आज संसद की कार्रवाई शुरू होने के पहले एक जानकारी सामने आई. जानकारी ये कि लोकसभा सचिवालय ने नया सर्कुलर जारी किया है. इस सर्कुलर में कहा गया है कि जिन 141 सांसदों को इस सत्र के लिए संसद के निलंबित किया गया है, वो सांसद संसद कक्ष, लॉबी और गैलरी में भी प्रवेश नहीं कर सकेंगे. साथ ही वो यदि किसी संसदीय कमिटी का हिस्सा हैं, तो वो उस कमिटी की बैठक में भी शामिल नहीं हो सकेंगे.
क्या क्रिमिनल जस्टिस से जुड़े तीन नए कानूनों से पुलिस की ताकत बढ़ जाएगी?
अमित शाह के लाए बिलों पर विपक्ष सवाल क्यों उठा रहा है

इस सर्कुलर के साथ ही तीन प्रतिक्रियाएं भी सामने आ चुकी थीं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की, प्रधानमंत्री मोदी की और लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला की. ये सारी प्रतिक्रियाएं 19 दिसंबर को उस मिमिक्री कांड की थीं, जिसमें तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा सांसद कल्याण बनर्जी ने राज्यसभा के स्पीकर और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का मज़ाक उड़ाया था.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने एक्स पर पोस्ट किया -
"ये देखकर दुख हुआ कि हमारे सम्माननीय उपराष्ट्रपति का संसद परिसर में कैसे मज़ाक उड़ाया गया. चुने गए प्रतिनिधि अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उनकी अभिव्यक्ति का भी एक दायरा है. ये संसदीय परंपरा है, जिस पर हम गर्व करते हैं और भारत के लोग उम्मीद करते हैं कि हम इन परंपराओं को अभिन्न रखें."
इसके बाद पता चला कि पीएम मोदी ने भी जगदीप धनखड़ को फोन किया और इस घटना पर चिंता जताई. जगदीप धनखड़ ने एक्स पर इसकी जानकारी दी.
"पीएम मोदी से टेलीफोन पर बात हुई. उन्होंने पवित्र संसद परिसर में कुछ सांसदों की घृणित नाटकीयता पर दुख व्यक्त किया. उन्होंने मुझे बताया कि वह पिछले बीस सालों से इस तरह का अपमान सहते आ रहे हैं. भारत में उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद के साथ ऐसा होना दुर्भाग्यपूर्ण है"
जगदीप धनखड़ ने ये भी बताया कि उन्होंने पीएम मोदी को जवाब क्या दिया? -
"मैंने उनसे (पीएम मोदी) कहा कि कुछ लोगों की हरकतें मुझे अपना कर्तव्य निभाने और हमारे संविधान में निहित सिद्धांतों को बनाए रखने से नहीं रोक सकतीं. मैं तहे दिल से उन मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध हूं. कोई भी अपमान मुझे अपना रास्ता बदलने पर मजबूर नहीं कर सकता है."
और लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला की जगदीप धनखड़ से मुलाकात की तस्वीरें भी फ्लैश हो रही थीं. मुलाकात के बाद ओम बिड़ला ने एक्स पर लिखा,
"कल कुछ सम्माननीय संसद सदस्यों ने जो नीचा दिखाने और उपराष्ट्रपति के संवैधानिक पद की गरिमा गिराने की नीयत से जो काम किया, उसे लेकर मैंने उपराष्ट्रपति और सभापति के साथ अपनी चिंता ज़ाहिर की."
इन प्रतिक्रियाओं से ये लगभग साफ हो चुका था कि सदन की कार्रवाई किस दिशा में जाएगी. सत्र शुरू हुआ. सभापति की कुर्सी पर बैठे जगदीप धनखड़ नमूदार हुए. वो एक दिन पहले ही अपनी मिमिक्री पर टिप्पणी कर चुके थे. आज वो फिर से बोले. कहा कि जगदीप धनखड़ नाम के व्यक्ति का जितना ही मज़ाक उड़ा लो, लेकिन उपराष्ट्रपति का, जाट समुदाय के एक व्यक्ति का, और एक किसान का अपमान मत करो.
इस प्रतिक्रिया के कुछ देर बाद एक और वीडियो सामने आया. दिल्ली के केन्द्रीय कांग्रेस ऑफिस के बाहर जाट समुदाय के लोग कांग्रेस की अर्थी लेकर पहुंच गए थे. वो तख्तियां लहरा रहे थे. नारे लगा रहे थे. जगदीप धनखड़ के खुलकर सामने आने के बाद भाजपा के धड़े से प्रतिक्रियाओं का पुलिंदा आया.
इधर संसद भवन परिसर में मीडियाकर्मियों के कैमरे घूमे तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी की ओर. उनसे मिमिक्री उर्फ अपमान पर सवाल पूछे गए तो कल्याण बनर्जी ने कहा कि उन्होंने जगदीप धनखड़ का नाम नहीं लिया. और मिमिक्री तो बस एक कला है.
आपको ध्यान होगा कि जब कल्याण बनर्जी मिमिक्री कर रहे थे, तो राहुल गांधी मोबाइल से इसका वीडियो बना रहे थे. राहुल गांधी ने मीडिया में बयान दिया. कहा कि बात मिमिक्री पर हो रही है, लेकिन लगभग डेढ़ सौ सांसद बाहर फेंक दिए गए, इस पर कोई बात नहीं हो रही है.
जब संसद भवन के बाहर ये सारी घटनाएं हो रही थीं, तो अंदर क्या हो रहा था? अंदर हो रही थी बहस. देश के 4 महत्त्वपूर्ण कानूनों पर. एक कानून टेलीकॉम से जुड़ा हुआ. और बाकी तीन कानून भारत के आपराधिक न्याय से जुड़े हुए. अब हम आपको इन कानूनों के बारे में बताते हैं. साथ में बताएंगे कि ये कानून हमें कैसे प्रभावित करते हैं. सबसे पहले बात करते हैं टेलीकॉम से जुड़े कानून के बारे में.
18 दिसंबर की तारीख. इस दिन कथित हंगामे के कारण दोनों सदनों से 78 सांसद निलंबित हो गए. इसी दिन लोकसभा में एक बिल पेश किया गया. 'द टेलीकम्यूनिकेशन्स बिल 2023'. जिसे धन विधेयक या मनी बिल की तरह पेश किया गया. फिलहाल केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में यह बिल पेश करते हुए कहा था कि ये बिल टेलीकॉम सेवाओं और नेटवर्क के विकास, विस्तार और उसके ऑपरेशन, स्पेक्ट्रम के वितरण से जुड़े कानूनों में बदलाव और उसे मजबूत करने के लिए लाया गया है.
इस बिल के पास होने के बाद अंग्रेजों के बनाए कानून रद्द हो जाएंगे. कौन से कानून?
- इंडियन टेलीग्राफ एक्ट, 1885
- द इंडियन वायरलेस टेलीग्राफी एक्ट, 1933 और
- द टेलीग्राफ वायर्स (गैरकानूनी स्वामित्व), कानून 1950
इसके अलावा टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) एक्ट, 1997 में भी संशोधन किया जाएगा. मौजूदा टेलीकॉम बिल का ड्राफ्ट पिछले साल सितंबर में सरकार ने पेश किया था. टेलीकॉम इंडस्ट्री और एक्सपर्ट से सुझाव भी मांगे गए थे. फाइनल ड्राफ्ट तैयार होने के बाद इस साल अगस्त में कैबिनेट ने इसे मंजूरी दी थी.
अब इस बिल को समझने से पहले टेलीकम्यूनिकेशन का बेसिक मतलब जान लेते हैं. टेली का मतलब दूरी और कम्यूनिकेशन माने संचार या बातचीत. इसी से हिंदी में बना दूरसंचार. यानी अलग-अलग तकनीकों के जरिये सूचनाओं को खास दूरी तक भेजना टेलीकम्यूनिकेशन है. जैसे टेलीफोन, रेडियो, टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल, सैटेलाइट फोन और उसके बाद इंटरनेट. इन सबके जरिये सूचना हम तक पहुंचती है. चाहे वो वायर से हो, ऑप्टिकल फायबर हो, रेडियो सिग्नल हो, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नल हो, कम्यूनिकेशन सैटेलाइट या दूसरी तकनीक. हम ये बेसिक-सी जानकारी इसलिए दे रहे हैं, ताकि हम आपको इस बिल के प्रावधान बेहतरी से समझा सकें.
क्या हैं इस बिल के प्रावधान?- बिल में टेलीकॉम कंपनियों को उपभोक्ताओं को सिम कार्ड जारी करने से पहले अनिवार्य रूप से बायोमेट्रिक पहचान करने का प्रावधान है.
- किसी के फोन को गैरकानूनी ढंग से टैप करने या अनाधिकारिक तरीके से डेटा ट्रांसफर करने पर तीन साल की जेल या 2 करोड़ के जुर्माने तक का प्रावधान है. ये अधिकार केंद्र और राज्य सरकार दोनों के पास होगा.
- ऑथराइज्ड एंटिटी का डेटा इंटरसेप्ट करने पर सजा का नियम है. (किसी ऑथराइज्ड एंटिटि के डेटा में कॉल रिकॉर्ड्स, IP डेटा रिकॉर्ड्स, ट्रैफिक डेटा और कई दूसरी जरूरी डिटेल्स होती हैं)
- टेलीकॉम स्पेक्ट्रम के एडमिनिस्ट्रेटिव एलॉकेशन को बायपास करने का भी प्रावधान है, जिससे कई टेलीकॉम कंपनियों को फायदा होगा. (इसका मोटामाटी मतलब ये है कि 3जी, 4जी, 5जी जैसी सेवाओं के जो स्पेक्ट्रम नीलाम होते हैं, उसे बायपास किया जा सकेगा, ऐसे किसी खास परिस्थिति में कोई भी कंपनी किसी भी स्पेक्ट्रम में सेवा दे सकेगी)
- ओवर-द-टॉप सर्विसेज जैसे ई-कॉमर्स, ऑनलाइन मैसेजिंग को टेलीकॉम सर्विसेज की परिभाषा से बाहर रखा गया है. पिछले साल जब इस बिल का ड्राफ्ट पेश किया गया था तो उसमें ओटीटी सर्विसेज भी दायरे में थीं.
- राष्ट्रीय आपदा या देश को खतरे की स्थिति में सरकार देश की तमाम टेलीकॉम सेवाओं को अपने हाथ में ले सकेगी (यानी सारा ऑपरेशन कंपनियों के हाथ से निकलकर सरकार के हाथ में आ जाएगा.)
- इसी राष्ट्रीय आपदा और खतरे की स्थिति में सरकार तमाम टेलीकॉम सेवाओं को intercept कर सकेगी (यानी आपके फोनकॉल या मैसेज को सरकार सुन-पढ़ सकेगी) और उन्हें आगे बढ़ने से रोक सकेगी और केस से जुड़े अधिकारियों को वो संदेश केस की जांच वास्ते भेजे जा सकेंगे.
- ये कम्यूनिकेशन इंटरसेप्ट करने और टेलीकॉम सेवाओं को अपने हाथ में लेने का फैसला उस स्थिति में भी किया जा सकता है, जब बात भारत की किसी दूसरे देश के साथ संबंधों की हो.
अब बात इस विधेयक को लेकर जताई जा रही चिंताओं और आपत्तियों की. बिल पेश करने के तुरंत बाद बहुजन समाज पार्टी (BSP) सांसद रितेश पांडेय ने इस पर आपत्ति जताई. कहा कि इस बिल को 'मनी बिल' की तरह लाया गया है ताकि इसे राज्यसभा की स्क्रूटनी से बाहर रखा जाए. अब जान लेते हैं कि ये मनी बिल होता क्या है?
मनी बिल एक ऐसा बिल होता है, जिसमें केवल धन से जुड़े हुए प्रस्ताव हों. इसके तहत राजस्व और खर्च से जुड़े हुए मामले आते हैं. ऐसे विधेयकों पर राज्य सभा में चर्चा तो हो सकती है लेकिन उस पर कोई वोटिंग नहीं हो सकती.
विरोध सिर्फ इस विधेयक को मनी बिल की तरह पेश करने पर ही नहीं हो रहा है. एक धड़ा ये भी कह रहा है कि चूंकि सरकार जब चाहे टेलीकॉम ऑपरेशन को अपने हाथ ले सकती हैं, संदेशों को इंटरसेप्ट कर सकती है, तो सरकार अब नागरिकों की निजता व लोकतांत्रिक अधिकारों का अतिक्रमण कर रही है.
ये बिल तो माना अभी भी बहसतलब है, मतलब इस पर अभी लोकसभा में वोटिंग नहीं हुई है. बहस ही हो रही है. वोटिंग हो चुकी है क्रिमिनल जस्टिस से जुड़े तीन बिलों पर. इन तीन बिलों को इसलिए लाया गया है, ताकि ब्रिटिश कालीन कानूनों को बदला जा सके. कौन-कौन से बिल लाए जा रहे हैं -
1 - भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता बिल, 2023
2 - भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता बिल, 2023
3 - भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) बिल, 2023
आप ध्यान देंगे तो इन तीनों बिलों के नाम में द्वितीय लिखा हुआ है. इसका मतलब है कि संसद में जो बिल गए हैं, वो इन बिलों का दूसरा ड्राफ्ट है. इन तीनों बिलों के पुराने स्वरूप को 11 अगस्त को संसद के मानसून सत्र के समय टेबल किया गया था. बिल पर बहस हुई तो इन्हें सेलेक्ट कमिटी को भेजा गया. सेलेक्ट कमिटी ने बिल में कुछ संशोधन बताए. गृह मंत्रालय ने इन बिलों को शीतकालीन सत्र की शुरुआत में वापिस ले लिया. बदलाव किये. और फिर से पेश किया तो नए ड्राफ्ट के नाम में लगा द्वितीय.
जब इन बिलों को लोकसभा में बहस के लिए 18 दिसंबर को टेबल किया गया, तो गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इन बिलों का फोकस न्याय देना है, न कि सजा देना. अब बारी-बारी इन बिलों के बारे में जानते हैं. इनके मुख्य प्रावधानों को समझते हैं. सबसे पहले बात भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता बिल की.
- ये रिप्लेस करेगा 1860 के Indian Penal Code (यानी आईपीसी) को, जिसमें पहले 511 धाराएं थीं.
- अब भारतीय न्याय संहिता में सिर्फ 356 धाराएं होंगी. 175 धाराओं में बदलाव हुए है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को खत्म कर दिया गया है.
- ये अपराध साबित होने पर सजा देने से जुड़ा हुआ एक्ट है.
- इस बिल में IPC के बहुत सारे प्रावधान शामिल किये गए हैं, लेकिन सजा के तौर पर कम्यूनिटी सर्विस का एक नया प्रावधान जोड़ा गया है.
- राजद्रोह कोई अपराध नहीं है, लेकिन देश की एकता, अखंडता और अक्षुण्णता को नुकसान पहुंचाना एक नया अपराध है.
- अगर कोई भी नागरिक देश की अखंडता को नुकसान पहुंचाएगा, तो इस काम को आतंकवाद की श्रेणी में गिना जाएगा.
- इस बिल में छोटे-मोटे संगठित हमले को भी गंभीर अपराध की श्रेणी में गिना जाएगा.
- जाति, धर्म या विचारधारा के आधार पर पांच या पांच से ज्यादा लोगों के समूह द्वारा की गई हत्या में उम्रकैद या फांसी होगी, साथ ही जुर्माना भी देना पड़ेगा. न्याय संहिता के इस प्रावधान को मॉब लिन्चिंग से जोड़कर देखा जा रहा है.
इसके बाद बारी आती है नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता बिल की.
- ये रिप्लेस करेगा 1898 के Code of Criminal Procedure (यानी CrPC) को, जिसमें 484 धाराएं थीं
- नई संहिता में अब 533 धाराएं होंगी, CrPC की 160 धाराओं को बदल दिया गया है. बिल में 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को खत्म किया गया है
- ये कानून गिरफ़्तारी, अभियोग और जमानत से जुड़ा हुआ है.
- नए प्रस्तावित कानून में यदि किसी अपराध में आरोपी को 7 साल या उससे ज्यादा की सजा होनी है, तो उस केस में फॉरेंसिक जांच अनिवार्य है.
- फॉरेंसिक टीम घटनास्थल पर अपनी समूची कार्रवाई की वीडियो रिकार्डिंग भी करेगी.
- केस का ट्रायल, पूछताछ और प्रोसीडिंग डिजिटल तरीके से भी किया जा सकेगा. यानी सशरीर मौजूद रहने की जरूरत नहीं है.
- सबूत लिए हुए इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेशन डिवाइस जैसे फोन वगैरह को भी पूछताछ में लाया जा सकेगा.
- अगर कोई आरोपी अपने केस की सुनवाई से भाग रहा है और उसे निकट भविष्य में अरेस्ट करने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है, तो उसकी अनुपस्थिति में भी केस चलाया जा सकेगा और उसे सजा दी जा सकेगी.
- जांच के लिए हैंडराइटिंग के साथ-साथ उंगली की छाप और वॉयस सैम्पल भी लिए जा सकेंगे. जांच एजेंसियां ये सैम्पल उन लोगों से भी ले सकती हैं, जिन्हें अरेस्ट नहीं किया गया है.
अब बात करते हैं भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) बिल की.
- ये रिप्लेस करेगा 1872 के Indian Evidence Act को, जिसमें 167 धाराएं थी.
- नए कानून में 170 धाराएं होंगी. इसके लिए 23 धाराओं में बदलाव किया गया. एक नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराएं निरस्त की गई हैं.
- ये कानून किसी अपराध के सबूत, कन्फेशन, और तथ्य से जुड़ा हुआ है.
- नई संहिता डिजिटल रिकार्ड को भी डॉक्यूमेंट में जोड़ती है.
- पुराना एविडेंस एक्ट एलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड को सेकेंडरी एविडेंस में रखता है. संहिता ये मांग करती है कि ये रिकार्ड प्राइमरी एविडेंस होंगे.
- नई संहिता सेकेंडरी एविडेंस में मौखिक और लिखित एविडेंस को रखती है
- नई संहिता सबूतों की पुष्टि करने वाले लोगों की टेस्टीमनी को भी सेकेंडरी एविडेंस में रखती है
- नई संहिता में पुलिस कस्टडी 15 दिनों से ज्यादा बढ़ाई जा सकती है. अधिक से अधिक 90 दिनों तक.
आपने कानून जाने. अब समझते हैं कि इन तीन कानूनों पर आपत्ति क्या है. अलग-अलग जगहों पर जो आपत्तियां सामने आई हैं, वो कुछ इस तरह हैं -
1 - राजद्रोह जैसे गंभीर अपराध के लिए सजा खत्म कर दी गई
2 - किसी भी अपराध को देश की अखंडता पर हमले की तरह देखा जा सकेगा और उसे आतंकवादी घटना की तरह देखा जाएगा
3 - छोटे अपराध और बड़े अपराध का फर्क मिटा दिया गया है
4 - पुलिस कस्टडी की सीमा बढ़ाकर पुलिस के अधिकारों को बेजा बढ़ाया गया है.
अब आज लोकसभा में इस बिल पर बहस हो रही थी. विपक्ष के जितने सांसद हाउस में बच गए थे, उन्होंने इस बिल पर अपने तरीकों से सवाल उठाए. विपक्ष के सवालों का जवाब दिया गृहमंत्री अमित शाह ने. इसके बाद हुई वोटिंग और ये तीन बिल लोकसभा में पास हो गए.