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'मौलवी कुछ भी कहें, मैं ट्रिपल तलाक पर कभी सहमत नहीं हो सकती'

बीवी ने खाने में नमक कम डाल दिया और दे दिया तलाक. क्या ये भी कोई तलाक है?

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ये बिल पहले भी लोकसभा से पास हो चुका है.

ये स्टोरी 'ऑड नारी' के लिए सरवत फातिमा ने की है. इसे 'दी लल्लनटॉप' के लिए रुचिका ने ट्रांसलेट किया है.

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मैं धर्म की कोई एक्सपर्ट नहीं हूं. मुझे जो थोड़ा ज्ञान है, वो मेरे बड़ों से मिला है. ऐसी कई चीज़ें हैं, जिन पर मैं वास्तव में सहमत नहीं हूं, फिर भी मैं उसे मानती हूं. ऐसा सिर्फ़ उनके लिए, जिनकी मैं इज़्ज़त करती हूं. हालांकि, एक चीज़ है जिस पर मैं कतई सहमत नहीं हूं. चाहें उसके बारे में कोई भी धर्मगुरु कुछ भी कहे. और वो है भारत में तीन तलाक़ का अस्तित्व.

हां ये इश्यू बहुत समय से ख़बरों में है, उन कुछ पॉलिटिकल पार्टियों के कारण, जो इससे फ़ायदा उठाना चाह रही थीं. ऐसा लगता है हर किसी कि इस बारे में एक राय है, यहां तक कि मेरी भी है. तो जब बीजेपी ने भारत में तीन तलाक़ के मामले पर यूनिफॉर्म सिविल कोड का प्रस्ताव रखा, बहुत से लोगों की ज़ुबान चलने लगी.

जिन्हें ज्ञात नहीं, उन्हें बता दें, 'यूनिफॉर्म सिविल कोड संवैधानिक जनादेश है. उन पर्सनल लॉ को इससे बदल दिया जाता है जो भारत में हर एक बड़ी धार्मिक कम्युनिटी से जुड़े है.' मूल रूप से इसका मतलब है: ऐसे कानून जो किसी भी विशेष धर्म या परंपरा से प्रभावित नहीं होते.

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जब मुझे पता चला कि मुस्लिम औरतों के इसे लेकर अलग-अलग विचार हैं, तो थोड़ा अजीब लगा.

इसमें कोई शक नहीं कि मुस्लिम महिलाएं अपनी ज़िंदगी तीन तलाक़ के डर में जीती हैं, क्योंकि ये तरीका अलग होने का प्रोसेस को आसान कर देता है. आप को बस तलाक़ शब्द तीन बार लेना है और काम खत्म. ये महिलाओं को शादी में एक बड़ी बुरी स्थिति में फंसा देता है. और कोई भी इस डर में जीना डिज़र्व नहीं करता.

किसी ने माता-पिता के सामने नमकीन परोस दी या किसी ने दाल में नमक कम डाला. ऐसे-ऐसे मूर्खतापूर्ण कारण सुनने में आते हैं तीन तलाक़ के. क्या ये कोई कारण हो सकते हैं किसी महिला से शादी तोड़ने के लिए? मुझे तो नहीं लगता.

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इस परंपरा के कारण महिलाओं के पास कोर्ट में गुहार लगाने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा है. उन्हें अपनी हैसियत से ज़्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं. तो सोच कर देखो इस बारे में. इस प्रैक्टिस को किसी तरह रोक दिया गया तो उन मुस्लिम महिलाओं को कितनी राहत पहुंचेगी, जो हमेशा तीन तलाक़ के डर के साथ ज़िंदगी जीती हैं.

अभी मेरी उम्मीद सुप्रीम कोर्ट के उन पांच जजों पर टिकी है, जो इस बात पर फैसला लेंगे कि तीन तलाक़ संविधान के हिसाब से सही है या नहीं.

गुरुवार को सायरा बानो और कई मुस्लिम महिलाओं की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. जहां उनका सवाल था कि तीन तलाक़ अब भी भारत में क्यों चल रहा है जबकि लगभग सारे मुस्लिम देशों में इस पर बैन लग चुका है?

संवैधानिक पीठ में मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर शामिल हैं. इस मामले की सुनवाई सात दिनों तक होने की उम्मीद है.


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