20 जून 1992 की तारीख. तमिलनाडु के एक सुदूर गांव में सूरज ढलने की ओर है. शाम के चार बजे लोग खेतों से लौट रहे हैं. सब कुछ सामान्य है. लेकिन घड़ी में घंटे की सुई ने दो चक्कर काटे और अचानक पूरा गांव सुनसान हो गया. 2 हजार लोगों के गांव में सिर्फ एक 80 साल की बुढ़िया और दो कुत्ते बचे हैं. बाकी लोग कहां हैं?
वीरप्पन को पकड़ने गई पुलिस, पूरा गांव तबाह कर डाला!
वीरप्पन की कहानी सुनी होगी. लेकिन चंदन तस्करी से जुड़ी ये कहानी वर्दी के अत्याचार की दुखद बानगी है

वहां से कुछ दूर धरमपुरी जिले का हरूर फॉरेस्ट ऑफिस. यहां तीन लाइनें बनी हैं. औरतों की. उनके हाथ में झाड़ू है और सामने बंधा है उनके गांव का पूर्व मुखिया, पेरुमल. एक-एक कर सबका नंबर आता है. पेरुमल को तब तक मारा जाता है, जब तक वो अधमरा नहीं हो जाता. औरतें पेरुमल को क्यों मार रही थी? क्या पेरुमल ने कुछ गलत किया था? जवाब है हां. लेकिन उन औरतों के साथ नहीं. उसका गुनाह कहीं बढ़ा था. उसने सरकार की शिकायत सरकार से ही कर डाली थी. जिसकी सजा सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि उन औरतों को भी मिली. जिन औरतों ने पेरुमल को मारने से इंकार किया, उनके साथ रेप किया गया. उनके वस्त्र उतारकर उन्हें सबसे सामने पेशाब करने के लिए कहा गया.
ये कहानी है वाचति केस (Vachathi Case) की. जब 269 सरकारी अधिकारी एक गांव में घुसे और पूरा गांव तहस-नहस कर डाला गया. 18 औरतों का रेप हुआ. क्या था वाचति केस और कैसे इस केस को CBI के पूरे इतिहास में एक मिसाल की तरह देखा जाता है.
भारत में पैदा होने वाले आम का लगभग 5% तमिलनाडु में पैदा होता है. इनमें भी लगभग 70% तमिलनाडु के दो जिलों से आता है. धरमपुरी और किशनगिरी. आम के लिए फेमस ये इलाका 80 और 90 के दशक में ख़ास लोगों की नजर में रहता था. कारण- यहां चन्दन के जंगल हुआ करते थे. चन्दन का नाम लेते ही एक खास नाम याद आता है. वीरप्पन (Veerappan). हैंडलबार मूछों वाला खूंखार तस्कर जिसने 90 की शुरुआत में पूरे तमिलनाडु और आसपास के राज्यों में दहशत फैला दी थी. वो पुलिस स्टेशन पर हमला करता था. व पुलिस की जीपों को बम से उड़ा दिया करता था.

1991 में हुए चुनावों में जयललिता जीतकर आईं और राज्य की मुख्यमंत्री बनीं. आते ही उन्होंने अहद लिया कि राज्य से चन्दन तस्करों का सफाया कर देंगीं. एक स्पेशल टास्क फ़ोर्स का गठन हुआ. और पुलिस ने दे-दनादन रेड मारना शुरू किया.
20 जून के रोज़ वाचति में चिन्नापेरुमल अपने खेत में काम कर रहे थे. जब अचानक जंगलात के अधिकारी पहुंचे और उन्होंने चिन्नापेरुमल को धर लिया. अधिकारियों को पास ही से चन्दन की लकड़ियों का गट्ठर मिला था. उन्होंने चिन्नापेरुमल से पूछताछ की. जब उसने इंकार किया तो अधिकारियों ने उसकी खूब धुनाई की. इसी बीच लोगों की भीड़ इकठ्ठा होना शुरू हुई. और बहस कब हाथापाई में बदल गई, पता ही न चला. इस दौरान एक अधिकारी को चोट आ गई और उन्हें बैलगाड़ी में अस्पताल पहुंचाया गया. इसके बाद अधिकारी वापिस लौट गए.
गांव के कुछ लोगों को अंदाज़ा हो गया था कि कुछ बड़ा होने वाला है. इसलिए वो घर छोड़कर पास की पहाड़ी पर चले गए. उनका अंदाजा सही था. दोपहर दो बजे फॉरेस्ट विभाग के 155 अधिकारी, 108 पुलिस वालों के साथ गांव में पहुंचे. और उन्होंने ताबड़तोड़ डंडो की बारिश कर दी. घास की झोपड़ियां कुछ ही देर में भूसे के ढेर में तब्दील हो गई. अधिकतर आदमी गांव से भाग गए थे. इसलिए औरतों और बच्चों को इकठ्ठा कर पास के एक बरगद तक ले जाया गया.
शाम चार बजे कुछ आदमी बकरियां चराकर और खेतों से काम कर वापिस लौटे. उन्हें भी बरगद पर ले जाया गया. यहां एक बार फिर मारपीट का कार्यक्रम चला. ये लोग इतने पर ही ना रुके. 18 औरतें, जिनमें से 13 नाबालिग लड़कियां थीं, उन्हें एक लॉरी में भरकर पास मौजूद एक सूखी झील पर ले जाया गया. इनमें से एक पूर्व मुखिया पेरुमल की भतीजी भी थी. द फाउंटेन इंक नाम की वेबसाइट से बात करते हुए वो बताती हैं,
“वे हमें गंदी गालियां दे रहे थे. और बीच-बीच में ये भी पूछ रहे थे कि तुमने चन्दन कहां छुपा के रखा है”
इस दौरान इन औरतों और बच्चियों का कई बार रेप किया गया. कुछ की उम्र सिर्फ 13-14 साल थी. जब मन भर गया तो इन 18 औरतों को दुबारा लॉरी में भरकर बरगद के पेड़ के पास छोड़ दिया गया. शाम 6 बजे इन लोगों को हरूर फॉरेस्ट ऑफिस ले जाया गया. यहां महिलाओं की कतार बनकर उनसे पूर्व ग्राम प्रमुख पेरुमल को मारने के लिए कहा गया. जिसने इंकार किया, उसने दोबारा रेप किया गया. पेरुमल बताते हैं कि अधिकारियों को उनसे ख़ास खुन्नस थी. इसका कारण ये था कि उन्होंने फॉरेस्ट विभाग की शिकायत पुलिस में कर दी थी.

कहानी कुछ यूं थी कि 80 के दशक तक ये इलाका चन्दन के जंगलों से भरा था. पहले जनजातीय लोग इसी जंगल के सहारे अपना आसरा चलाते थे. फिर जंगल फॉरेस्ट विभाग के हाथ में आया और धीरे धीरे वहां तस्करों का राज हो गया. पेरुमल कहते हैं कि पुलिस, राजनेताओं और फॉरेस्ट विभाग के गठजोड़ से तस्करी को खूब बढ़ावा मिला. और जब उन्होंने इसकी शिकायत की तो उनसे बदला लेने की मंशा से ये कार्रवाई की गई. तो क्या गांव वाले एकदम पाक साफ़ थे?
पेरुलम बताते हैं, नहीं. गांव के लोगों से चंदन के लकड़ियां कटाई जाती थीं. इसका उन्हें 30 रुपया रोज़ का मिलता था. लेकिन यहीं पर पेरुमल एक सवाल ये भी उठाते हैं कि अगर वो तस्करी में लिप्त होते तो क्या उनका गांव इतना गरीब होता. जवाब किसी के पास नहीं था. पुलिस के पास डंडा था, सो वही चला. गांव की 76 औरतों और 15 आदमियों को फॉरेस्ट एक्ट सहित तमाम धाराओं में केस दर्ज़ कर जेल में डाल दिया गया. पुलिस ने गांव से डेढ़ करोड़ रूपये का चन्दन ज़ब्त करने का दावा किया.
ये मामला सामने कैसे आया?तमिलनाडु ट्राइबल एसोशिएशन को कहीं से इस घटना की जानकारी मिली. करीब तीन हफ्ते बाद वो लोग गांव के दौरे पर पहुंचे तो देखा घर उजड़े हुए थे. हर तरफ केरोसीन की महक थी. कुओं में जानवरों की हड्डियां पड़ी हुई थीं. गांव एकदम सुनसान था. ट्राइबल एसोशिएशन ने गांव वालों से मिलकर उन्हें वापिस गांव लाने की कोशिश की. लेकिन कोई तैयार न हुआ. उन्हें डर था कि दुबारा ऐसा हमला हो सकता है. एसोशिएशन ने डिस्ट्रिक कलेक्टर से इस घटना की शिकायत की. और मुख्यमंत्री के नाम खत लिखकर जांच की मांग रखी. सरकार की तरफ से मोर्चे पर आए फॉरेस्ट मिनिस्टर के ए सेंगोट्टैयन. बोले, पहले तो गांव इतनी ऊंचाई पर है कि वहां पहुंचना ही मुश्किल है. दूसरा उन्होंने अपने अधिकारियों की तारीफ़ करते हुए सारे आरोपों को झूठा और गांव वालों को चन्दन तस्कर बता दिया.

इस बीच केंद्र सरकार हरकत में आई. मामला अनुसूचित जनजाति से जुड़ा था. इसलिए केंद्र ने अपने एक रिप्रेजेन्टेटिव को गांव भेजा. तीन दिन में एक रिपोर्ट तैयार हुई. पता चला कि DM या SP ने एक बार भी गांव का दौरा नहीं किया. इस रिपोर्ट में कहा गया कि प्रथम दृष्टया लगता है कि गांव पर हमला हुआ है.
इस मामले में बड़ा मोड़ आया जब वो 18 औरतें सामने आई जिनके साथ रेप हुआ था. 22 अगस्त को ये औरतें हरूर पुलिस स्टेशन में मामले की रिपोर्ट दर्ज़ करने पहुंची. लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज़ करने से इंकार कर दिया. राज्य के रेवेन्यू डिपार्टमेंट ने अपनी अलग तहकीकात करते हुए एक रिपोर्ट बनाई और कहा कि गांव वालों ने खुद अपने घर तोड़े और रेप का झूठा केस बनाया. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता A नल्लासिवम इस मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और इन्साफ की गुजारिश की. मामला मद्रास हाई कोर्ट को रिफर किया गया. हाई कोर्ट के आदेश से राज्य सरकार ने गांव में पीने के पानी की व्यवस्था करवाई और 18 घर भी बनवाए. गांव वाले लौटकर आ गए. साथ ही कानूनी कार्रवाई भी चलती रही.
इंसाफइस मामले में राज्य सरकार की टालमटोल को देखते हुए 1995 में हाईकोर्ट के निर्देश पर ये केस CBI को सौंपा गया. DSP S. जगन्नाथन को तहकीकात की जिम्मेदारी मिली. इस केस में सबसे पहले गुनाहगारों की पहचान होनी जरूरी थी. लेकिन यहीं से जगन्नाथ के लिए दिक्कतें खड़ी होने लगीं. उन्होंने फॉरेस्ट और पुलिस महकमे के 1500 लोगों की पीड़ितों के सामने परेड करवानी चाही. लेकिन स्थानीय प्रशासन इस मामले में बार-बार अड़ंगा डालता रहा. अंत में हाई कोर्ट को एक बार और दखल देना पड़ा. और जिला जज की देखरेख में परेड पूरी हुई.
23 अप्रैल 1996 को इस मामले में पहली चार्जशीट दाखिल हुई. इस केस में 269 लोगों पर केस दर्ज़ किया गया था. 15 साल चले केस के बाद साल 29 सितम्बर 2011 को धरमपुरी कोर्ट ने इस केस में फैसला सुनाया. हालांकि इस दौरान 54 लोगों की मौत हो गई थी. बचे 215 में से 126 फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से थे. वहीं 84 पुलिसवाले और 5 रेवेन्यू विभाग से थे. इनमें से 12 को रेप का दोषी ठहराते हुए अदालत ने 17 साल कारवास की सजा सुनाई. वहीं पांच लोगों को 5 साल की सजा हुई. बाकी सभी दोषियों को एक से दो साल की सजा हुई.
इत्तेफाक देखिए कि फैसले के वक्त भी मुख्यमंत्री जयललिता ही थीं. इस केस से जुड़ी एक ख़ास बात ये भी थी कि पहली बार हुआ था कि चार्जशीट में शामिल सभी अभियुक्तों को सजा हुई थी. इस केस में जिला जज ने CBI इन्वेस्टिगेशन की तारीफ़ करते हुए उन्हें इनाम दिए जाने की सिफारिश भी की थी.
तारीख: 269 वर्दीधारी घुसे, 18 औरतों का रेप किया और पूरा गांव तबाह कर डाला