रेतीली जमीन के बीचों-बीच बसा एक पूरा शहर. युद्ध की मुद्रा में आठ हजार सैनिक पूर्व दिशा की ओर मुंह किए खड़े हैं. सबसे आगे खड़े हैं सेना के जनरल. 6 फुट 7 इंच का क़द. पीछे रथों की एक कतार लगी है. हर रथ में चार घोड़े जुते हैं. जिनके ऊपर बैठे हैं तीरंदाज़. ये सब लोग जिसकी रक्षा कर रहे हैं, वो बादशाह, कुछ ही दूर एक नदी के बीच मौजूद है. सुनकर आपको लग रहा होगा. इतिहास के किसी युद्ध की बात हो रही है. लेकिन कैसा लगेगा, अगर आपको बताएं कि ये पूरा युद्ध जमीन के अंदर चल रहा है. पूरा युद्धस्थल टनों मिट्टी में दबा हुआ है और बादशाह जिस नदी के बीच खड़ा है, वो मर्करी यानी पारे की नदी है. (Terra Cotta Army)
हजारों सालों से जमीन में दफ़्न चीनी सेना का रहस्य!
अखंड चीन बनाने वाला सम्राट क्यों दफ़्न हुआ आठ हजार 'सैनिकों' के साथ?
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लालच हो रहा है कि कहानी में सीधे 2018 पर आ जाएं. काहे कि इस कहानी के साथ एक कीवर्ड जुड़ता है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग. चीनी सोशल मीडिया में अक्सर उनकी तुलना एक 2300 साल पुराने बादशाह से की जाती है. जिससे चीन को अपना नाम मिला है. लेकिन कहानी का ये हिस्सा बाद में बताएंगे. अभी के लिए सीधे 2300 साल पीछे चलते हैं.

चीन का जो स्वरूप हम आज जानते हैं, ईसा से तीन सदी पहले तक वो सात अलग-अलग राज्यों में बंटा हुआ था. इन सात राज्यों का नाम था यान, झाओ, ची, चु, हान, वी, और चिन. इनमें आपस में लड़ाई चलती रहती थी. हालांकि इन लड़ाइयों का तरीका बड़ा सभ्य होता था. दुश्मन की कमजोरी का फायदा उठाना नीच हरकत मानी जाती थी. फिर ईसा से 390 साल पहले एक सामंत का उदय हुआ. जिसने युद्ध के नियम हमेशा के लिए बदल दिए. शांग येंग नाम का ये सामंत चिन वंश में पैदा हुआ था. उसने एक नया फलसफा दिया. जिसे ‘फा-जिया’ के नाम से जाना जाता है. संक्षेप में इस फलसफे का मूल वाक्य था, ‘आदमी खुदगर्ज़ है. वो अधिकतर गलत काम ही करेगा.” इसलिए उसे कायदे में रखने के लिए सख्त नियम कानूनों की जरुरत है.
इस फलसफे के आधार पर नए कानून बने. ऐसे कानून कि अगर आपने जुर्म रिपोर्ट नहीं किया तो आपको दो टुकड़ों में काट दिया जाता. फा-जिया के अनुसार किसी राज्य का सिर्फ एक उद्देश्य था- जीत. किसी भी कीमत पर. इस फलसफे को आधार बनाकर चिन राज्य ने अपनी सेना को ताकतवर बनाया. हर परिवार के लिए जरूरी ही गया कि वो अपने बच्चों को सेना में भेजे. और समाज में सैनिक सबसे ज्यादा हैसियत रखने लगे. ताकतवर सेना की बदौलत चिन राज्य ने एक के बाद एक युद्ध जीते. और चंद दशकों के भीतर चिन एक ताकतवर राज्य बन गया.
अखंड चीन बनाने वाला सम्राटडेढ़ सदी बाद यानी ईसा पूर्व 230 में 13 साल का एक लड़का चिन की गद्दी पर बैठा. नाम था यिंग झेंग. अपने ताकवर जनरलों की मदद से यिंग झेंग ने बाकी 6 राज्यों पर आक्रमण किए. इतिहासकारों के अनुसार चिन की सेना बाकी राज्यों को यूं खा गई, जैसे रेशम का कीड़ा, शहतूत की पत्तियों को खा जाता है.

अपनी जबरदस्त युद्ध नीतियों की मदद से अगले एक दशक के अंदर यिंग झेंग ने सभी छह राज्यों को जीत लिया. और खुद को पूरे देश का सम्राट घोषित कर दिया. उसने अपना एक नया नाम रखा, चिन शी हुआंग. उसी के नाम पर आगे जाकर देश का नाम चीन पड़ा. चीन का जो स्वरूप हम आज देखते हैं, उसकी शुरुआत यहीं से हुई थी. और यहां पर हम सिर्फ बाउंड्री की बात नहीं कर रहे हैं. सारी सत्ता केंद्र के पास हो, ये विचार चिन शी हुआंग के दौर से शुरू हो गया था. चिन शी हुआंग अपने दुश्मनों को जिन्दा जमीन में गाड़ दिया करता था. साथ ही उसने चीन में ऐसी तमाम किताबों को जला डाला जिनमें उसके ख़िलाफ़ बातें लिखी गई थीं.
चिन की क्रूरता की कहानियां पूरे चीन में मशहूर थीं. एक बार यान राज्य ने उसकी हत्या की कोशिश भी हुई. कोशिश तो नाकाम रही लेकिन बदले में हुआंग ने यान राज्य को नेस्तोनाबूत कर डाला. यहां तक कि वहां के राजा ने माफी मांगने के लिए अपने बेटे का सर काटकर हुआंग के पास भिजवाया. लेकिन हुआंग पर इस बात पर कोई असर न हुआ. हालांकि ऐसा नहीं था कि हुआंग सिर्फ एक क्रूर राजा हो. उसने चीन के लिए बड़े काम किए. विशाल सड़कों का निर्माण करवाया. पूरे देश के लिए के स्टैंडर्ड भाषा तैयार करवाई. यहां तक कि द ग्रेट वॉल ऑफ़ चाइना का निर्माण भी उसने ही करवाया था. करीब 36 साल राज करने के बाद ईसा से 210 साल पहले उसकी मौत हो गई. और उसकी मौत के कुछ वक्त बाद ही चिन वंश का भी खात्मा हो गया. हालांकि कहानी यहां ख़त्म न हुई.
आठ हजार 'सैनिकों' की कब्रइसके बाद इस कहानी का एक सिरा खुलता है लगभग 2200 साल बाद. आज ही की तारीख थी, 29 मार्च 1974. चीन के शांक्सी प्रान्त की राजधानी शियान के पास एक गांव में कुछ लोग खुदाई कर रहे थे. खोज की जा रही थी पानी की लेकिन जमीन से कुछ और ही निकल आया. उन्हें दिखाई दिया एक पुतले का सर. थोड़ा और खुदाई की तो हाथ टांग और बाकी शरीर भी दिखने लगा. उन्होंने अधिकारियों को खबर की. खुदाई का विस्तार किया गया. तो एक ऐसा मंजर दिखा, जो पहले न कभी देखा गया था, न शायद आगे देखा जाएगा.

ये एक विशालकाय कब्र थी. ऐसी कब्रों का मिलना कोई नई बात नहीं थी. लेकिन ये कोई ऐसी-वैसी कब्र नहीं थी. 94 वर्ग किलोमीटर के इलाके में दफनाया गया पूरा एक शहर था. जिसमें आठ हजार मिट्टी के पुतलों की एक विशालकाय सेना दफ़्न थी. ये पुतले क्यों दफ़न किए गए थे. इसका जवाब जानने से पहले जान लेते हैं कि इस विशालकाय कब्र में और क्या-क्या मिला? यहां दफ़्न थे,
-600 घोड़े
-160 रथ
-तीर तलवार जैसे 40 हजार अस्त्र-शस्त्र
-और सैकड़ों जानवरों के पुतले. सब पकी हुई मिट्टी यानी टेराकोटा के बने हुए.
हर सैनिक की वेशभूषा अलग- अलग. कोई बाल वाला तो कोई बिना वाला. किसी के सर में टोपी और कोई चोटी वाला. हर सैनिक के हाथ में हथियार. औसतन मूर्तियों का कद लगभग 5 फुट 11 इंच. और सबसे आगे खड़ी जनरलों की एक कतार जिनकी ऊंचाई आम सैनिकों से कहीं ज्यादा थी. सबसे खास बात थी कि ये सभी पुतले इस प्रकार खड़े थे, जैसे युद्ध के लिए कोई व्यूह बनाया हुआ हो. राजा की रक्षा के लिए. कौन राजा. वही, अखंड चीन का पहला सम्राट, चिन शी हुआंग. जिसकी कब्र पुतलों की सेना के बीचों-बीच थी. हुआंग के साथ पुतलों की ये सेना क्यों दफनाई गई थी. ये जानने के लिए आइए फिर से लौटते हैं 2600 साल पहले के चीन में.
हुआंग की कहानी से आपको ये तो समझ आ गया होगा कि वो एक सनकी सम्राट था. दुनिया जीतने की सनक तो उसमें थी ही. साथ ही वो अमर होने का सपना देखा करता था. अमर कैसे हुआ जाए, इसके लिए उसने अपने अधिकारियों को अमृत की खोज में भेजा. किसी ने उसे बताया कि पारा अमरता की कुंजी है. बस फिर क्या था. हुआंग पारे की गोलियां खाने लगा. पारा, जो इंसानी बहुत ही खतरनाक ज़हर होता है. इसी ज़हर से उसकी तबीयत खराब होने लगी. जब उसे अहसास हुआ कि अमर होने की उसकी तमन्ना पूरी नहीं होने वाली, उसने एक और प्लान बनाया. हुवांग अब अपनी बादशाहत को मौत के पार ले जाने वाला था.

अपनी मौत से काफी पहले उसने इसकी तैयारी शुरू कर दी. उसने हुक्म दिया कि मरने के बाद योद्धाओं की एक फौज उसके साथ दफनाई जाएगी. हालांकि ये कोई यूनीक बात नहीं थी. चीन और मिस्र की पुरातन कब्रों से पता चलता है कि तब मरने के बाद राजा के पसंदीदा नौकरों और जानवरों को उसके साथ दफ़्न किया जाता था. बल्कि राजा के मरने पर नरबलि देने का रिवाज भी था. लेकिन हुवांग ने ऐसा नहीं किया. उसने मिट्टी के पुतलों की एक सेना बनवाई, जिनको लेकर शायद उसका विश्वास था कि मरने के बाद वो जी उठेंगे और उसके साथ युद्ध करेंगे. मौत के बाद हुआंग का क्या हुआ, ये तो हम नहीं जान सकते. लेकिन इन पुतलों की कहानी हमें पता है.
शी जिनपिंग कनेक्शनचीनी इतिहासकारों के अनुसार आठ हजार पुतले बनाने में 10 साल लगे. और लगभग सात लाख कारीगर इस काम में खपाए गए थे. पुतलों को एकदम योद्धाओं की तरह बनाया गया था. और उन पर रंग भी किया गया था. साल 1974 में पहली बार पुतलों की खोज के बाद लगातार इस विशाल कब्र की खुदाई जारी है. खुद सम्राट चिन शी हुआंग की कब्र अभी तक खोदी नहीं जा सकी है. क्योंकि मैपिंग के जरिए पता चला है कि इस कब्र में कांसा भरा है. और पारे की नदियां बनी है. अंदर अनगिनत बहुमूल्य चीजें होने का अनुमान है. लेकिन उनके नष्ट होने के डर से अभी तक इस कब्र को खोदा नहीं गया है.
आखिर में आपको इस कब्र और इस सम्राट का एक खास कनेक्शन बताते हैं. कनेक्शन चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग से. साल 2018 की बात है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने दशकों से चला आ रहा एक नियम बदला. नियम ये कि कोई व्यक्ति सिर्फ दो बार राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठ सकता है. नियम बदलते ही शी जिनपिंग का रास्ता साफ़ हो गया. अब वो आजीवन राष्ट्रपति बने रह सकते थे. (Xi jinping)
जैसे ही ये खबर आई, चीनी सोशल मीडिया में कुछ नाम तैरने लगे. जिनसे जिनपिंग की तुलना हो रही थी. इनमें से एक नाम चिन शी हुआंग का भी था. क्यूंकि जैसा की कहानी से आपको समझ आ ही गया होगा, हुआंग अखंड चीन के पहले सम्राट थे. अब चीन में सम्राट का कांसेप्ट नहीं है. लेकिन जिनपिंग के विरोधी मानते हैं कि वो खुद को चिन शी हुआंग के वारिस के तौर पर देखते हैं. और आजीवन राष्ट्रपति वाला नियम बनाकर उन्होंने इसके लक्षण दिखा भी दिए हैं.
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