साल 1679 के आसपास की बात है. तिब्बती बौद्धों के सबसे बड़े नेता और पांचवें दलाई लामा 'मेराक लामा लोद्रे ग्यास्तो' को एक काम सौंपा गया. काम था बौद्ध मठ बनाने के लिए जगह ढूंढने का. मेराक लामा जगह की तलाश में निकल पड़े. तिब्बत के आसपास के कई इलाकों में महीनों भटके, लेकिन उन्हें कोई जगह पसंद नहीं आई. काफी परेशान होने के बाद एक दिन एक गुफा में पहुंचे. और एक बड़े से पत्थर को साफ़ किया और ध्यान लगाकर बैठ गए. कई घंटो तक ईश्वर में ध्यान लगाए रहे. जब उठे तो देखा कि उनका घोड़ा गायब है. काफी ढूंढा, नहीं मिला. फिर किसी ने बताया कि घोड़ा वहां से कई मील दूर स्थित एक ऊंचे पहाड़ पर घास चरते हुए देखा गया है. मेराक लामा जब वहां पहुंचे तो वहां की खूबसूरती देख स्तब्ध रह गए. घोड़े के उस पहाड़ पर पहुंचने को ईश्वर का इशारा समझ, उन्होंने उसी जगह पर बौद्ध मठ बनाने का निर्णय लिया. चूंकि ये जगह उनके घोड़े ने ढूंढी थी, तो इसका नाम रखा तवांग. ‘त’ का अर्थ है- ‘घोड़ा’ और ‘वांग’ का अर्थ है- ‘चुना हुआ' यानी घोड़े के द्वारा चुनी गई जगह.
तवांग कैसे घूमने जाएं? स्टेशन से कितनी दूर चीनी सैनिक दिख जाते हैं?
जिस तवांग के एक किनारे पर भारत और चीन के सैनिक भिड़े, उसके बारे में सबकुछ जान लीजिए

चीन के बॉर्डर से लगा हुआ यही तवांग अब चर्चा में है. जिस वजह से नहीं होना चाहिए, उस वजह से है. ये एक तात्कालिक वजह हो सकती है. लेकिन इसके इतर तवांग शांति और अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है. पहचान ही इसकी यही है- धरती की छुपी हुई जन्नत, नॉर्थ ईस्ट का स्वर्ग. पहाड़ों के दृश्य, दूरस्थ विलक्षण छोटे गांव, जादुई गोम्पा, बर्फ से ढंकी चोटियां, पतली नदियां, गूंजते झरने और शांत सरोवर, मानो प्रकृति ने तवांग को बेहद इत्मीनान से तराशा हो.

तवांग के बारे में हमने आपको मोटी-मोटी जानकारी दे दी, लेकिन आप यहां पहुंचेंगे कैसे और पहुंचने पर किन जगहों का मजा लेना है, ये भी जान लीजिए.
तवांग में 400 साल पहले बने बौद्ध मठ को बौद्ध भिक्षु अंतरराष्ट्रीय धरोहर मानते हैं. ये भारत का सबसे बड़ा बौद्ध मठ है और ल्हासा के पोताला महल के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा. 600 से ज्यादा बौद्ध भिक्षु यहां रहते हैं. समुद्र तल से 10 हजार फुट की ऊंचाई पर है, इसलिए मठ से पूरी तवांग घाटी गजब दिखती है. ऐसी कि मानो एक साथ आंखों में पूरा स्वर्ग स्वर्ग समा गया हो. ये मठ दूर से दुर्ग जैसा दिखाई देता है. इसकी दीवारों पर खूबसूरत चित्रकारी की गई है. एक बात और यहां भगवान बुद्ध की विशाल 8 मीटर ऊंची मूर्ति लगी है. जो पर्यटकों को बहुत पसंद आती है.

नाम सुनकर हैरान रह गए होंगे. लेकिन ये असलियत है. खूबसूरत माधुरी दीक्षित झील तवांग से सिर्फ 30 किमी दूर है. माधुरी झील देश की सबसे दूरस्थ झीलों में से एक है और शायद दुनिया में भी.
इसका नाम माधुरी दीक्षित क्यों पड़ा? दरअसल, बॉलीवुड फिल्म ‘कोयला’ में इस झील के कुछ नजारे दिखाए गए हैं. ‘कोयला’ में शाहरुख खान के साथ एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित भी हैं. यही वजह है कि 'कोयला' की शूटिंग के बाद से इस झील को माधुरी दीक्षित झील कहा जाने लगा. पहले इसे सांगेसर झील के नाम से जानते थे.

नूरानांग झरना, तवांग से 80 किमी दूर है. ये देश के सबसे शानदार झरनों में से एक है. यहां पानी की एक सुंदर, सफेद और मोटी चादर, लगभग 100 मीटर की ऊंचाई से गिरती है. तवांग के लोग नूरानांग के बारे में एक दिलचस्प बात भी बताते हैं. वो ये कि इसे एक स्थानीय महिला 'नूरा' के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि 1962 में इस महिला ने भारत-चीन युद्ध के वक्त फ़ौज की खूब मदद की थी.

सेला पास अरुणाचल प्रदेश के लोगों के लिए एक जीवन रेखा है, यह एकमात्र रास्ता बताया जाता है, जो तवांग को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है. सेला दर्रा हमेशा बर्फ से ढका रहता है और इसलिए लोगों को खूब लुभाता है. दर्रे से बर्फ से ढके सफेद पहाड़ों के सीन दिखते हैं. हालांकि ऊंचाई पर स्थित ये दर्रा बेहद दुर्गम है और पूरे साल इसे नहीं देखा जा सकता.
तवांग युद्ध स्मारक (Tawang War Memorial)तवांग युद्ध स्मारक. दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे हिमालय की खूबसूरत चोटियों ने इसे अपनी गोद में ले रखा हो. तवांग से 25 किमी की दूरी पर है, 40 फीट ऊंचा है. 1962 के भारत-चीन युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले 2140 भारतीय सैनिकों की याद में इसे बनाया गया था.

तवांग में क्या करें? ये तो बात हो गई. लेकिन तवांग पहुंचे कैसे? अब ये बताते हैं. तवांग सड़क के रास्ते जाना पड़ता है, क्योंकि यहां के लगभग 300 किलोमीटर के दायरे में एक भी एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन की सुविधा उपलब्ध नहीं है.
तवांग का सबसे करीबी एयरपोर्ट असम का तेजपुर एयरपोर्ट है. जो यहां से करीब 323 किलोमीटर की दूरी पर है. तेजपुर एयरपोर्ट के अलावा तवांग जाने के लिए गुवाहाटी एयरपोर्ट के लिए फ्लाइट पकड़ सकते हैं. ये तवांग से करीब 445 किलोमीटर की दूरी पर है. इन दोनों एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद यहां से अरुणाचल प्रदेश राज्य सरकार के साथ-साथ प्राइवेट बस और प्राइवेट टैक्सी भी तवांग जाने के लिए आसानी से मिल जाती हैं.

तवांग का सबसे करीबी रेलवे स्टेशन भी तेजपुर में स्थित रंगपरा रेलवे स्टेशन है, जो यहां से करीब 320 किलोमीटर की दूरी पर है. रंगपरा रेलवे स्टेशन जाने के लिए दिल्ली, कोलकाता और लखनऊ जैसे प्रमुख शहरों से डायरेक्ट ट्रेन मिल जाती है. गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से भी तवांग के लिए बस और टैक्सी की सुविधा मिल जाएगी.
लेकिन तवांग की सैर पर जाएं कब?तवांग घूमने के लिए मार्च से सितंबर का समय सबसे अच्छा है. तवांग गर्मियों और मानसून के मौसम के दौरान एक आदर्श स्थान कहा जाता है. अगर आप बर्फबारी के दौरान तवांग जाना चाहते हैं तो फिर नवंबर से जनवरी के बीच जाइए. इस दौरान यहां तापमान 1-3 डिग्री सेल्सियस हो जाता है.
चीनी सैनिक कितनी दूर दिखाई देंगे?अगर तवांग जाकर LAC पर भारत और चीन के सैनिक देखने हैं, तो तवांग से करीब 40 किमी दूर बुमला दर्रे पर जाना होगा. ये दर्रा तवांग में भारत और चीन के बीच का दर्रा है. यानी इसका कुछ हिस्सा भारत में तो कुछ चीन के ‘कोना काउंटी’ में आता है. तवांग शहर से बमुला दर्रे पर पहुंचकर LAC के दूसरी ओर चीनी सैनिकों को देखा जा सकता है.

कुल मिलाकर कहें तो अगर भारत में छिपी जन्नत का सफर आपको करना है, तो तवांग घूमने की तैयारी शुरू कर दीजिए!
दी लल्लनटॉप शो: गलवान से उलट तवांग में भारत ने कैसे सूचनाओं के युद्ध में बड़ी जीत हासिल की?