आज यानी 13 सितंबर को यूनियन कैबिनेट मिनिस्टर अनुराग ठाकुर ने दो अहम फैसलों का उल्लेख किया, वो भी संसद के विशेष सत्र, 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले. फिर बात करेंगे सेब अखरोट की. सरकार ने इनकी इम्पोर्ट ड्यूटी में कटौती कर दी है. मतलब इनको अमरीका से मंगाना सस्ता होगा. अब देश के किसान चिंतित हैं कि सरकार उनसे उनकी आजीविका छीन रही है. और ये भी समझेंगे कि छोटी-छोटी चीजें भारत और अमरीका के संबंधों के लिए कितनी जरूरी हैं? क्योंकि जब लोग पीएम मोदी और जो बाइडन के किसी खास वीडियो को देश के सम्मान और अपमान से जोड़ रहे हों, या इंदिरा गांधी और रिचर्ड निक्सन के डायलॉग से देश और प्रधानमंत्री पद की गरिमा आंक रहे हों, तो ध्यान सही बातों की ओर खींचना जरूरी है. बातें हैं देश का किसान, देश के उत्पाद, और देश के ग्राहक और इन सबके केंद्र में कुछ सरकारी फैसले.
क्या अमेरिकी सेब पर केंद्र की टैक्स छूट से देश के किसानों का नुकसान होगा?
केंद्र सरकार ने रक्षाबंधन के मौके पर घरेलू एलपीजी के दामों में 200 रुपये की कमी की थी. इससे घरेलू गैस का दाम 1100 रुपये से 900 रुपये हो गया था.

13 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक हुई. दो अहम फैसले लिए गए. इनकी जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने मीडिया को बताया कि उज्ज्वला योजना के विस्तार में सरकार 1650 करोड़ रुपये खर्च करेगी. महिलाओं को 74 लाख मुफ़्त एलपीजी कनेक्शन देंगे, ये भी वादा किया. वहीं कैबिनेट ने ई-कोर्ट्स मिशन प्रोजेक्ट के फेज-3 के लिए 7210 करोड़ रुपये देने का फैसला किया है.
उज्ज्वला योजना तो आपको पता होगी, घर-घर गैस सिलिंडर पहुंचाने से जुड़ी केंद्र की योजना. ईकोर्ट मिशन मोड प्रोजेक्ट केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया एक अभियान है. जिसका मकसद है तकनीक के इस्तेमाल से हर किसी को न्याय देना. अनुराग ठाकुर ने कहा,
"अब और 75 लाख मुफ्त एलपीजी कनेक्शन अगले 3 सालों के दौरान महिलाओं को दिए जाएंगे. योजना के तहत पहली गैस फिलिंग और स्टोव भी मुफ्त दिए जाते हैं. जिसका खर्चा ऑइल मार्केटिंग कंपनीज उठाती हैं. वहीं डिपॉजिट फ्री एलपीजी कनेक्शन के लिए खर्चा भारत सरकार उठाती है. सरकार ये पैसा रीइम्बर्समेंट के रूप में तेल कंपनियों को देती है."
बता दें कि केंद्र सरकार ने रक्षाबंधन के मौके पर घरेलू एलपीजी के दामों में 200 रुपये की कमी की थी. इससे घरेलू गैस का दाम 1100 रुपये से 900 रुपये हो गया था. उज्ज्वला योजना के तहत अब तक 9 करोड़ 60 लाख से ज्यादा गैस कनेक्शन देने का दावा मोदी सरकार करती है. इसके ईकोर्ट मिशन के जरिए ई फाइलिंग को आसान बनाने, कोर्ट रिकार्ड को डिजिटल करने, साथ ही डेटा के क्लाउड स्टोरेज की सुविधा देने की योजना है. साथ ही सभी कोर्ट्स में 4400 ई-सेवा केंद्र बनाए जाएंगे.
चुनावी साल है, घोषणाएं हो रही हैं. होती रहेंगी. रोज अखबारों में पेज भर-भरकर विज्ञापन आ रहे हैं. जनता के पैसे से विज्ञापन और मुफ़्त स्कीम की कीमत जनता को कितनी चुकानी है? वो जल्द एक लल्लनटॉप शो में हम संबोधित करेंगे, और अभी चलते हैं अपनी अगली बड़ी खबर की तरफ - सेब, अखरोट कैसे भारत अमरीका को करीब ला रहे हैं?
बात शुरु करने से पहले आपको एक छोटी-सी चीज़ समझा देते हैं. ये चीज़ बार-बार इस बुलेटिन में रिपीट होगी. वो बात है इम्पोर्ट ड्यूटी उर्फ आयात शुल्क. मान लीजिए कोई देश किसी दूसरे देश से कोई सामान आयात करता है, तो जो देश सामान भेज रहा है. उसे एक तय शुल्क चुकाना होता है. एक टैक्स. ये टैक्स दिया जाता है सामान मंगवाने वाले देश को. इसी टैक्स को कहते हैं इम्पोर्ट ड्यूटी. इसे तय कौन करता है? सामान खरीदने वाला देश. किसी चीज़ पर जितनी ज्यादा इम्पोर्ट ड्यूटी होगी, उस चीज़ का दाम उसी अनुपात में बढ़ता जाएगा. हो सकता है वो सामान इतना महंगा हो कि उसका इम्पोर्ट कम हो जाए, ऐसा भी होता है.
अब ये कहानी शुरु होती है साल 2018 से. इस समय अमरीका में राष्ट्रपति की कुर्सी पर डोनाल्ड ट्रम्प बैठे थे. उन्होंने एक फैसला लिया. कहा कि भारत से आने वाले स्टील के प्रोडक्ट पर 25 परसेंट की इम्पोर्ट ड्यूटी लगाई जाएगी. साथ ही भारत से आने वाले एल्युमिनियम के आइटम पर 10 परसेंट की इम्पोर्ट ड्यूटी लगेगी. यानी इंडिया से अमरीका जाने वाले स्टील और अलुमिनियम के आइटम महंगे हो गए. और इंडिया ही नहीं, ट्रम्प ने तब और भी देशों पर ऐसी इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाई थी. डोनाल्ड ट्रम्प के इस औचक निर्णय के पीछे क्या कारण थे? दरअसल इस साल ट्रम्प अपने देश में अपनी गिरती हुई लोकप्रियता से परेशान थे. उन्होंने चीन से व्यापारिक झगड़ा पाल लिया. चीन समेत कई देशों से आने वाले स्टील और अलुमिनियम के सामान पर ड्यूटी बढ़ा दी थी. इसके पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा को बहाने की तरह रखा गया था. इसे स्थानीय मीडिया में ट्रम्प tariff कहा गया.
भारत ने इसको लेकर आपत्ति दर्ज की. World Trade organisation यानी WTO में. WTO एक ऐसी संस्था है जो देशों के बीच होने वाले व्यापार पर नज़र रखती है. इसके साथ ही भारत ने अमरीकी सरकार को भी चिट्ठी लिखी. कुछ हासिल नहीं हुआ तो भारत सरकार ने भी एक कार्रवाई की. ये कार्रवाई थी अमरीका से भारत आने वाले सामानों पर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाना. कुल 28 चीजें थीं, जिनसे तीन चीजों का प्रमुखता से उल्लेख किया जा रहा है - सेब, अखरोट और बादाम.
भारत सरकार ने इन सामानों पर लगने वाली इम्पोर्ट ड्यूटी पर 20 परसेंट का इजाफा कर दिया. इसे भारत सरकार के बदले की कार्रवाई की तरह देखा गया. ये सब होते-होते कैलेंडर में साल 2019 लग चुका था. अमरीका में चुनाव की तैयारी हो चुकी थी. ट्रम्प की कुर्सी जाने वाली थी. चुनाव हुए. जो बाइडन आए. कोरोना और लॉकडाउन में जो समय लगा, सो लगा. लेकिन उस दरम्यान ये तैयारी शुरु हो चुकी थी कि अमरीका भारत पर लगाए ये बेजा टैक्स कम करे. दूसरी तरफ ये मामला WTO में चलता रहा. फिर साल आया 2023. जून के महीने में पीएम मोदी की अमरीका का दौरा तय हुआ. 21 से 23 जून तक चले इस दौरे के ठीक पहले भारत सरकार ने एलान किया कि इन सभी चीजों, जिसमें सेब, अखरोट, बादाम जैसी चीजें शामिल हैं, पर से इस एक्सट्रा इम्पोर्ट ड्यूटी को काट देंगे. अमरीका ने भी कहा कि हमारी सरकार ने आप के स्टील और एल्युमिनियम पर टैरीफ लगाया था, वो भी वापिस लेंगे.
12 सितंबर को दोनों देशों के इन वादों की आधिकारिक घोषणा हो गई. अब अमरीका से भारत आने वाले सामानों पर पुरानी इम्पोर्ट ड्यूटी ही लगेगी. सेब पर 50 परसेंट, अखरोट और बादाम पर 100-100 परसेंट. एक्स्ट्रा 20 परसेंट वाली हट गई.
अब इन सबमें एक चीज़ है, जिस पर विवाद हो रहा है. सेब. चूंकि सेब से इम्पोर्ट ड्यूटी कट गई, तो ये परसेप्शन बना कि अब अमरीका से आने वाले सेब सस्ते हो जाएंगे. इसमें एक और लेयर जोड़ दीजिए. बाहर के सस्ते सेब की खपत बढ़ेगी तो देश के किसानों को नुकसान होगा.
इसमें राजनीति भी अपनी जगह बना चुकी है. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी इस समय हिमाचल प्रदेश की यात्रा पर हैं. वहां कुछ समय पहले तक बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं हुई थीं. वो आपदा से आई बर्बादी और राहत कार्यों का मुआयना कर रही हैं. प्रियंका गांधी ने सवाल उठाए कि क्या सरकार अमरीकी किसानों की मदद कर रही है?
फिर सरकार का जवाब आया. बयान जारी करके सरकार ने बताया कि अमरीकी बादाम पर रेगुलर इम्पोर्ट ड्यूटी ही लगेगी, एक्स्ट्रा वाली ड्यूटी हटाई गई है, जैसा हमने आपको पहले बताया. सरकार ने बयान में लिखा -
"इस उपाय से देश के सेब, अखरोट और बादाम उत्पादकों पर कोई भी नकारात्मक असर नहीं होगा, बल्कि इसके परिणामस्वरूप सेब, अखरोट और बादाम के प्रीमियम बाजार खंड में कड़ी प्रतिस्पर्धा होगी जिससे हमारे भारतीय उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर संबंधित बेहतर उत्पाद मिलेंगे."
ये बातें हो गईं, अब थोड़ा गणित समझते हैं. भारत में कितना सेब पैदा होता है? 2021-22 के आंकड़ों के मुताबिक
भारत में कुल 24.37 लाख टन सेब की पैदाइश हुई
इसमें से जम्मू-कश्मीर के इलाके में 17.19 लाख टन
और हिमाचल के इलाके में बाकी 6.44 लाख टन
ये पैदाइश का आंकड़ा है. हमने कितना सेब आयात किया? ये आंकड़ा है 4 से साढ़े 4 लाख टन का.
अब जब साल 2019 में हमारी सरकार ने अमरीका के सेब पर अपना टैक्स लगाया था, तो उस समय से लेकर अब तक अमरीका से सेब का इम्पोर्ट कम होता गया. सरकार ने अपनी विज्ञप्ति में भी लिखा है कि अमेरिकी सेब पर अतिरिक्त शुल्क लगाए जाने से अन्य देशों को लाभ होने के कारण अमेरिकी सेब की बाजार हिस्सेदारी घट गई. जब इम्पोर्ट घट गया तो टोटल इम्पोर्ट घटना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अमरीका के सेब कम हुए तो तुर्किये, इटली, चिली, ईरान और न्यूजीलैंड भारत के प्रमुख सेब निर्यातक के रूप में सामने आए. सरकारी आंकड़े भी ये साफ बताते हैं. आप स्क्रीन पर आ रहे चार्ट को देखेंगे तो समझ में आएगा कि कैसे जैसे अमरीका कमजोर हो रहा था, दूसरे देश मजबूत हो रहे थे. एक ट्रिवीया ये भी है कि हमने बड़ी मात्रा में चीन से सेब खरीदा है. लेकिन फिर अचानक से रोक दिया. इंडियन एक्सप्रेस में छपी हरीश दामोदरन की रिपोर्ट बताती है कि साल 2017 में चीन के सेब में कीड़े लगे मिले - मीली बग पेस्ट - तब से भारत ने चीन से सेब खरीदना बंद कर दिया.
बात तो इतनी ही साफ होनी चाहिए गुरु कि सरकार कोई फैसला ले रही है, काम्पिटिशन हो तो ग्राहक का फायदा होगा ही, लेकिन क्या वो इस शर्त पर ऐसा होना चाहिए कि देश के किसान की जान पर बने? नहीं. और इसका पक्का और लिखित वादा सरकारों को करना होगा.