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लिखने वाले की जांच करनी हो तो उससे कविता नहीं, निबंध लिखवाइए

सुशोभित सक्तावत की कलम से...

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विलियम फ़ॉकनर, द ग्रेटेस्‍ट प्रोज़ स्‍टायलिस्‍ट, जिनका "द साउंड एंड द फ़्यूरी" कवियों पर गद्यकारों की श्रेष्‍ठता का सबसे ऊंचा स्‍मारक है.
sushobhitगद्य और पद्य में क्या ज्यादा 'साहित्यिक' है, जब इसपर बहस छिड़ती है, लोग कविता की साइड लेते हैं. लेकिन हमारे एक साथी थोड़ा हटकर सोचते हैं. पढ़ा जाए. सुशोभित सक्तावत इंदौर में रहते हैं. दी लल्लनटॉप पर आप इनके किस्से, कहानियां और आलोचनाएं नियमित रूप से पढ़ते रहते हैं.  और आपके पास भी कुछ हो जो आप सबको पढ़ाना चाहें तो लिख भेजिए lallantopmail@gmail.com पर.
  संस्‍कृत में एक उक्ति है : "गद्यं कवीना निकषं वदन्‍ति" यानी गद्य कवि का निकष होता है, उसकी कसौटी. क्‍या सचमुच ऐसा है? मुझे तो लगता है कि उल्‍टे कविता गद्यकार का ऐच्छिक निकष होनी चाहिए और गद्य को लिखत का मूल-पाठ होना चाहिए. क्‍योंकि मेरे लिए लेखन का पर्याय गद्य है. मेरे यहां गद्य का पूर्वाग्रह है, योसेफ़ ब्रॉडस्‍की से ठीक विपरीत, जिनका कि कविता का दुराग्रह कुख्‍यात है. एक साक्षात्‍कार में ब्रॉडस्‍की से पूछा गया था कि हमें किन गद्यकारों को पढ़ना चाहिए, जिस पर उन्‍होंने जवाब दिया था कि इतने कवियों को होते आप गद्य को पढ़ना ही क्‍यों चाहते हैं. मैं ब्रॉडस्‍की का विपरीत ध्रुव हूं. मैं कहना चाहता हूं कि आप कविता पढ़ना ही क्‍यों चाहते हैं, जबकि फ़ॉकनर और मार्केज़ और निर्मल वर्मा ऐसा गझिन और परतदार गद्य लिख चुके हैं और कोई कविता उसका मुक़ाबला नहीं कर सकती.
लिखने का मतलब गद्य लिखना है. कविता तो एक किस्‍म का अभ्‍यास है. 'अ प्रैक्टिस विद फ़ॉर्म्‍स एंड स्‍ट्रक्‍चर्स एंड वर्बल म्‍यूजिक एंड प्रिसिशन'. वह 'अ प्रैक्टिस विद राइटिंग' है, ख़ुद 'राइटिंग' नहीं है. लिखे-पढ़े की तृषा तो गद्य से ही बुझती है. लेखन की दुनिया में गद्यकार ही नायक है, कविता-शविता लिखने वाले उसमें चरित्र अभिनेता की तरह हैं.
अगर आप किसी के लिखे की पड़ताल करना चाहते हैं तो उससे कविता नहीं लिखवाइए (छह शब्‍दों की तो क़त्‍तई नहीं), उससे हज़ार शब्‍दों का एक निबंध लिखवाइये. यही लेखक की कसौटी है. कि वह हज़ार शब्‍दों का निबंध भाषा के कितने सुघड़ विन्‍यास और आशयों की कितनी अर्थ छटाओं के साथ लिख सकता है. उसकी प्रतिभा, उसके अध्‍यवसाय और उसके सामर्थ्‍य का निकष केवल गद्य ही है. मैंने अनेक कवियों को गद्य की आड़ में छुपते देखा है, जो अन्‍यथा एक अच्‍छा पैरा गद्य में नहीं लिख सकते. मैं तो नहीं कहूंगा कि गद्य कवि का निकष है. मैं कहूंगा कि गद्य ही लेखन है. और अच्‍छा गद्य लिखे बिना आप लेखक नहीं कहला सकते. कुन्‍देरा के नॉवल 'द इम्‍मॉर्टलिटी' में कथानक के बीच में कोई सौ पेज का एक निबंध है. वह एक यशस्‍वी गद्यकार का पुरुषार्थ है. मार्केज़ का 'ऑटम ऑफ़ द पैट्रियार्क' प्रोज़ में रेटॅरिक का परचम है. फ़ॉकनर का 'द साउंड एंड द फ़्यूरी' नैरेटिव वॉइसेस के साथ इतने खेल करता है कि वैसी स्‍वरबहुलता आप किसी कविता में कभी जान नहीं सकते. वस्‍तुगत सत्‍य का अन्‍वेषण ना तो कवि कर रहा होता है ना गद्यकार, वे दोनों ही सत्‍य का दोहन कर रहे होते हैं, लेकिन एक रियाज़ी गद्यकार ऐसा आशयों के अनेक अंतर्गुम्फित स्‍तरों पर कर रहा होता है. एक अच्‍छा गद्यकार एक अच्‍छे कवि की तुलना में हमेशा बेहतर होता है. बशर्ते हमारे सामने कोई नेरूदा या रिल्‍के या ग़ालिब या शमशेर जैसा कवि ना हो. और वैसे कवि अमूमन होते ही कहां हैं. पुनश्‍च: कविगण अन्‍यथा ना लें. लेकिन एक लंबे अरसे से ख़ूबसूरत और दिलक़श चीज़ों को 'पोयटिक' और सतही और लचर चीज़ों को 'प्रोज़ेइक' कहा जाता रहा है. मैं उनसे कहना चाहूंगा कि ना केवल यह हायरेर्की ग़लत है, बल्कि शायद इससे उल्‍टा ही ज्‍़यादा सही है.

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