कैसे बने धरती पर सात महाद्वीप?
राजा प्रियव्रत ने किया सात दिनों तक सूरज का पीछा और बन गए सात महाद्वीप. कहानी श्रीमद्भगवत पुराण से.

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मनु और शतरूपा के बेटे थे- प्रियव्रत. वैसे तो उनको राजा बनना चाहिए था पर उन्होंने कहा भइया ये सब हाई-फाई काम हमसे न हो पाएगा और चले गए जंगल तपस्या करने. तब ध्रुव के पापा उत्तानपाद को राजा बनाया गया था. एक समय ऐसा आया कि प्रजापति दक्ष ने राज-काज सब छोड़ दिया. ऐसे में पृथ्वी पर कोई राजा नहीं बचा. तब मनु को अपने तपस्वी बेटे प्रियव्रत की याद आई. उन्होंने रिक्वेस्ट की कि आप थोड़ा धरती को देख लीजिये. तप में बिजी प्रियव्रत ने साफ मना कर दिया. फिर ब्रह्मा जी की मदद से मनु ने किसी तरह प्रियव्रत को उनकी ज़िम्मेदारियों का एहसास दिलाया और वो राजा बन गए. प्रियव्रत प्रजा की बड़ी चिंता करते थे. एक दिन उन्होंने सोचा कि ऐसी क्या बात है कि सूरज आधी धरती पर ही एक बार में रोशनी देता है. क्या उसके रास्ते में कोई रुकावट आ रही है? अगर मैं वो रुकावट हटा दूं तो पूरी धरती पर दिन ही दिन होगा और रात ख़त्म हो जाएगी. वो क्या है न, प्रियव्रत को धरती के रोटेशन का कॉन्सेप्ट पता नहीं था. पर वो दिल के अच्छे थे. वे अपने रथ पर सवार निकल पड़े सूरज और धरती के भले के लिए. जलते हुए सूरज के पीछे सात दिन तक चक्कर लगाते रहे. इससे उनके रथ से धरती पर सात निशान पड़ गए और धरती सात हिस्सों में बंट गयी. यही हुए हमारे सात द्वीप. राजा के दस बेटे थे, जिनमें से तीन संन्यासी बन गए थे. बाकी सात पुत्रों को उन्होंने सातों द्वीपों का राजा बनाया. इसके बाद उन्हें लगा कि धरती पर उनका काम खत्म हो गया है, तो नारद जी से बात करके वो सन्यासीपने में लौट गए. (श्रीमद्भगवत पुराण)