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आगे बिना ड्राइवर की ट्रेन, पीछे कार, यूं रुका हादसा!

बिना ड्राइवर की ट्रैन को 100 किलोमीटर चलने के बाद कैसे रोका गया?

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खतरनाक केमिकल्स लेकर चल रही ट्रेन बिना ड्राइवर 100 किलोमीटर दौड़ती रही. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

ट्रेन 100 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से भाग रही है. लेकिन उसमें ड्राइवर नहीं है. ट्रेन को रोका न गया तो होगा भयानक हादसा. तभी होती है एक हीरो की एंट्री. वो दौड़ते हुए आता है और कूदकर ट्रेन पर चढ़ जाता है. ऐन मौके पर ब्रेक लगते हैं और हादसा टल जाता है. नई-पुरानी, हॉलीवुड-बॉलीवुड फिल्मों का ये हिट फॉर्म्युला है. लेकिन आज सुनाएंगे असली किस्सा. जब एक ट्रेन 110 किलोमीटर तक बिना ड्राइवर दौड़ती रही. (CSX 8888 incident)

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ब्रेक लगाया, ट्रेन ने स्पीड पकड़ ली  

अमेरिका के उत्तर-पूर्व में एक राज्य है, ओहायो. चांद पर पहला कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग, यहीं के रहने वाले थे. 15 मई, 2001 की बात है. यहां CSX नाम की मालगाड़ी चलाने वाली एक कम्पनी के रेलयार्ड में रोज़ की तरह काम चल रहा था. काम यानी मागाड़ियों से सामना उतारना, चढ़ाना, बोगियां, इंजन चेंज करना, ट्रैक बदलना आदि. क्रू में उस रोज़ तीन लोग थे, एक कंडक्टर और एक इंजीनियर और ब्रेकमैन. दोपहर 12 बजे इंजीनियर 8888 नंबर के एक लोकोमोटिव इंजन में चढ़ा. इंजन के साथ 47 बोगियां थीं. जिसमें से अधिकतर खाली थीं. कुछ में लोहा-लक्कड़ भरा हुआ था. और दो बोगियां एक टॉक्सिक केमिकल से भरी हुई थीं. जो पेंट और गोंद बनाने के काम आता है.(Unstoppable 2010 film)

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CSX 8888 मालगाड़ी का रूट (बाएं) डीरेलर ट्रेन को उसके ट्रैक से बाहर धकेलने के लिए लगाए जाते हैं (दाएं) (तस्वीर- wikimedia commons)

इंजीनियर इंजन को दूसरे ट्रैक पर ले जाने के लिए चढ़ा था, इसके लिए एक स्विच दबाना होता था. उसने ब्रेक दबाया और  ट्रेन की रफ़्तार एकदम धीमी कर दी. इसके बाद वो उतर कर स्विच चेंज करने चला गया. उसे लगा था टस्विच बदलकर दुबारा ट्रेन में चढ़ जाएगा लेकिन उठा तो उसने देखा, ट्रेन की स्पीड बढ़ रही है. घबराते हुए उसने छलांग लगाकर ट्रेन में चढ़ने की कोशिश की. हाथ तो उसका एक रेलिंग तक पहुंच गया, लेकिन पैर फिसल गया. ट्रेन अब 20 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार पकड़ चुकी थी. इंजन के रेलिंग से इंजीनियर लटक रहा था. लगभग 80 फ़ीट घिसटने के बाद उसने रेलिंग छोड़ दी. यानी अब तेज़ी से स्पीड पकड़ रही इस ट्रेन में कोई भी नहीं था.

ब्रेकमैन और कंडक्टर ने कुछ दूर से ये नजारा देखा. उन्हें लगा बेचारे इंजीनियर को हार्ट अटैक आ गया है. लेकिन ये सब सोचने के अभी वक्त नहीं था. आनन फानन में उन्होंने अपनी कार पकड़ी और ट्रेन के साथ साथ हो लिए. ट्रेन स्पीड पकड़ती जा रही थी... 30… 40.. कुछ ही देर में इंजन 50 किलोमीटर प्रति घंटा पर दौड़ने लगा था. ब्रेकमैन और कंडक्टर उसके पीछे थे. अगली क्रॉसिंग तक वो ट्रेन से पहले पहुंच गए. लेकिन अब तक ट्रेन इतनी तेज़ स्पीड पकड़ चुकी थी कि उस पर कूदने की कोशिश मौत को दावत देने सरीखी थी.

गोली चलाकर ट्रेन रोकने की कोशिश? 

8888 भागी जा रही थी. बिना किसी ड्राइवर के. कुछ ही देर में वो आबादी भरे रास्तों और रोड क्रासिंग से गुज़री. आपने देखा होगा ट्रेन घंटियां सायरन और बजाती हुई चलती है. ताकि आपस कोई आदमी या जानवर हो तो आगाह हो जाए कि ट्रेन आ रही है. लेकिन उस ट्रेन में घंटी, साइरन बजाने वाला कोई न था. शुरुआती कुछ किलोमीटर तक पुलिस हरकत में रही और सबको आगाह करती रही कि ट्रैक के पास कोई न जाए. लेकिन ऐसा कब तक किया जा सकता था. मालगाड़ी के इंजन में कई सौ मील चलने का ईंधन होता है. इसलिए ट्रेन को किसी तरह रोकना जरूरी था. खासकर तब, जब उसमें खतरनाक केमिकल से भरी दो बोगियां थी. किसी हादसे की सूरत में नुकसान बहुत भयानक हो सकता था. सवाल था कि बिना ड्राइवर की ट्रेन को रोका कैसे जाए?

Jon Hosfeld
जॉन हॉसफील्ड ने कई किलोमीटर तक बिना ड्राइवर के चलती ट्रैन का पीछा किया और कूदकर उसे रोका (तस्वीर- inquirer.com)

पहली कोशिश के तौर पर आबादी से दूर उसके रास्ते में डीरेलर लगाए गए. ये ट्रेन को उसके ट्रैक से बाहर धकेलने के काम आते हैं. उम्मीद थी इनसे ट्रेन ट्रैक छोड़ देगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि डीरेलर कम स्पीड पर ही काम कर सकते हैं. और ये ट्रेन 60 किलोमीटर की स्पीड से उन्हें तोड़ते हुए चली गई.

इस नाकामी के बाद के बाद बन्दूक आजमाई गई. इंजन की बाहर की तरफ एक इमरजेंसी फ्यूल कट ऑफ बटन होता है. जिसे दबाने से इंजन में फ्यूल की सप्लाई रुक जाती है. एक पुलिस वाले ने उत्साह में उस पर निशाना लगाकर गोली चला दी. ये बेवकूफी भरी हरकत थी. क्योंकि एक तो फ्यूल कट ऑफ बटन को कुछ सेकेंडों तक दबाए रहना पड़ता है, जो गोली से संभव नहीं था. दूसरा ईंधन के पास गोली लगने से आग लग सकती थी. तब ट्रेन चलता-फिरता आग का गोला बन जाती, जो और भी खतरनाक होता. गोली से कोई नुकसान नहीं हुआ लेकिन कोई मदद भी न मिली.  

आगे क्या करें, अधिकारी ये सोच रहे थे कि तभी के तरीका सूझा. डनकर्क नाम की जगह पर एक दूसरी मालगाड़ी खड़ी थी. पहली वाली ट्रेन के ठीक बगल वाले ट्रैक पर. उसके ड्राइवर को तुरंत सूचना दी गई. प्लान ये थे कि उस मालगाड़ी का ड्राइवर इंजन को डीकपल याने बोगियों से उसे अलग कर दूसरी मालगाड़ी का पीछा करेगा. और पास पहुंचकर उसकी बोगियों से खुद को जोड़ लेगा.

कार से पीछा 

इंजन ने मालगाड़ी का पीछा शुरू किया और कुछ किलोमीटर बाद उसके पकड़ भी लिया. 80 किलोमीटर की स्पीड पर ड्राइवर ने इंजन को मालगाड़ी की आख़िरी बोगी से जोड़ा, जबकि आम तौर पर ऐसा अधिकतम 6-7 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड तक ही किया जाता है. शुरुआत में हमें बताया था एक कार एकदम शुरुआत से मालगाड़ी का पीछा कर रही थी.  इस कार में बैठे थे जॉन हॉसफील्ड. डनकर्क के बाद जब ट्रेन के पीछे एक और इंजन जुड़ गया, तब भी हॉसफील्ड कार से उसका पीछा करते रहे. अब तक खबर हर तरफ फ़ैल चुकी थी. कई सारे प्लान्स तैयार हो रहे थे. मसलन ट्रेन को चढ़ते रैम्प पर चढ़ाकर उसे बालू के ढेर से टकरा दिया जाए. एक हेलीकाप्टर एम्बुलेंस लगातार ट्रेन के ऊपर मंडरा रहा था ताकि दुर्घटना की स्थिति में तुरंत मदद पहुंचाई जाए.

Unstoppable
साल 2010 में इस घटना पर बनाई गई फिल्म ‘अनस्टॉपेबल’ रिलीज़ हुई थी (तस्वीर- wikimedia commons)

इसी बीच ट्रेन के पीछे जो दूसरा इंजन था उसने धीरे-धीरे ब्रेक लगाने शुरू किए. लेकिन आगे एक और इंजन पूरी ताकत से ट्रेन को दूसरी दिशा में खींच रहा था. लिहाजा ट्रेन के गति तो कम हुई लेकिन वो थमी नहीं. हॉसफ़ील्ड अपनी कार में अभी भी उसके पीछे थे. केंटन नाम की जगह पर एक क्रासिंग पड़ती थी. हॉसफ़ील्ड ने कार की स्पीड बड़ाई और ट्रेन से पहले वहां पहुंच गए. यहां उन्होंने ट्रेन को आते हुए देखा. ट्रेन पहले से धीमी थी लेकिन अब भी 20 किलोमीटर की रफ़्तार से दौड़ रही थी. हॉसफ़ील्ड ने आव देखा न ताव दौड़ लगा दी. ट्रेन के एकदम नजदीक पहुंचकर उन्होंने आगे की तरफ छलांग लगाई. किस्मत ने साथ दिया और इंजन की रेलिंग उनके हाथ में आ गई. तुरंत इंजन पर चढ़कर उन्होंने जल्दी से ब्रेक लगाए, और ट्रेन धीमे-धीमे चलकर रुक गई. इस पूरे हंगामे में ढाई घंटे का वक्त लगा. तब तक ट्रेन अपनी शुरुआत से 106 किलोमीटर दूर पहुंच चुकी थी.

अब बारी थी इस घटना की तहकीकात की. जांच में सामने आया कि ब्रेक लगाते हुए इंजीनियर गलती हो गई थी. ट्रेन के इस मॉडल में ब्रेक लगाने या स्पीड बढ़ाने का लीवर एक ही था. एक बटन दबाकर आप उसे एक से दूसरे में चेंज कर सकते थे. ट्रेन का ट्रैक स्विच करने के लिए इंजीनियर ने ट्रेन का लीवर खींचा, लेकिन उस समय वो एक्सेलरेशन मोड में था. लिहाजा ट्रेन ने स्पीड पकड़ी और धीरे धीरे उसने पूरी रस्फतार पकड़ ली. किस्मत से इस मामले में कोई हादसा नहीं हुआ, न ही किसी को कोई चोट आई. साल 2010 में हॉलीवुड ने इस घटना पर एक फिल्म भी बनाई थी, नाम था अनस्टॉपेबल. अच्छी फिल्म है चाहे तो देख सकते हैं.

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