The Lallantop

'कपड़े उतारकर मैंने अपना घर भी कुर्सी पर रख दिया था'

उस लड़की की डायरी जो हमेशा घर से भाग जाना चाहती थी. पर नहीं भागी.

Advertisement
post-main-image
फोटो - thelallantop
कौन होती हैं वो लड़कियां जो घरों से भाग जाती हैं. भागकर जाती कहां हैं. भाग जाने की कौन सी उम्र सही होती है. या किस उम्र के बाद भागी हुई लड़कियां वापस घर नहीं आ सकतीं.
मैं भी हमेशा घर से भाग जाना चाहती थी. ये एक अजीब किस्म की फेटिश रही है मुझे.
छुटपन में हमारे पड़ोस की एक दीदी भाग गई थीं. उनके पापा दारोगा थे. लाल तिलक लगाते थे और सुबह बुलंद आवाज़ में हनुमान चालीसा पढ़ते थे. नंगे पांव गंगाजी तक जाते थे. जब हम लोग शाम को खेलते थे, फ्रॉक के नीचे से झांकती हमारी नंगी 'प्री-टीन' टांगों को वो बिना झिझक घूरा करते थे. जब दीदी भागी थीं, मुझे बहुत ख़ुशी हुई थी. लगा था कि दारोगा अंकल की जोंक जैसी चिपकती नज़रों से कोई लड़की तो आज़ाद हुई. शाम को चार-पांच पुलिस वाले मोहल्ले में घूमते रहे. हमारा मोहल्ला छोटा था. कम लोग रहते थे. कम लोगों को पता चला था दीदी के भाग जाने का. बस यही बात सोचकर उनकी दहाड़े मारती मम्मी बीच-बीच में सुकून की सांस ले लेती थीं. दो दिनों तक खूब ढुंढाई हुई. तीसरे दिन शाम को रेलवे स्टेशन की बेंच पर वो दीदी किसी को सोती हुई मिलीं. पता नहीं कब वो घर आ गईं. लेकिन मोहल्ले में किसी ने उस दिन के बाद इस बारे में कोई बात नहीं की. उन दीदी की शादी तक किसी ने उन्हें घर से बाहर निकलते नहीं देखा. मैं खुद के लिए इससे अलग एक कहानी चाहती थी. मैं चाहती थी कि जब घर वापस आऊं तो सबको अपने एडवेंचर के किस्से सुनाऊं. मेरे दिमाग में ये प्लान चलता रहता था. अगर मैं घर से भाग गई तो क्या होगा? चिट्ठी लिख के भागूं या बिना किसी से कुछ कहे? सबसे पहले किसको पता चलेगा. पापा, मम्मी, या पड़ोस वाली आंटी को. या सुबह स्कूल ले जाने वाली ऑटो के ड्राइवर को.
'मैं कौन से कपड़े पहनकर भागूंगी. पुलिस को कौन बुलाएगा. घर के बाहर भीड़ लगी होगी. मम्मी रो-रोकर मुझे गालियां दे रही होंगी. दुबे आंटी सबके लिए चाय बना कर ले आएंगी. ऐसा मातम फैला होगा घर पर जैसा आजी (दादी) की मौत के बाद था. घर से भागी हुई लड़की भागने से पहले ही मर चुकी होती है ना. सब लोग मुझे ढूंढने निकल पड़ेंगे. फिर अचानक कोई आएगा और कहेगा. एक लाश मिली है यहीं पास में. उसका हुलिया आपकी बेटी से मिलता है. मुझे बहुत मज़ा आता था ये सब सोच कर.'
घर हमेशा मुझे काटता था. उस घर में वो सब कुछ था, जो वक़्त के हिसाब से ज़रूरी होता. फिर भी मैं वहां से भाग जाना चाहती थी. 'लव एंड हेट' किस्म का रिश्ता था घर से. वहां रहना एक बोझ लगता था. लगता था कि हर वक़्त कोई मेरे सिर पर बैठा हुआ है. अपने वज़न के साथ एक अदृश्य शख्स का वज़न ढोना मुश्किल होता है. उस घर में जिंदा रहने में एक अपराधबोध नत्थी था. शायद ऐसा महसूस करने वाली मैं इकलौती नहीं थी. कोई किसी को टॉर्चर नहीं करता था, पर सब दुखी थे. पैदा होने भर की ही बहुत गिल्ट थी. इतनी गिल्ट कि जब मुझे पीरियड्स शुरू हुए तो लगा ये मुझे सजा मिल रही है. सजा, छुप-छुपकर  मनोरमा और गृहशोभा के 'व्यक्तिगत समस्याएं' वाला सेगमेंट पढ़ने की. सजा, दो घर छोड़ कर रहने वाले मोनू के लिए मन में फीलिंग्स रखने की. अजब सा जाल था जिसमें हम सब बहुत भीतर तक फंसे हुए थे. एक दूसरे के बिना रह पाना मुश्किल था. एक दूसरे के साथ रहना ज्यादा मुश्किल था.
 'रूस्टर कूप' का हिस्सा हो गए थे हम लोग. जैसे हलाल करने से पहले मुर्गों को ठूंस-ठूंस कर खिलाया जाता है. टट्टी भी नहीं करने दी जाती. फड़फड़ाते हुए एक ही पिंजरे में बंद वे अपने आखिरी दिन का इंतज़ार करते रहते हैं. मैं वो पिंजरा तोड़ना चाहती थी. शायद उसके बाद औरों के लिए भी चीजें आसान हो जातीं.
भाग जाना, अपने 'मेंटल पैलेस' में जितना आसान था, उसे हकीकत में बदलना उतना ही मुश्किल था. भाग जाने से घर थोड़े ही छूटता है. वो भी हर वक़्त कंधे पर चढ़ कर साथ चलता है. जब पहली बार मैंने किसी लड़की को किस किया था. घर मेरी आंखों में फांस-सा चुभ रहा था. बहुत निराश था वो उस दिन मुझसे मेरे फैसले को लेकर. मैंने बड़ी नजाकत से अपनी आंखें मल ली थीं.
जब पहली बार मैंने किसी और के बिस्तर पर अपने बदन से कपड़े उतारे थे, घर को भी उतार कर वहीं कुर्सी पर रख दिया था. जब अपनी शर्तों पर जीना सीखा, घर थोड़ा-थोड़ा सा धुंधलाता चला गया. अब ना कोई कंधे पर बैठा रहता है, ना सांसें बोझिल करता है. अब बस एक अनमना सा लेबल चिपका हुआ है माथे पर.
जो लड़कियां घर से भाग जाती हैं ना, शायद उनमें मुझसे बहुत ज्यादा हिम्मत होती है. उनकी तकलीफें भी मुझसे लाख गुना ज्यादा होती होंगी. लेकिन जो लड़कियां नहीं भाग पातीं, जो हर वक्त खुद से लड़ती रहती हैं. जो घर-बाहर का काम संभालती हैं. टैक्स भरती हैं. गैस सिलेंडर भरवा के लाती हैं. बर्तन मांजती हैं, कपड़े धुलती हैं. वो लड़कियां अनमनी होकर भी हर लेबल को बिंदी की तरह चेहरे पर सजा लेती हैं.

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement