाज से आते थे. हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि देवेंद्र फणनवीस खेमे ने पंकजा मुंडे का कद कम करने के लिए ही उन्हें मेयर से सीधे राज्यसभा भेजे जाने की सिफारिश की है.
- फौजिया खान (एनसीपी) - इनकी छवि एक पढ़ी-लिखी मुस्लिम महिला नेता के तौर पर है. उनकी पढ़ाई कॉन्वेंट स्कूल-कॉलेज में हुई है. वह एक प्रगतिशील मुस्लिम समाज से आती हैं. राज्य विधान परिषद में दो बार चुनी जा चुकी हैं. वो पहली मुस्लिम महिला हैं, जो महाराष्ट्र के मंत्रिमंडल का हिस्सा बनीं.
- एम. थांबीदुरई (एआईएडीएमके) - तमिलनाडु के कद्दावर नेता, लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष, छात्र राजनीति से उभरे.# तमिलनाडु
- केपी मुनुस्वामी (एआईएडीएमके) - तमिलनाडु के जमीनी नेता, पहले कई बार विधायक और राज्य में मंत्री भी रह चुके हैं.
- जीके वासन (एआईएडीएमके) - पुराने कांग्रेसी जीके मूपनार के बेटे, फिलहाल तमिल मनीला कांग्रेस, मूपनार नाम की पार्टी के चीफ हैं.
- तिरुची शिवा (डीएमके) - छात्र राजनीति में रहते हुए एमरजेंसी में जेल गए, सांसद के तौर पर पांचवां टर्म.
- एनआर एलांगो (डीएमके) - पेशे से वकील. कोई खास राजनीतिक अनुभव नहीं है. उन्हें पार्टी ने वाइको के लिए सीट रोकने के लिहाज से खड़ा किया था. वाइको नहीं लड़े और उन्हें चुन लिया गया. यह सीट डीएमके और एमडीएमके के बीच एक डील के तौर पर लड़ी गई.
- पी सेलवारासु (डीएमके) - पहले पार्टी की तरफ से विधायक रहे हैं. पार्टी लेवल पर काफी काम करके राज्यसभा पहुंचे हैं.
- इंदु गोस्वामी (बीजेपी)- बीजेपी प्रदेश महिला मोर्चा की अध्यक्ष रहीं. प्रदेश महिला आयोग की चेयरमैन भी रही हैं. हालांकि वह पिछला विधानसभा चुनाव हार गई थीं. राज्यसभा में उनको भेजने का फैसला न सिर्फ आम लोगों के लिए, बल्कि प्रदेश पार्टी के लिए भी चौंकाने वाला बताया जाता है. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में उनकी पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है.# हिमाचल प्रदेश
- भुवनेश्वर कलिता (बीजेपी) - कलिता असमिया ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. वह प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता रहे हैं. पहले सांसद भी रहे हैं, लेकिन कश्मीर के धारा 370 लगाने के मसले पर उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी का दामन थामा. कहा जाता है कि कांग्रेस के दिल्ली नेतृत्व की अनदेखी के चलते उन्होंने ये कदम उठाया था. वह राज्यसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप भी रहे हैं.# असम
- बिश्वजीत दाईमारी (बीपीएफ) - दाईमारी बोडो पीपुल्स फ्रंट के बड़े नेता हैं. बोडो समुदाय में इनकी तगड़ी पकड़ है. फुटबॉल और लोक-नृत्य का इन्हें खासा शौक है. वह पहले भी राज्यसभा के मेंबर रहे हैं. इन्हें दोबारा राज्यसभा भेजा जा रहा है.
- अजित भुइयां (इंडिपेंडेंट) - पेश से पत्रकार हैं और राज्य में एक्टिविस्ट के तौर पर भी उनकी पहचान है. वह समय-समय पर होने वाले कई जन-आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं. एनएचपीसी के खिलाफ चलाए आंदोलन में भी वह शामिल रहे. असम में सीएए के खिलाफ मुहिम चलाने में भी वह काफी आगे रहे. कांग्रेस और एआईयूडीएफ ने मिलकर उन्हें राज्यसभा भेजा है.
- के. केशव राव (तेलंगाना राष्ट्रीय समिति) - इन्हें जानने वाले केके बुलाते हैं. पूर्व पत्रकार और आंध्र और तेलगांना की राजनीति का बड़ा नाम.# तेलंगाना
- के. आर. सुरेश रेड्डी (तेलंगाना राष्ट्र समिति) - पूर्व कांग्रेस, आंध्र विधानसभा के स्पीकर भी रह चुके हैं.
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