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कैसे चर्चिल की वजह से मारे गए 30 लाख भारतीय!

विन्सटन चर्चिल द्वितीय विश्वयुद्ध के समय इंगलैंड के प्रधानमंत्री थे. इसी दौरान 1943 में भारत के बंगाल में पड़े अकाल में हुई तीस लाख से अधिक लोगों की मौत का दोषी चर्चिल की ग़लत नीतियों को माना जाता है.

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1943 में बंगाल में पड़े भीषण अकाल में करीब 30 लाख लोगों की मौत भूख से तड़प-तड़प कर हो गई थी (तस्वीर-wikimedia commons/winstonchurchill.hillsdale.edu)

बात तब की है जब चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हुआ करते थे. एक रोज़ चर्चिल को खबर मिली कि उनकी पार्टी का एक सांसद रात के 3 बजे रंगरेलियां मनाते पकड़ा गया है. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. इन महोदय के बारे में अक्सर ऐसी खबरें आती थीं. लेकिन इस बार मामला संगीन था, क्योंकि खबर प्रेस के हाथ लग चुकी थी. बड़ा मसला ये था कि महोदय एक आदमी के साथ पकड़े गए थे. यानी वो समलैंगिक थे.

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एक गार्ड ने उन्हें देखा था. उसने अपने सीनियर को बताया और तत्काल ये बात प्रधानमंत्री चर्चिल तक पहुंचाई गई. एक अधिकारी चर्चिल को ये खबर देने गया. उस वक्त चर्चिल अपनी डेस्क पर बैठे काम में लगे थे. अधिकारी ने पूरी बात सुनाते हुए निष्कर्ष दिया कि अमुक सांसद को पार्टी से निकाल देना ही बेहतर होगा. चर्चिल पूरी गंभीरता से ये सब सुन रहे थे. उन्होंने अधिकारी से एक सवाल पूछा,

“तो उसे (सांसद को) पुलिस ने एक गार्ड वाले के साथ पकड़ा?”

अधिकारी ने हामी भरी.

चर्चिल ने फिर पूछा,

“हाइड पार्क में, एक बेंच पे?”

अधिकारी ने कहा, हां सर, बिलकुल सही

“सुबह 3 बजे?”

Winston Churchill
विन्सटन चर्चिल द्वितीय विश्वयुद्ध के समय इंगलैंड के प्रधानमंत्री थे (तस्वीर-wikimedia commons)

चर्चिल का एक और सवाल था.

अधिकारी ने जवाब दिया, जी सर.

इस पे चर्चिल बोले,

“इस मौसम में! हे भगवान, ये तो ब्रिटिश होने पर गर्व महसूस करने की बात है”

चर्चिल के बारे में ऐसे तमाम किस्से ब्रिटिश जनता में सुने और सुनाए जाते हैं. भारत में जो हैसियत महात्मा गांधी की है, वही चर्चिल की ब्रिटेन में है. ब्रिटिश जनता और अधिकतर यूरोप के लिए वो द्वितीय विश्व युद्ध के हीरों हैं. जिन्होंने दुनिया को नाजीवाद की पकड़ में जाने से बचाया. इस बात में कुछ हद तक सच्चाई भी है. लेकिन फिर हमें निदा फ़ाज़ली का एक शेर याद आता है.

हर आदमी में होते हैं, दस बीस आदमी, 
जिसको भी देखना हो कई बार देखना

विंस्टन चर्चिल के कई चेहरों में से एक वो स्याह चेहरा था जिसे भारत ने देखा और भुगता. आज चर्चिल की पुण्यतिथि है. 24 जनवरी 1965 को उनका निधन हो गया था. आज आपको चर्चिल से जुड़ी कुछ कहानियां बताएंगे, जिनमें उनका भारत के प्रति रुख दिखाई देता है. बात करेंगे, 1943 में बंगाल में पड़े अकाल की, जिसके लिए बारिश की कमी को दोषी ठहराया गया, जबकि असलियत कुछ और थी. चर्चिल भारत की आजादी नहीं चाहते थे. ये तो सबको पता है. लेकिन भारत के लिए आगे उनका क्या प्लान था, इसका किस्सा भी सुनाएंगे. 4 अगस्त 1944 का दिन. लन्दन में वॉर कैबिनेट की मीटिंग चल रही थी. चर्चा का विषय था, एक प्रस्ताव. जो महात्मा गांधी की तरफ से भेजा गया था.

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Gandhi
साल 1931 में महात्मा गांधी गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए थे, बकिंघम पैलेस से चाय का बुलावा आने पर गांधी एक धोती और चप्पल पहने राजमहल पहुंचे (सांकेतिक तस्वीर- wikimedia commons)

क्या लिखा था इस प्रस्ताव में?

वाइसरॉय को भेजे में इस प्रस्ताव में गांधी कह रहे थे कि अगर ब्रिटेन तत्काल भारत की आजादी की घोषणा कर दे, तो वो भारत छोड़ो आंदोलन वापस ले लेंगे और कांग्रेस द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन का समर्थन करेगी. इसके जवाब में वाइसरॉय आर्चिबेल्ड वेवल ने जवाब दिया कि अगर हिंदू मुसलमान और बाकी अल्पसंख्यक एक साझे संविधान पर सहमत हों तो ब्रिटिश राज के अंतर्गत वो एक सरकार बना सकते हैं. यानी वाइसरॉय कुछ हद तक डोमिनियन स्टेटस के लिए राजी हो गए थे. जब चर्चिल को ये पता चला वो आगबबूला हो गए. गांधी से उन्हें हद दर्ज़े की नफरत थी. कुछ महीने पहले जब गांधी को बीमारी के चलते जेल से रिहा किया गया, तो उन्होने वेवल को लताड़ लगाते हुए कहा था,

“ये आदमी बिलकुल दुष्ट है, हमारा दुश्मन है और ये कुछ लोगों के निहित स्वार्थ की पूर्ति चाहता है”.

इसके बाद जब गांधी की तरफ से आजादी का प्रस्ताव गया, चर्चिल एक और बार भड़कते हुए बोले,

“इस गद्दार को दोबारा जेल में डाल दिया जाना चाहिए”

वॉर कैबिनेट की अगली मीटिंग 4 अगस्त को थी. उस रोज़ चर्चिल ने गांधी को दिए जाने वाले प्रस्ताव के ड्राफ्ट अपनी तरफ से कुछ फेरबदल किए. और साथ में ये बात जोड़ दी कि भारत में अछूतों के प्रति ब्रिटिश सरकार की कुछ जिम्मेदारियां हैं. जब वॉर कैबिनेट में ये प्रस्ताव पढ़ा गया, तो चर्चिल के एक साथी ने विरोध जताया. ये थे लियोपोल्ड एमेरी जो मई 1940 से जून 1945 तक सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया रहे थे. एमेरी ने एतराज जताते हुए कहा कि इस मुद्दे का गांधी के प्रस्ताव से कोई लेना देना नहीं है. ये सुनकर चर्चिल और भड़क गए. बोले, एक बार युद्ध ख़त्म होने दो, पिछले बीस सालों में जिस तरह तुमने घुटने टेके हैं, उस सब का हिसाब होगा. चर्चिल इतने में ही नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा,

”हम भारत में जमींदारों और उद्योगपतियों की ताकत ख़त्म कर मजदूरों और किसानों का उत्थान करेंगे. कुछ-कुछ वैसे जैसे रूस में किया गया.”

आगे चर्चिल ने जोड़ा कि वो वर्तमान भारत में काम करने वाले सारे अधिकारियों को वापिस बुला लेंगे क्योंकि वो भारतीयों से अधिक भारतीय बन गए हैं. इसके बाद हम वहां नए अधिकारी भेजेंगे. ये सब सुनकर एमेरी ने भी अपना आप खो दिया. और सबके सामने उन्होंने चर्चिल को हिटलर की उपमा दे दी. ये महज गुस्से में बोले गए शब्द नहीं थे. ये बात तब मालूम नहीं थी. लेकिन एमरी खुद यहूदियों की विरासत से आए थे. अमेरी के अनुसार चर्चिल का तर्क बिलकुल हिटलर से मेल खाता था. उन्होंने लिखा

”नाजियों ने भी इसी प्रकार यूरोप को ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी. वो 10 लाख यहूदियों के बदलने 10 हजार लॉरी और उपकरणों की मांग रहे थे. और धमकी दे रहे थे कि अगर उन्हें ये न मिला तो उन्हें गैस चेम्बर्स में झोंक देंगे”

एमेरी के गुस्से का एक कारण ये भी था कि चर्चिल जमींदार क्लास का बहाना दे रहे थे. ये वो ही बहाना था को यहूदियों के नरसंहार के लिए यूज़ हुआ था. चर्चिल कह रहे थे कि वो गरीबों और तथाकथित नीची जातियों का उत्थान करेंगे. जबकि ठीक एक साल पहले यानी 1943 में उनकी वॉर कैबिनेट ने बंगाल में अकाल से मर रहे लोगों को राहत भेजने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. 5 लाख टन गेंहू की तत्काल जरुरत थी. लेकिन चर्चिल ने एक बोरा भी भेजने से इंकार कर दिया. चर्चिल के अनुसार अकाल का कारण ये था कि ”भारतीय खरगोश की तरह बच्चे पैदा कर रहे हैं”. आखिर में अमेरी के प्रयासों से नवम्बर में भारत तक कुछ राशन भेजा गया, जो जरुरत का महज 16 % था. दिसंबर तक आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 15 लाख लोग भूख से मारे गए. जबकि अनाधिकारिक अनुमानों में ये संख्या इसकी दुगनी थी.

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साल 1943-44 में बंगाल में एक भयानक अकाल पड़ा जिसमें लगभग 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान जान गंवाई थी (तस्वीर-wikimedia commons)

जिन्हें राशन मिला भी, वो बस 400 कैलोरी के बराबर था. इत्तेफाक से ये ठीक उतनी ही राशि थी, जितनी जर्मनी के कंसन्ट्रेशन कैंप्स में यहूदियों को दी जा रही थी. वेवल की डायरी से पता चलता कि चर्चिल सिर्फ उन लोगों तक राशन पहुंचाना चाहते थे, जो युद्ध में कोई योगदान दे रहे थे. इस तथ्यों की दृष्टि में अमेरी द्वारा चर्चिल की हिटलर से उपमा निशाने से ज्यादा दूर नहीं थी. चर्चिल को हालांकि न भारतीयों के भूखों मरने से असर पड़ता था. न ही हिटलर कहे जाने से. भारत को आजादी देना तो दूर, वो भारत पर पकड़ मजबूत करने के लिए नए प्लान बना रहे थे. लेखिका मधुश्री मुखर्जी ने इस विषय पर Churchill's Secret War: The British Empire and the Ravaging of India during World War II लिखी है. एक रिर्सच पेपर में मधुश्री लिखती हैं कि चर्चिल वर्तमान भारतीय व्यवस्था को पूरी तरह बदल देना चाहते थे.

1937 में वाइसरॉय लार्ड लिनलिथगो को लिखे एक पत्र में चर्चिल ने इस बात की मंशा जाहिर की थी. उनके अनुसार भारत पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए जरूरी था कि बाबू क्लास को पूरी तरह ख़त्म कर उनकी जगह ब्रिटिश अधिकारी नियुक्त किए जाएं. The Regeneration of India: Memorandum by the Prime Minister नाम के एक दस्तावेज़ के अनुसार, युद्ध के बाद वो भारत में 1 लाख 60 हजार अंग्रेज़ी प्रशिक्षक, इतने ही अंग्रेज़ पुलिस अफसर, और आठ लाख भारतीय पुलिस वाले तैनात करने की सोच रहे थे. मधुश्री लिखती है कि चर्चिल पर जोसेफ स्टालिन का असर था. जिन्होंने जमींदार क्लास को ख़त्म करने के नाम पर लाखों लोगों को मरने की कगार पर पहुंचा दिया था.

असल में चर्चिल को सिर्फ इस बात से मतलब था कि भारत के रिसोर्सेस को कैसे लम्बे समय तक चूसा जा सके. इसकी बानगी 1943 बंगाल में पड़े अकाल के दौरान उनके बयान और नीतियों में दिखाई देती है. इस अकाल की कोई खबर ब्रिटिश जनता तक नहीं पहुंचने दी गई. और इस अकाल में हुई मृत्य का इल्जाम स्थानीय जमीदारों, जमाखोरों और कुछ हद तक मानसून की कमी पर लगाया गया. अब थोड़ा इस बात की पड़ताल करते हैं.

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लेखिका मधुश्री मुखर्जी द्वारा लिखी गयी किताब Churchill's Secret War: The British Empire and the Ravaging of India during World War II (तस्वीर-Amazon)

1873 से 1943 के बीच भारत में कुल 6 बड़े अकाल पड़े. साल 2019 में जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नाम के एक रिसर्च जर्नल ने इन अकालों के अध्ययन पर एक रिसर्च पेपर छापा. ये रिसर्च IIT गांधीनगर, University of California Los Angeles (UCLA), और Indian Meteorological department के साथ मिलकर की गई थी. रिसर्चर्स ने सिमुलेशन के जरिए मिट्टी की आद्रता पर शोध के आंकड़ों पेश किए. इस रिसर्च के अनुसार 1896-97 में जो अकाल पड़ा था, तब उत्तरी भारत में मिट्टी की आद्रता में 11% की कमी पाई गई. यानी अकाल और बारिश की कमी में सीधा रिलेशन स्थापित हो रहा था. इसके बजाय 1943 में आद्रता औसत से अधिक थी. इस रिसर्च को लीड कर रहे विमल मिश्रा ने CNN के साथ एक इंटरव्यू के दौरान बताया,

“यह एक अनोखा अकाल था, जिसका कारण मानसून की विफलता नहीं बल्कि नीतिगत विफलता थी.”

मधुश्री भी अपने लेखन में इस बात के साक्ष्य मुहैया कराती हैं. मधुश्री लिखती हैं कि तब वॉर कैबिनेट के सामने बार-बार बंगाल में अकाल का मुद्दा उठाया गया. लेकिन चर्चिल ने भारत के बजाय यूरोप के दूसरे इलाकों में राशन भेज दिया, ताकि युद्ध के बाद यूरोप को राशन की कमी न पड़े. भारत के लिए उनका कहना था,

"अगर वहां अकाल पड़ रहा है तो गांधी अभी तक कैसे जिन्दा है”.

इन सब बातों के बावजूद इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि ब्रिटेन के लिए चर्चिल हीरो थे. लेकिन भारत में उनकी नीतियों का असर हिटलर की नीतियों से कम न हुआ था. अगर ये तर्क भी स्वीकार कर लिया जाए कि उनकी ऐसी मंशा नहीं थी, तब भी 30 लाख लोगों की मौत के लिए उनकी कुछ जिम्मेदारी तो जरूर बनती है.

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